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जातिगत भेदभाव के खिलाफ काम आया मेरा संघर्ष: दलित महिला स्कॉलर

दीपा की शिकायत को मीडिया में काफी अटेंशन मिला था, पर यूनिवर्सिटी ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी.

द क्विंट
भारत
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महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की शोध छात्रा दीपा एम मोहन. (फोटो: द क्विंट)
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महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की शोध छात्रा दीपा एम मोहन. (फोटो: द क्विंट)
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महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की शोध छात्रा दीपा एम मोहन के अपने प्रोफेसर के खिलाफ जातिगत भेदभाव और मानसिक प्रताड़ना दिए जाने की शिकायत दर्ज कराने के एक साल से भी अधिक समय बाद विश्वविद्यालय सिंडीकेट ने प्रोफेसर के खिलाफ कारर्वाई करने का निर्णय लिया है.

एमजी यूनिवर्सिटी, कोट्टायम के इंटरनेशनल एंड इंटरयूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो साइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी में पीएचडी की छात्रा दीपा ने पिछले साल शिकायत दर्ज कराई थी कि सेंटर के जॉइंट डायरेक्टर नंदकुमार कलारिकल उसके साथ जाति के आधार पर भेदभाव कर रहे हैं.

हालांकि दीपा की शिकायत को काफी मीडिया अटेंशन मिला था, पर यूनिवर्सिटी ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी.

सोमवार को यूनिवर्सिटी सिंडिेकेट की बैठक ने सिफारिश की एससी/एसटी (एट्रोसिटीज प्रीवेंशन) एक्ट की उचिट धारा के तहत प्रोफेसर के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज किया जाए.

प्रोफेसर को अपने व्यवहार के लिए कारण बताने के लिए कहा गया है, जिसके न बता पाने पर उन्हें बर्खास्‍त कर दिया जाएगा. फिलहाल उन्हें जॉइंट डाइरेक्टर की कुर्सी से हटा दिया गया है.

मैं खुश हूं कि मेरे दो साल के संघर्ष के बाद ही सही, पर सिंडिकेट ने यह निर्णय लिया. कम से कम पिछले एक साल से यूनिवर्सिटी के लिए मेरी सारी परेशानी एक खबर की तरह हो गई थी, पर धीरे-धीरे लोगों की दिलचस्पी इसमें कम हो गई. मुझे डर था कि मुझे न्याय नहीं मिलेगा. पर फेसबुक पर मेरी हालिया पोस्ट, जिसमें मैंने SFI अध्यक्ष से पूछा था कि उन्होंने मेरी मदद क्यों नहीं की, वाइरल हो गई और उसने विवाद को फिर से खड़ा कर दिया. मैं किसी को दंड दिलाना नहीं चाहती थी, मैं बस इतना चाहती थी कि मुझे वहां पढ़ने दिया जाए.
दीपा ने द न्यूज मिनट को बताया  

इसकी शुरुआत तब हुई, जब दीपा को यूनिवर्सिटी की लेबोरेटरी और बाकी सुविधाओं का लाभ उठाने से रोक दिया गा. दीपा ने प्रोफेसर पर उसे लेबोरेटरी में बंद कर देने का भी आरोप लगाया.

उसके पास मजबूत राजनीतिक समर्थन है, पर अंत में सत्य की ही जीत होती है. मैंने सुना कि रजिस्ट्रार और वीसी ने उन्हें पद से हटाए जाने का विरोध किया, पर बाकी सदस्यों ने इनके हटाए जाने का समर्थन किया. वीसी ने मुझे बेहद कम समय में वर्क रिपोर्ट देने को कहा है, जबकि बाकियों से ऐसा कुछ नहीं कहा गया. मैं इसके खिलाफ कोर्ट जाने के बारे में सोच रही हूं. मुझसे यह भी कहा गया है कि अगर मैंने अपनी रिपोर्ट दिए हुए समय में जमा नहीं करती, तो इससे मेरी पढ़ाई पर बुरा असर पड़ सकता है.
दीपा ने द न्यूज मिनट को बताया  

दीपा ने पिछले अप्रैल में न्यूज मिनट को बताया था कि जब उसने उपकुलपति शीना शुक्कूर को अपनी परेशानी के बारे में बताया था, तो नंदकुमार ने उन्हें कहा था कि यूनिवर्सिटी में अनुशासन बनाए रखना है, तो दलित विद्यार्थी को ज्यादा बढ़ावा नहीं देना चाहिए. तब दीपा को महसूस हुआ कि उसकी जाति ही उसका गुनाह है.

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Published: 02 Feb 2016,07:42 PM IST

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