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महात्मा पर चली गोली से सिर्फ गांधी नहीं पूरा देश हुआ छलनी

गांधी जी के हत्या के बाद नाथूराम गोडसे ने अदालत में 90 पन्नों का बयान दिया. जानिए क्यों चर्चा में है नाथूराम गोडसे

आकाश जोशी
भारत
Updated:
मोहनदास करमचंद गांधी
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मोहनदास करमचंद गांधी
(फाइल फोटो: Public domain/WikimediaCommons)

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नाथूराम गोडसे की रिवॉल्वर से एक गोली निकली थी. लेकिन इस गोली ने सिर्फ एक शख्स की जान नहीं ली बल्कि एक पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया.आज ही के दिन यानी 15 नवंबर को महात्मा गांधी के हत्यारे गोडसे को फांसी की सजा हुई थी.

(क्विंट हिंदी अपने संग्रह में से इस पूरे मामले पर छपे लेख को पुनः प्रकाशित कर रहा है.)

सेंट्रल दिल्ली के तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में 30 जनवरी 1948 की शाम को दर्ज की गई एक एफआईआर भारतीय इतिहास का एक अभिन्न, लेकिन दर्दनाक दस्तावेज है. बिरला हाउस में जब गांधीजी को पॉइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गई थी तब नंद लाल मेहता ठीक उनके बगल में थे:

मैं, संसद मार्ग के रहने वाले चांदी व्यापारी लाला ब्रज किशन और तिमारपुर, दिल्ली के रहने वाले सरदार गुरबचन सिंह भी वहां मौजूद थे. हमारे अलावा बिरला हाउस की कुछ महिलाएं और स्टाफ के दो-तीन सदस्य भी वहीं पर थे. बगीचे को पार करने के बाद महात्मा गांधी प्रार्थना स्थल की ओर जाने वाली कंक्रीट सीढ़ियों पर चढ़े. सीढ़ियों के अगल-बगल लोग खड़े थे और महात्मा गांधी को जाने के लिए बीच में लगभग तीन फीट खाली जगह छोड़ी गई थी. महात्मा गांधी हमेशा की ही तरह हाथ जोड़कर लोगों का अभिवादन कर रहे थे. उन्होंने बमुश्किल छह या सात सीढ़ियां चढ़ी थीं कि एक व्यक्ति उनके पास गया और मुश्किल से 2-3 फीट की दूरी से उन पर पिस्तौल से तीन गोलियां दाग दीं. ये गोलियां महात्मा गांधी के पेट और सीने में लगीं जिससे काफी खून बहने लगा. बाद में मुझे पता चला कि गोली मारने वाला व्यक्ति पूना का रहने वाला नारायण विनायक गोडसे था.
महात्मा गांधी की हत्या के केस के एफआईआर में दर्ज नंद लाल मेहता का बयान
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कानून के मुताबिक चला केस

नाथूराम गोडसे को दोषी साबित करने और उसे फांसी देने में भारत सरकार और न्यायपालिका को लगभग दो साल लगे. भारत सरकार सारी कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरी थी और नाथूराम का मुकदमा कानून के मुताबिक ही चला. उसे अपना बचाव करने का भी मौका दिया गया था.

अपने मुकदमे के दौरान नाथूराम गोडसे. (फोटो साभार: फोटो डिविजन, भारत सरकार)

मुकदमे की कार्यवाही के दौरान गोडसे को किसी भी तरह का पछतावा नहीं था और न ही उसने कभी अपने किए को झुठलाने की कोशिश की. गोडसे के मुकदमे के मूक फुटेज में आप गोडसे, अन्य आरोपियों और उनके वकील को मुस्कुराते हुए और प्रेस से बातचीत करते हुए देख सकते हैं.

नवंबर 1948 को गोडसे ने खुली अदालत में एक बयान दिया था जो 90 पन्नों में दर्ज हुआ. गोडसे लगभग पांच घंटे तक बोलता रहा जिसमें उसने ‘राष्ट्रपिता’ की हत्या की वजह बताई:

मैं दुश्मन का प्रतिरोध करने और संभव हो तो उसे शक्ति के दम पर जीतने को एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूं. (रामायण में) राम ने रावण को एक भीषण युद्ध में पराजित कर सीता को बचाया था. (महाभारत में) कृष्ण ने कंस की हत्या करके उसके अत्याचारों का अंत किया था. अर्जुन को अपने ही मित्रों और प्रियजनों से लड़कर उनका खात्मा करना पड़ा था. उन लोगों में पूज्य भीष्म भी शामिल थे, लेकिन वे पापियों की तरफ से लड़ रहे थे. वह (महात्मा गांधी) जैसे दिखाई देते हैं वैसे नहीं थे, वह एक हिंसक शांतिवादी थे. उन्होंने सत्य और अहिंसा के नाम पर देश में अनकही आपदाओं को आमंत्रित किया. जबकि राणा प्रताप, शिवाजी और गुरु ने अपने देश के लोगों को जो आजादी दिलाई, उसकी वजह से वे उनके हृदय में हमेशा बने रहेंगे. 32 साल तक विचारों में उत्तेजना भरने वाले गांधी ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा तो मैं इस नतीजे पर पहुंच गया कि गांधी के अस्तित्व को तुरंत खत्म करना होगा.
नाथूराम गोडसे के अंतिम बयान के कुछ अंश

हालांकि, गोडसे को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था. उसके परिवार ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उसको फांसी देने के फैसले के खिलाफ अपील करने की कोशिश की थी.

नाथूराम गोडसे का उत्सव कौन मना रहा है?

गांधी की पुण्यतिथि के मौके पर उनकी तस्वीर बनाता एक व्यक्ति. (फोटो: Reuters) 

अखिल भारतीय हिंदू महासभा (एबीएचएम) ने गोडसे की फांसी के सालगिरह को, जो कि 15 नवंबर को पड़ती है, बलिदान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है. कुछ कट्टरपंथियों के लिए गोडसे हमेशा से पूज्य रहा है.

साल 2014 को एबीएचएम ने गोडसे का मंदिर बनाने का फैसला किया था. इसी साल की शुरुआत में राजस्थान के अलवर में बने एक पुल का नामकरण गोडसे के नाम पर करने का प्रस्ताव दिया था.

ऐसी छिटपुट घटनाओं की वजह से लोगों को एक-दो चीजों पर यकीन हो सकता है. पहली यह कि गोडसे के लिए लोगों के मन में सम्मान है. अदालत में दिए गए उसके खतरनाक बयान को देखते हुए यह बात काफी परेशान करने वाली मालूम पड़ती है.

दूसरे, कुछ लोग यह भी मान सकते हैं कि गोडसे के प्रति इस सम्मान को इसलिए बढ़ावा मिल रहा है क्योंकि केंद्र में बीजेपी की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ आई है. हालांकि सच्चाई अपनी जगह पर है और इन दो निष्कर्षों से बदलने वाली नहीं है.

हिंदू महासभा संघ परिवार का हिस्सा नहीं है. दोनों की विचारधाराओं में भी ठीक वैसी ही भिन्नता है जैसी कि नक्सलियो और कम्युनिस्‍ट पार्टी ऑफ इंडिया की विचारधाराओं में.

गोडसे के पक्ष में हाल-फिलहाल ढेर सारी बाते हुई हैं. लेकिन यह वाकई में उसके प्रति बढ़े सम्मान के चलते हैं या फिर सुर्खियों में जगह पाने के लिए, यह अभी बहस का विषय है.

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Published: 15 Nov 2015,02:25 PM IST

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