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सिनेमाघर में राष्ट्रगान: केंद्र की SC से आदेश में बदलाव की गुजारिश

थियेटर्स में फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य करने के मामले में केंद्र सरकार के रुख में बदलाव आया है

क्विंट हिंदी
भारत
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सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के नियम पर पर केंद्र सरकार अब बैकफुट पर नजर आ रही है 
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सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के नियम पर पर केंद्र सरकार अब बैकफुट पर नजर आ रही है 
(फोटो: द क्विंट)  

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अपने रुख में बदलाव लाते हुए केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया है कि सिनेमाघरों में किसी फिल्म की शुरुआत से पहले राष्ट्रगान बजाने को अनिवार्य बनाने के उसके पहले के आदेश में बदलाव किया जाना चाहिए. इस संबंध में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है.

क्या कहा सरकार ने?

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा है कि विभिन्न मंत्रालयों को मिलाकर पिछले साल 5 दिसंबर को एक कमिटी का गठन किया गया है, ताकि इस बारे में वह नई गाइडलाइंस तैयार कर सके. यह कमिटी अगले 6 महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि इसमें सूचना और प्रसारण, रक्षा, विदेश, संस्कृति, महिला और बाल विकास, अल्पसंख्यक कार्य, कानूनी मामलों के विभाग और संसदीय कार्य मंत्रालय समेत विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि होंगे.

सरकार ने कहा है कि कमिटी को राष्ट्रगान से जुड़े अनेक विषयों पर व्यापक विचार-विमर्श करना होगा और कई मंत्रालयों के साथ गहन मंथन करना होगा. कमिटी के सुझाव के बाद ही यह तय किया जा सकेगा कि सरकार की ओर से इस संबंध में कोई नोटिफकेशन या सर्कुलर जारी किया जाए या नहीं. केंद्र ने कहा है कि तब तक 30 नवंबर, 2016 के राष्ट्रीय गान के अनिवार्य करने के आदेश से पहले की स्थिति बहाल हो. मंगलवार को इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी.

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कोर्ट ने दिया था सुझाव

23 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि सिनेमाहॉल और दूसरी जगहों पर राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य हो या नहीं, इसे वह (सरकार) तय करे. इस संबंध में जारी कोई भी सर्कुलर कोर्ट के अंतरिम आदेश से प्रभावित न हो. साथ ही इस मामले में कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह भी देखना चाहिए कि सिनेमाहॉल में लोग मनोरंजन के लिए जाते हैं, ऐसे में देशभक्ति का क्या पैमाना हो, इसके लिए कोई कानून तय होनी चाहिए या नहीं? इस तरह के नोटिफिकेशन या नियम का मामला संसद का है, लिहाजा यह काम कोर्ट पर क्यों थोपा जाए?

गौरतलब है कि नवंबर 2016 के इस फैसले के समर्थन में आने के केंद्र के रुख का कई कार्यकर्ताओं ने विरोध किया था. फैसले के करीब एक साल बाद आदेश को लागू किया गया था.

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