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नाथूराम गोडसे की रिवॉल्वर से एक गोली निकली थी. लेकिन इस गोली ने सिर्फ एक शख्स की जान नहीं ली बल्कि एक पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया.आज ही के दिन यानी 15 नवंबर को महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को फांसी की सजा हुई थी.
(क्विंट हिंदी अपने संग्रह में से इस पूरे मामले पर छपे लेख को पुनः प्रकाशित कर रहा है.)
सेंट्रल दिल्ली के तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में 30 जनवरी 1948 की शाम को दर्ज की गई एक एफआईआर भारतीय इतिहास का एक अभिन्न, लेकिन दर्दनाक दस्तावेज है. बिरला हाउस में जब गांधीजी को पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गई थी तब नंद लाल मेहता ठीक उनके बगल में थे:
नाथूराम गोडसे को दोषी साबित करने और उसे फांसी देने में भारत सरकार और न्यायपालिका को लगभग दो साल लगे. भारत सरकार सारी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरी थी और नाथूराम का मुकदमा कानून के मुताबिक ही चला. उसे अपना बचाव करने का भी मौका दिया गया था.
मुकदमे की कार्यवाही के दौरान गोडसे को किसी भी तरह का पछतावा नहीं था और न ही उसने कभी अपने किए को झुठलाने की कोशिश की. गोडसे के मुकदमे के मूक फुटेज में आप गोडसे, अन्य आरोपियों और उनके वकील को मुस्कुराते हुए और प्रेस से बातचीत करते हुए देख सकते हैं.
नवंबर 1948 को गोडसे ने खुली अदालत में एक बयान दिया था जो 90 पन्नों में दर्ज हुआ. गोडसे लगभग पांच घंटे तक बोलता रहा जिसमें उसने ‘राष्ट्रपिता’ की हत्या की वजह बताई:
हालांकि, गोडसे को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था. उसके परिवार ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उसको फांसी देने के फैसले के खिलाफ अपील करने की कोशिश की थी.
अखिल भारतीय हिंदू महासभा (एबीएचएम) ने गोडसे की फांसी के सालगिरह को, जो कि 15 नवंबर को पड़ती है, बलिदान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है. कुछ कट्टरपंथियों के लिए गोडसे हमेशा से पूज्य रहा है.
साल 2014 को एबीएचएम ने गोडसे का मंदिर बनाने का फैसला किया था. इसी साल की शुरुआत में राजस्थान के अलवर में बने एक पुल का नामकरण गोडसे के नाम पर करने का प्रस्ताव दिया था.
ऐसी छिटपुट घटनाओं की वजह से लोगों को एक-दो चीजों पर यकीन हो सकता है. पहली यह कि गोडसे के लिए लोगों के मन में सम्मान है. अदालत में दिए गए उसके खतरनाक बयान को देखते हुए यह बात काफी परेशान करने वाली मालूम पड़ती है.
दूसरे, कुछ लोग यह भी मान सकते हैं कि गोडसे के प्रति इस सम्मान को इसलिए बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि केंद्र में बीजेपी की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ आई है. हालांकि सच्चाई अपनी जगह पर है और इन दो निष्कर्षों से बदलने वाली नहीं है.
हिंदू महासभा संघ परिवार का हिस्सा नहीं है. दोनों की विचारधाराओं में भी ठीक वैसी ही भिन्नता है जैसी कि नक्सलियो और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की विचारधाराओं में.
गोडसे के पक्ष में हाल-फिलहाल ढेर सारी बाते हुई हैं. लेकिन यह वाकई में उसके प्रति बढ़े सम्मान के चलते हैं या फिर सुर्खियों में जगह पाने के लिए, यह अभी बहस का विषय है.
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