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26/11 कामा हॉस्पिटल: आतंकी हमले के बीच डिलीवरी कराने वाली नर्सों की कहानी

Cama Hospital की नर्सों ने बताया- कसाब अस्पताल में 6 घंटे रहा लेकिन हमने हर मरीज को बचा लिया

ऋत्विक भालेकर
भारत
Updated:
<div class="paragraphs"><p>26/11 आतंकी हमले में कामा अस्पताल भी बना था निशाना</p></div>
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26/11 आतंकी हमले में कामा अस्पताल भी बना था निशाना

(फोटो: Altered By Quint HIndi)

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वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

कैमरा: गौतम शर्मा

"मरना तो तय था लेकिन कुछ कर के मरने का जुनून था." कामा हॉस्पिटल के लेबर वार्ड की नर्स अंजली कुलथे आज भी 26/11 की उस रात को भूल नही पाई हैं.

26/11 के मुंबई हमले में कामा हॉस्पिटल आतंकियों के निशाने पर था. आज 13 साल बाद कामा हॉस्पिटल की नर्सेस उस पल को बयान करती हैं.

आतंकी अजमल कसाब और उसका एक साथी सीएसएमटी स्टेशन से निकलकर कामा हॉस्पिटल में घुस गए थे. तकरीबन पांच घंटे तक हॉस्पिटल में मौत का तांडव जारी रहा.

इस हमले में कामा हॉस्पिटल के दो वॉचमैन शहीद हो गए थे और कई कर्मचारी गंभीर रूप से जख्मी हुए थे. बावजूद उसके किसी भी कर्मचारी ने मरीजों को एक खरोच भी नहीं आने दी थी. अपनी जान दांव पर लगाकर कामा के सभी कर्मचारियों ने अपना फर्ज निभाया था.

"आतंकी लगातार फायरिंग और हैंड ग्रेनेड से हमला कर रहे थे. लेकिन ऐसी स्थिति में भी हमने लेबर वार्ड में दो महिलाओं की डिलीवरी करवाई. आखिर तक उन्हें हमले के बारे में नहीं पता चलने दिया. भगवान की कृपा से बच्चे सुरक्षित पैदा हुए और हमने उन्हें मां की गोद में सौंपा. ये सच में किसी चमत्कार से कम नहीं था "
जयश्री कुरदुंडकर, नर्स इंचार्ज, कामा हॉस्पिटल
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दूसरी नर्स स्वाति शाहबाजे बताती है कि,"उस रात सभी मरीजों को वार्ड के बीच में छुपाकर पूरी तरह से ब्लैक आउट कर दिया था. लेकिन अचानक कोई धक्का मारकर दरवाजे से जख्मी हालत में अंदर आकर गिर पड़ा. वो एक पुलिस इंस्पेक्टर था जिसे गोली लगी थी और उसका बहुत खून बह रहा था. हमने वक्त रहते ही उनका इलाज किया और उन्हें बचा लिया. हम डरे थे लेकिन इतनी मन की तैयारी कर ली थी कि अगर आतंकी अंदर घुसता है तो सलाइन की बोतल से उसपर हमला करना है."

देर रात पुलिस और कमांडोज ने कामा हॉस्पिटल को घेर लिया. लेकिन दोनों आतंकी हॉस्पिटल के छठवें मंजिल पर भाग गए. वहां से भी हमला जारी था.

कैंसर वार्ड की हेड नर्स माधुरी रहाटे ने कसाब द्वारा ढेर किए हुए दोनों वॉचमैन की लाशें देखी और काफी डर गई थी. लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा. हमले के दौरान सभी कैंसर मरीजों को धीरज देने का काम वो करती रहीं. उन्होंने मरीजों को विश्वास दिलाया कि उन्हें कुछ नहीं होने देंगे और उनके शब्दों के भरोसे मरीज रातभर हॉस्पिटल में छिपे रहे.

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Published: 26 Nov 2021,12:41 PM IST

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