Home News India लखनवी तहजीब के रखवाले नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला का इंतकाल,तस्वीरों में उनकी विरासत
लखनवी तहजीब के रखवाले नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला का इंतकाल,तस्वीरों में उनकी विरासत
Nawab Jafar Mir Abdullah: लखनऊ के नवाब जाफर मीर को एक्टिंग, थियेटर और फिल्मों का बहुत शौक था.
आकृति हांडा & अशर असरार
भारत
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अवध के शाही परिवार के प्रमुख, नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला का 18 अप्रैल को लखनऊ में निधन हो गया.
(फोटो: Accessed by The Quint)
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अवध के शाही परिवार के एक प्रमुख चेहरे नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला का 18 अप्रैल को लखनऊ के विवेकानंद अस्पताल में निधन हो गया. उनकी उम्र 72 वर्ष थी.
(फोटो: Accessed by The Quint)
नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला पिछले एक साल से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे. उन्हें डायलिसिस के लिए शुक्रवार को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जिसके बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई.
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उनके परिवार में उनके भाई नवाब मसूद अब्दुल्ला (बाएं) और तीन बेटियां शिरीन, निशात और मनरुख हैं. दुनियाभर से लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. नवाब जाफर मीर अब्दुल्ला के जीवन और विरासत पर एक नजर.
(फोटो: Accessed by The Quint)
नवाब जाफर मीर को अनोखी चीजों को इकट्ठा करने का शौक था और वो प्राचीन वस्तुओं और कलाकृतियों के प्रेमी थे. लखनऊ में उनके महलनुमा घर - जिसे शीश महल के नाम से जाना जाता है - में उनका एक अलग कमरा था, जहां उन्होंने अपनी सभी यादगार चीजें रखी थीं.
(फोटो: Accessed by The Quint)
प्राचीन वस्तुओं में सोने की परत चढ़े झूमर, पीतल के पीकदान और चांदी से बने हुक्के शामिल थे. नवाब मसूद ने द क्विंट को बताया, "वो लखनऊ की विरासत के संरक्षक थे, और विडम्बना है कि उनका निधन वर्ल्ड हेरिटेज डे पर हुआ." उन्होंने आगे कहा कि परिवार ने उत्तर प्रदेश सरकार से उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करने की अपील की है.
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एक स्थानीय ने द क्विंट को बताया, "लखनऊ की तहजीब संजोने और लोगों को अपना मुरीद बना देने वाली शख्सियत थे वो." उन्होंने कहा कि लोग अपनी समस्याओं को लेकर उनके पास आते थे, और वो धैर्यपूर्वक सुना करते थे.
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नवाब जाफर मीर, नवाब आसफ-उद-दौला के वंशज हैं, जो 1775 से 1797 तक अवध के शासक थे और उन्होंने लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण शुरू किया था. 17 मार्च 1951 को जन्मे जफर मीर ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीएससी (ऑनर्स) और फिर लखनऊ यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की. 2 नवंबर 1994 को उनके पिता मीर अब्दुल्ला के निधन के बाद, उन्होंने प्राचीन वस्तुओं के पारिवारिक कारोबार को संभाला. इससे पहले उन्होंने एक दवा कंपनी में मैनेजर के रूप में काम किया था.
(फोटो: Accessed by The Quint)
नवाब जाफर मीर के भाई नवाब मसूद अब्दुल्ला ने द क्विंट को बताया, "उनके वंश का पता ईरान के शाहबुर से सफदर अली खान और सज्जाद अली खान से जोड़ा जा सकता है, जो अवध आए थे, जब आसिफ-उद-दौला शासक थे."
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नवाब जाफर मीर को एक्टिंग, थियेटर और फिल्मों का बहुत शौक था. सात भाई-बहनों में सबसे छोटे नवाब मसूद ने कहा, "उन्होंने कई नाटकों में एक्टिंग की, जो लखनऊ की 'गंगा-जमुनी' तहजीब को दिखाते थे. इनमें जान-ए-आलम, दिल्ली मुशायरे की आखिरी शमा और मैं उर्दू हूं शामिल हैं."
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एक किस्से बताते हुए, नवाब मसूद ने द क्विंट को बताया कि उमराव जान के डायरेक्टर फिल्म में नवाब (जिसे फारूक शेख ने निभाया था) के कैरेक्टर से तब तक सहमत नहीं थे, जब तक कि जफर मीर ने उन्हें अपनी एक प्राचीन अंगूठी उधार नहीं दी थी. उन्होंने कहा, "उनकी अंगूठी के बगैर अधूरी थी उमराव जान."
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नवाब जाफर मीर कई बॉलीवुड फिल्मों, जैसे 'गदर-एक प्रेम कथा' और 'इश्कजादे' में कैमियो में दिखाई दिए. 'मैडम चीफ मिनिस्टर' में उन्होंने यूपी के राज्यपाल की भूमिका निभाई. बीबीसी मिनीसरीज 'ए सूटेबल बॉय' में भी उन्हें देखा गया था.
(फोटो: Accessed by The Quint)
नवाब मसूद ने द क्विंट को बताया, "वो आगामी फिल्मों 'गदर 2' और 'लाल बत्ती' में भी नजर आएंगे, जिसके लिए उन्होंने पिछले महीने ही शूटिंग की थी." अमिताभ बच्चन और आयुष्मान खुराना की फिल्म 'गुलाबो सीताबो' समेत कई फिल्मों के लिए उन्होंने पुराने आभूषण, कपड़े और प्रॉप शेयर किए थे.
(फोटो: Accessed by The Quint)
यहां उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के साथ देखा जा सकता है. वाजपेयी ने नवाब जाफर मीर को लखनऊ में ईद मिलन समारोह के दौरान आमंत्रित किया था.
(फोटो: Accessed by The Quint)
नवाब मीर जाफर को पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को सम्मानित करने के लिए लखनऊ की नवाबी संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में भी बुलाया गया था, जब उन्होंने लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयी विज्ञान केंद्र का दौरा किया था. इस मौके पर बीजेपी नेता और पूर्व उप-प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी नजर आ रहे हैं.
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यहां नवाब जाफर मीर को समाजवादी पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ 2016 में लखनऊ के लोक भवन में नवाब को यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किए जाने के बाद देखा जा सकता है.
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नवाब मसूद ने कहा, "वो सबसे बड़े भाई थे. स्वाभाविक रूप से, मैं उनके काफी करीब था. मैं उन्हें अपने पिता के रूप में देखता था. हम सब कुछ एक साथ करते थे. उनके निधन ने मेरे जीवन में एक खालीपन पैदा कर दिया है. जहां तक सांस्कृतिक विरासत का संबंध है, लखनऊ उनके निधन के साथ अनाथ हो गया है." उन्होंने याद किया कि कैसे दोनों लखनऊ की तहजीब पर लेक्चर देते थे और युवा छात्रों को सिखाते थे कि आदाब सही तरीके से कैसे किया जाए. नवाब मसूद लखनऊ यूनिवर्सिटी में कॉमर्स के प्रोफेसर हैं और पारिवारिक कारोबार भी देखते हैं.