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उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) जिले की एक निचली अदालत ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान एक महिला से सामूहिक बलात्कार के मामले में 2 आरोपियों को दोषी ठहराते हुए सजा का ऐलान कर दिया. हालांकि, इस मामले एक अन्य आरोपी की केस की सुनवाई के दौरान ही मौत हो चुकी है.
10 साल बाद मंगलवार (9 मई) को अदालत ने आरोपियों को सजा सुनाई है. अदालत के फैसले पर द क्विंट ने पीड़िता 'आफरीन' (परिवर्तित नाम) से बात की और उन्होंने कहा, "सच्चाई की जीत हुई है. मैं सच कह रही थी, अब सबको पता चल जाएगा. आखिरकार, सबको पता चल जाएगा."
अदालत के फैसले पर वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा, "आरोपियों को सामूहिक बलात्कार के लिए धारा 376 D के तहत दोषी ठहराया गया है और सांप्रदायिक हिंसा के दौरान बलात्कार करने के लिए 20 साल कठोर कारावास और 10,000 रुपये का जुर्माना, धारा 376 (2) (G) और 10 साल की कैद और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई है और धारा 506 आपराधिक धमकी के लिए और 2 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है."
27 अगस्त 2013 को, मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगों की चिंगारी उस वक्त भड़की थी जब कवाल गांव के शाहनबाज का पास के गांव मलिकपुरा निवासी सचिन और गौरव का झगड़ा हुआ. मारपीट में शाहनबाज की मौत हो गई थी. इसके बाद गुस्साई भीड़ ने सचिन और गौरव की पीट-पीट कर हत्या कर दी.
हत्या के विरोध में 7 सितंबर 2013 को मंदौड़ स्कूल के मैदान में भारी संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई और दंगे भड़के, मुस्लिमों के घर जलाए गए. इस हिंसा के दौरान कई महिलाओं और बच्चियों से सामूहिक बलात्कार भी किए गए.
जानकारी के अनुसार, फुगाना थाना इलाके के लाख गांव में दंगाइयों ने करीब 300 मुस्लिम परिवारों के घर आग के हवाले कर दिए. दंगाइयों से डर कर कई परिवार अपना सब कुछ छोड़कर जंगल की ओर चले गए. इन परिवारों में गांव की एक महिला भी थी जो अपने बेटे के साथ जान बचाकर जंगल की ओर भागी थी. जब मुसलमानों के घर जलाए गए, उस वक्त इस महिला का पति अपनी बीमार बेटी को लेकर डॉक्टर के पास गया हुआ था.
इस दौरान 3 लोगों ने बेटे की गर्दन पर चाकू लगाकर महिला के साथ बारी-बारी से रेप किया था, जिसमें सिकंदर, कुलदीप और महेश वीर का नाम शामिल है. रेप के बाद वे महिला और उसके बेटे को छोड़कर भाग गये.
पीड़िता के अनुसार, वह किसी तरह अपनी जान बचाकर बेटे के संग दिल्ली पहुंची और पति को भी वहीं बुला लिया. इसके बाद वो तीन साल तक दिल्ली में ही रहे. उन्होंने मुजफ्फरनगर पुलिस से इस मामले में केस दर्ज करने का निवेदन भी किया लेकिन पुलिस ने केस दर्ज करने से इंकार कर दिया. इसके बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई, जिसके बाद मामला दर्ज हो सका.
वरिष्ठ अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर की रिट पिटिशन पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रोजाना सुनवाई का आदेश दिया था.
जानकारी के अनुसार, 2013 दंगों के दौरान महिलाओं और लड़कियों से रेप के 7 मामले सामने आए थे. सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद यह सभी मामले पुलिस ने दर्ज किए. हैरत की बात है कि इनमें से 5 मामले साक्ष्यों के अभाव और गवाहों के बयान पलटने की वजह से खत्म हो गए. एक केस में पुलिस ने यह दलील देकर फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी कि जांच में आरोपियों के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य नहीं पाए गए.
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