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Naveen Chourey Interview: “आवाज उठाने वाले के हाथ में ही क्यों है हथकड़ी?”

"जिसे कहते हैं सब सूरज यहां पर, सुबह के नाम पर धोखाधड़ी है"- नवीन चौरे

मोहम्मद साकिब मज़ीद
भारत
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<div class="paragraphs"><p>Naveen Chourey Interview: “आवाज उठाने वाले के हाथ में ही क्यों है  हथकड़ी?”</p></div>
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Naveen Chourey Interview: “आवाज उठाने वाले के हाथ में ही क्यों है हथकड़ी?”

(फोटो- क्विंट हिंदी/ऋभू चटर्जी)

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एक सड़क पर ख़ून है,

तारीख़ तपता जून है

एक उंगली है पड़ी

और उसपे जो नाख़ून है

नाख़ून पर है एक निशां

अब कौन होगा हुक्मरां

जब चुन रही थी उंगलियां

ये उंगली भी तब थी वहां

फिर क्यों पड़ी है ख़ून में?

जिस्म इसका है कहां?

मर गया कि था ही ना

कौन थे वो लोग जिनके हांथ में थी लाठियां?

ये कविता मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के होशंगाबाद से संबंध रखने वाले युवा कवि नवीन चौरे (Naveen Chourey) की कलम से निकली है. इस कविता का उन्वान है ‘वास्तविक कानून’. उन्होंने यह कविता उस वक्त लिखी थी, जब भारत में लगातार मॉब लिंचिंग की घटनाएं देखने को मिल रही थीं.

नवीन चौरे ने क्विंट के साथ हुई खास बातचीत में कहा कि वो सड़क मेरी जिंदगी में अभी भी है, जिस पर खून होने की बात मैंने अपनी कविता में कही है. मेरे दिमाग में वो पूरी दुनिया है...वो खून साफ हो गया है लेकिन और भी खून आ गए हैं, उन सड़कों के आस-पास ही पूरा भारत अभी-भी चल रहा है.

मॉब लिंचिंग पर लिखने के अलावा उन्होंने कई अन्य मुद्दों पर कविताएं लिखी हैं...

फिक्र है गर आपको भी आज हिंदुस्तान की

एक मिनट की बंद पुड़िया दीजिएगा ध्यान की

क्यों बुराई बढ़ रही है पूछिए मत सोचिए

कीमतें कम क्यों हुईं इंसान के ईमान की?

मेरा बेसिक सवाल ये है कि क्यों किसी का मन करता है कि किसी का हक मार ले. किसी भी सिस्टम को ठीक करने के दो तरीके होते हैं- एक तरीका है कि जो दबा-कुचला है उसको आप हक मांगना सिखाएं और दूसरा है कि हक मारने वाले को सिखाएं कि वो किसी का हक ना मारे. दोनों एक साथ काम करते हैं लेकिन मेरा फोकस दूसरे वाले पर ज्यादा है.
नवीन चौरे, कवि
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नवीन चौरे ने आगे बताया कि एक कविता मैंने ऐसी लिखी है, जिससे मैं खुद को समझ पाया हूं.

मुझे नहीं समझना ब्रम्हांड में और कितनी दिशाएं हैं

विज्ञान खोज लेगा...

मुझे नहीं जानना जीवन की उत्पत्ति क्यों हुई

परिकल्पनाएं धर्म पर छोड़ता हूं

मुझे समझना है...मुझे बस समझना है कि खूनखाने में ऐसा क्या है

कि द्विपाई, मरे हुए से ज्यादा मारकर खाने लगा

प्रश्न नया है, उत्तर दूर, समय लगेगा, तब तक आओ

संज्ञा में संवेदना बढ़ाते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि मैंने जिस मुद्दे ‘मॉब लिंचिंग’ पर कविता लिखी वो 2017 की बात थी. मौजूदा वक्त में उससे बड़ी समस्याएं हैं.

नुकीले दांत हैं सिर पर खड़ी है

मुसीबत मौत से ज़्यादा बड़ी है

तुम्हारी क़ब्र पर मेला लगेगा

हमारी लाश नाले में सड़ी है

जिसे कहते हैं सब सूरज यहां पर

सुबह के नाम पर धोखाधड़ी है

उजालों के दिए बुझने लगे हैं

अंधेरों ने जला ली फुलझड़ी है

उठाता है यहां आवाज जो भी

उसी के हाथ में क्यों हथकड़ी है?

तुम्हारा क़त्ल करना देशभक्ति

हमारा सांस लेना मुख़बिरी है!  

किसी ने नाम पूछा डर गए हम

हमारी ज़िंदगी कोई ज़िंदगी है!

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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