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क्रिकेट की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वाले नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की मुश्किलें सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ा दी है. सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अपने ही फैसले को बदलते हुए सिद्धू को 1 साल के कैद की सजा सुनाई है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को सजा सुनाई है. अब सिद्धू के लिए आगे का रास्ता क्या है? क्या सिद्धू को जेल जाना ही पड़ेगा या उनके पास कोई और रास्ता है?
दरअसल, 1988 Road Rage मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सिद्धू को 3 साल की सजा सुनाई थी और 1 लाख रुपए का जुर्माना लगाया था. इसके बाद सिद्धू ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 323 के तहत दोषी पाया था. लेकिन, गैर इरादतन हत्या (304) के तहत दोषी नहीं पाया था. इसमें सिद्धू को जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया था.
इसके बाद मृतक गुरनाम सिंह के परिजनों ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटिशन दाखिल किया. इस पिटिशन में परिजनों ने कहा था कि इतनी कम सजा न्याय संगत नहीं हैं. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट रिव्यू पिटिशन पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया.
गुरुवार, 19 मई को रिव्यू पिटिशन पर ही फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राचीन धर्म शास्त्र भी कहते रहे हैं कि पापी को उसकी उम्र, समय और शारीरिक क्षमता के मुताबिक दंड देना चाहिए. दंड ऐसा भी नहीं हो कि वो मर ही जाए बल्कि दंड तो उसे सुधारने और उसकी सोच को शुद्ध करने वाला हो. पापी या अपराधी के प्राणों को संकट में डालने वाला दंड नहीं देना उचित है.
ऐसे में नवजोत सिंह सिद्धू के पास कोई विकल्प नहीं बचता है. क्योंकि, देश की सर्वोच्च न्यायालय ने रिव्यू पिटिशन पर ही फैसला सुनाया है. तो ऐसे में सिद्धू दोबारा रिव्यू पिटिशन नहीं डाल सकते हैं.
हां, नवजोत सिंह सिद्धू के पास एक विकल्प जरूर खुला है, वो है क्यूरेटिव पिटीशन. नवजोत सिंह सिद्धू सुप्रीम कोर्ट के फैसले को क्यूरेटिव पिटीशन के जरिए चुनौती दे सकते हैं. हालांकि, यह सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करता है कि वह इस पर सुनवाई करेगा या नहीं.
आगे की राह क्या?
हालांकि, लोगों के मन सवाल बना हुआ है कि क्या आगे नवजोत सिंह सिद्धू कोई चुनाव नहीं लड़ सकते हैं. तो बता दें कि नवजोत सिंह सिद्धू आगे चुनाव लड़ सकते हैं. क्योंकि, सिद्धू को सिर्फ एक साल की सजा मिली है.
सजा होने पर जनप्रतिनिधियों के लिए क्या है नियम?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 विधायकों की नियुक्ति, अयोग्यता आदि के नियमों को निर्धारित करता है. अधिनियम की धारा 8(3) के तहत, यदि किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाता है और दो या अधिक वर्षों के कारावास की सजा सुनाई जाती है, तो उसे दोषसिद्धि की तारीख से संसद या राज्य विधानमंडल में किसी भी पद पर रहने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. उन्हें उनकी अंतिम रिहाई की तारीख से अतिरिक्त छह वर्षों के लिए भविष्य के किसी भी कार्यालय को धारण करने से भी अयोग्य घोषित किया जाता है.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, 27 दिसंबर 1988 को पटियाला के मार्केट में एक विवाद हुआ था. यह विवाद पार्किंग को लेकर था. बताया जाता है कि जब पीड़ित और उसके साथ दो अन्य लोग बैंक से पैसा निकालने के लिए जा रहे थे, उस समय सड़क पर जिप्सी खड़ी थी. जिप्सी को देखकर सिद्धू से उसे हटाने को कहा. इसको लेकर बहसबाजी शुरू हो गई.
साल 2006 में हाईकोर्ट से मिली थी 3 साल की सजा
इस मामले में सिद्धू पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज हुआ. सेशन कोर्ट में केस चला. 1999 में सेशन कोर्ट ने केस को खारिज कर दिया था. लेकिन, 2002 में पंजाब सरकार ने सिद्धू के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की.
हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
उसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू और संधू को सभी आरोपों से बरी कर दिया. हालांकि, कोर्ट ने रोड रेज मामले में सिद्धू पर 1 हजार रुपये का जुर्माना लगाया. इसी फैसले पर पीड़ित पक्ष की तरफ से पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को एक साल की सजा सुनाई है.
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