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नेशनल हेल्थ मिशन को लागू हुए 13 साल बीत चुके हैं, लेकिन अब भी कई राज्यों में लोगों को इसका पूरा फायदा नहीं मिल रहा है. एनएचएम की तरफ से जारी 11वीं कॉमन रिव्यू मिशन (सीआरएम) रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों को सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, असम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में डायबीटिज और हाइपरटेंशन जैसी क्रॉनिक डिजीज के इलाज में लोगों को काफी पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. मरीजों और उनके रिश्तेदारों को इन बीमारियों के लिए अस्पताल के बाहर से मेडिसिन खरीदने में अपने जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं.
दवाओं के साथ-साथ बीमारियों की जांच के लिए भी लोगों को अपने पॉकेट से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तेलंगाना और नगालैंड के अस्पतालों में सभी बीमारियों की जांच की सुविधा मौजूद नहीं है. ऐसे में लोगों को अस्पताल के बाहर से टेस्ट कराने पड़ते हैं. इसके लिए उन्हें अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं.
गर्भवती महिलाओं की सेहत और सुरक्षित डिलिवरी के लिए सरकार की तरफ से जननी सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) चलाया जा रहा है. इसके तहत गर्भवास्था के दौरान होनेवाली सभी प्रमुख जांचों से लेकर, टीकाकरण, बच्चे की डिलीवरी, मेडिसिन और अस्पताल आने-जाने की सभी सुविधाओं की मुफ्त व्यवस्था है. लेकिन एनएचएम की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के कई राज्यों में लोगों को इसके लिए 5000 रुपये तक खर्च करने पड़ रहे हैं.
देशभर में टीबी के मरीजों लिए मुफ्त में 'डॉट्स' (दवा) की व्यवस्था है. लेकिन एनएचएम की इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में टीबी की दवा की काफी कमी रहती है.
देशभर में फैमिली प्लानिंग की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर है. एनएचएम की रिपोर्ट के मुताबिक, साल-2017-18 के दौरान पिछले साल अक्टूबर तक देशभर में कुल 14,73,418 नसबंदी हुई. इनमें 93.1% फीसदी महिलाओं ने इसे कराया, जबकि पुरुषों की भागीदारी महज 6.8 फीसदी की रही.
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