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नागालैंड (Nagaland) के मोन जिले में सुरक्षाबलों की एक चूक से 14 आम नागरिकों की मौत हो गई, इस मामले में उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए जा चुके हैं. लेकिन हालात लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं. घटना के बाद बिगड़ते हालात को देखते हुए म्यांमार बॉर्डर पर सुरक्षा और कड़ी कर दी गई है. पूरे क्षेत्र में उग्रवादी संगठनों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है.
नागालैंड में हुई इस बड़ी घटना के बाद एक बार फिर देशभर में नागा संघर्ष की कहानियां सुर्खियों में हैं. इस संघर्ष की कहानी भी आजादी जितनी ही पुरानी है. हम आपको बताते हैं कि नॉर्थ-ईस्ट में इन उग्रवादी संगठनों का क्या इतिहास रहा है.
ब्रिटिश हुकूमत के समय 1826 में अंग्रेजों ने असम पर कब्जा कर लिया था और 1881 में नागा हिल्स भी ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गए थे. पहली बार नागा विरोध 1918 में नजर आया था, जब नागा क्लब का गठन किया गया. उसके बाद 1946 में नागा नेशनल काउंसिल (NNC) वजूद में आया. अंगामी जापू फिजो के नेतृत्व में 14 अगस्त, 1947 को नागालैंड को एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया गया. NNC ने एक ‘संप्रभु नागा राज्य’ बनाने का संकल्प लिया और एक रेफरेंडम कंडक्ट किया. नागालैंड को एक स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए नागालैंड के अधिकांश लोगों का समर्थन मिला.
वर्ष 1952 में 22 मार्च को अंगामी जापू फिजो ने नागा संघीय सरकार (Naga Federal Government-NFG) और नागा संघीय सेना Naga Federal Army (NFA) का गठन किया. भारत सरकार ने विद्रोह और उग्रवाद को रोकने के लिए सेना भेजी और 1958 में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम बनाया.
29 जून, 1947 को असम के राज्यपाल सर अकबर हैदरी ने नरमपंथी टी साखरी और अलीबा इम्ती के साथ 9-सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसे फिजो ने खारिज कर दिया था. असम के एक जिले, नागा हिल्स को 1963 में एक राज्य में बदल किया गया था, जिसमें Tuensang Tract भी शामिल था जो उस समय NEFA का हिस्सा था.
उसके बाद अगले साल अप्रैल में, जय प्रकाश नारायण, असम के मुख्यमंत्री बिमला प्रसाद चालिहा और माइकल स्कॉट ने एक शांति मिशन बनाया और सरकार व एनएनसी (Naga National Council) को ऑपरेशन ससपेंड करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा. लेकिन उसके बाद भी एनएनसी/एनएफजी/एनएफए के द्वारा लगातार विद्रोह किया गया और 6 राउंड की बातचीत के बाद 1967 में शांति मिशन को छोड़ दिया.
11 नवंबर, 1975 को सरकार ने शिलॉन्ग समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सरकार ने एनएनसी नेताओं के एक सेक्शन के बात की, जिसके तहत एनएनसी और एनएफजी के इस सेक्शन ने हथियारों को प्रयोग न करने की सहमति जताई. थुइंगलेंग मुइवा के नेतृत्व में लगभग 140 मेंबर्स का एक ग्रुप शिलांग समझौते को मानने से इनकार कर दिया और 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड का गठन किया. मुइवा के साथ इसाक चिसी स्वू और एस एस खापलांग भी थे.
इस संगठन की मांग एक ‘ग्रेटर नगालिम’ थी, जिसमें नागालैंड के साथ सभी निकटवर्ती नागा क्षेत्र शामिल हैं. इसमें असम, अरुणाचल और मणिपुर के कई जिलों के साथ-साथ म्यांमार का एक बड़ा हिस्सा भी शामिल था. ग्रेटर नगालिम के नक्शे में लगभग 1 लाख 20 हजार वर्ग किमी है, जबकि नागालैंड राज्य में 16,527 वर्ग किमी है. नागालैंड विधानसभा से भी 'ग्रेटर नगालिम' की मांग को समर्थन मिला चुका है.
इस समझौते के दौरान नागा राष्ट्रीय सम्मेलन और असम के राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षर किया गया और सम्झौता हुआ कि, नागाओं को स्वतंत्र रूप से खुद का विकास करने के अधिकारों को मान्यता दी जाएगी. इसके तहत यह तय किया गया कि असम के राज्यपाल के पास समझौते का पालन करने के लिए दस साल तक एक विशेष जिम्मेदारी होगी, उसके बाद आगे की कार्यवाही के लिए नागा काउंसिल से राय ली जाएगी.
इस समझौते में विदेश मंत्रालय के चार्ज के तहत नागालैंड को एक राज्य के रूप में गठित किया गया और यह सुनिश्चित किया गया कि नागरिकों के धार्मिक और सांस्कृतिक व्यवहार, आपराधिक न्याय के लिए संसद द्वारा पारित कोई भी अधिनियम या कानून नागालैंड में तब तक नहीं प्रभावी होगा, जब तक नागालैंड विधानसभा के बहुमत से इसे लागू नहीं किया जाएगा.
उसके बाद भारत सरकार की ओर से उन्हें यह बताया गया कि संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 में किसी भी राज्य का क्षेत्रफल बढ़ाने का प्रावधान है, लेकिन भारत सरकार के लिए इस संबंध में कोई प्रतिबद्धता करना संभव नहीं है.
Ceasefire Agreement के जरिए भारत सरकार के द्वारा नागालैंड में शांति लाने के लिए कई कदम उठाने का प्रयास किया गया. इसके जरिए सुनिश्चित किया गया कि नागालैंड सरकार से बातचीत करने के लिए नागा नेताओं के प्रतिनिधि जुड़े रहेंगे.
इन वार्ताओं को सुविधाजनक बनाने और 10 अगस्त, 1964 के पत्र को नोट करने के लिए...यह आदेश दिया गया कि 6 सितंबर, 1964 और उसके बाद के एक महीने के लिए सुरक्षा बलों द्वारा तमाम प्रकार के ऑपरेशन नहीं चलाए जाएंगे.
यह समझौता नागालैंड के राज्यपाल एलपी सिंह और भूमिगत नेताओं के बीच हुआ था.
इसके तहत संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारत के संविधान को बिना शर्त स्वीकार करने के हामी भरी. यह निर्णय लिया गया कि नागा प्रतिनिधियों और सरकार व सुरक्षा बलों के बीच इस समझौते को लागू करने के लिए विवरण तैयार किया जाएगा. इस बात पर सहमति बनी कि संगठनों के प्रतिनिधियों के पास अंतिम समाधान के लिए चर्चा करने को अन्य मुद्दों को तैयार करने के लिए उचित समय होना चाहिए.
केंद्र की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार ने भी सत्ता में आने के बाद एक समझौता किया था, इसके बाद दावा किया गया था कि नॉर्थ-ईस्ट के सभी बड़े विद्रोही संगठनों से शांति की बातचीत हो चुकी है. गृहमंत्री अमित शाह ने भी कई बार ये दावा किया, लेकिन इसके बाद भी नागालैंड में शांति स्थापित होती नहीं दिख रही है.
2014 में केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद नगा विवाद को शांत की तमाम कोशिशें की गईं.
2015 में एनएससीएन के इसाक मुइवा गुट के साथ एक समझौता किया था.
2017 में सरकार को एक और कामयाबी मिली, जब नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप और कई अन्य संगठनों को भी समझौता में शामिल किया गया.
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