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वरिष्ठ पत्रकार एन राम और अरुण शौरी ने प्रशांत भूषण के साथ मिलकर कोर्ट की अवमानना कानून 1971 के सेक्शन 2(c)(i) को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है.
अपनी याचिका में इन तीनों ने कहा है कि अवमानना कानून का ये प्रावधान भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत मिले बोलने की आजादी के अधिकार का उल्लंघन करता है. साथ ही ये 'असंवैधानिक और लाइलाज रूप से अस्पष्ट' और 'जाहिर तौर पर मनमाना' है, जिसकी वजह से ये आर्टिकल 14 का भी उल्लंघन करता है. कोर्ट की अवमानना कानून का ये प्रावधान कोर्ट की अथॉरिटी को 'कम करना' और उसे 'कलंकित करने' को आपराधिक बनाता है.
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट की अवमानना कानून 1971 के सेक्शन 2(c)(i) को खत्म करने की मांग की है. याचिका में बताया गया कि इस प्रावधान में जो टर्म इस्तेमाल की गई हैं, वो अपरिभाषित हैं और संविधान के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करती हैं.
याचिका में ये भी कहा गया कि आपराधिक अवमानना की परिभाषा का ये हिस्सा बोलने की आजादी के अधिकार का भी उल्लंघन करता है. याचिका कहती है, "कोर्ट की आलोचना को पूर्ण और व्यापक ढंग से आपराधिक बनाने से, ये सब-सेक्शन सार्वजानिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मामलों पर बोलने पर अग्रिम अंकुश लगा देता है."
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से पुष्टि होती है कि फ्री स्पीच पर अग्रिम अंकुश की भारतीय संविधान के तहत अनुमति नहीं है. अपवाद उन मामलों के लिए है, जब बयान से किसी केस में पूर्वधारणा बनती हो.
जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही संज्ञान लेते हुए प्रशांत भूषण और ट्विटर इंडिया के खिलाफ भूषण के दो ट्वीट्स पर अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दी थी. इसके विरोध में पूर्व जज, सिविल सर्वेंट, वकील, लेखकों समेत 131 लोगों ने एक बयान जारी कर इस अवमानना की कार्रवाई को बंद करने की अपील की थी.
इस मामले में अगली सुनवाई 5 अगस्त को होनी है. वहीं, भूषण के 2009 वाले अवमानना केस में 4 अगस्त को सुनवाई होगी.
बाकी दो याचिकाकर्ता एन राम और अरुण शौरी पर भी अवमानना के केस चल चुके हैं.
कोल्लम लिकर ट्रेजेडी केस की कोर्ट प्रोसीडिंग छापने के मामले में एन राम पर केरल हाई कोर्ट में अवमानना का केस चला था. वहीं, अरुण शौरी पर जस्टिस कुलदीप सिंह कमीशन पर एक आर्टिकल की वजह से अवमानना का केस हुआ था. इस मामले में कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि आर्टिकल से कोर्ट की अवमानना नहीं होती है.
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