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न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीडीएसए) ने पाया है कि न्यूज चैनल ज़ी न्यूज ने 19, 20 और 26 जनवरी 2021 को प्रसारित तीन कार्यक्रमों में आचार संहिता और प्रसारण मानकों का उल्लंघन किया है.
चैनल के खिलाफ इंजीनियर और LGBTQI+ एक्टिविस्ट इंद्रजीत घोरपड़े द्वारा की गई शिकायत की समीक्षा करने के बाद NBDSA ने वीडियो को हटाने के निर्देश दिए हैं.
आपको बता दें कि NBDSA भारतीय समाचार टेलीविजन प्रसारकों का एक निजी और स्वैच्छिक संघ है.
पहली शिकायत
घोरपड़े ने 25 जनवरी को किसानों के विरोध के बारे में ज़ी न्यूज़ के दो कार्यक्रमों की शिकायत की, जिसका शीर्षक था 'ताल ठोक के : खालिस्तान से कब सावधान होगा किसान?' और 'ताल ठोक के : नहीं माने किसान तो क्या गणतंत्र दिवस पर होगा' गृह युद्ध?' ये प्रोग्राम क्रमशः 19 और 20 जनवरी को इस न्यूज चैनल में प्रसारित किए गए थे.
शिकायतकर्ता के अनुसार, कार्यक्रमों ने एनबीडीएसए के कोड का उल्लंघन किया है. कोड यह निर्दिष्ट करता है कि रिपोर्टिंग को "दर्शकों के बीच सनसनीखेज या घबराहट, पीड़ा, या अनुचित भय उत्पन्न नहीं करना चाहिए. तथ्यात्मक अशुद्धियों को जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए और सुधार को प्रमुखता दी जानी चाहिए.
घोरपड़े ने शिकायत की थी कि दोनों कार्यक्रमों में मॉडिफिकेशन्स के साथ ट्रैक्टरों के असत्यापित व अपुष्ट वीडियो प्रसारित किए गए थे और ज़ी न्यूज़ ने अभी तक इस गलती के लिए माफी नहीं मांगी है. उनकी शिकायत में चैनल की कुछ सुर्खियों और टिकर के उदाहरण भी शामिल थे, जिनके बारे में उन्होंने दावा किया कि उन्होंने (जी न्यूज ने) चैनल की आचार संहिता का उल्लंघन किया और यह स्पष्ट किया कि "प्रोग्रामिंग का लक्ष्य विरोध करने वाले किसानों के कारण को रोकना था.
उनके अनुसार, "युद्ध" शब्द की विशेषता वाले कई टिकर और सुर्खियों को प्रसारित किया गया और इन्हें एंकर के शुरुआती बयान में शामिल किया गया था. घोरपड़े के अनुसार कुछ अन्य शब्द इस प्रकार थे जैसे "गणतंत्र के खिलाफ युद्ध," "गणतंत्र दिवस पर गृहयुद्ध," "ट्रैक्टर मार्च या युद्ध," "गणतंत्र के खिलाफ युद्ध की साजिश," और "विरोध में आतंक ट्रैक्टर-ट्रेलर".
घोरपड़े ने आगे कहा कि एंकर ने कई निराधार बयान भी दिए जैसे कि सिंघु बॉर्डर खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों का अड्डा बन गया. उन्होंने यह भी कहा कि कार्यक्रमों के दौरान एंकर ने प्रदर्शन कर रहे किसानों को एक प्रतिबंधित संगठन, सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) से भी बार-बार जोड़ा था.
घोरपड़े ने 29 जनवरी को दर्ज एक अन्य शिकायत में आरोप लगाया कि एंकर ने "बार-बार कहा कि एक प्रदर्शनकारी किसान ने दिल्ली में लाल किले से भारत के राष्ट्रीय ध्वज को हटा दिया और उसके स्थान पर खालसा झंडा फहराया."
हालांकि, शिकायतकर्ता ने कहा कि यह एक गलत दावा है, क्योंकि वीडियो फुटेज से यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि फेंका गया झंडा भारत का राष्ट्रीय ध्वज नहीं था, बल्कि संभवतः भारतीय किसान संघ (बीकेयू) का झंडा था.
घोरपड़े ने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि इसी दावे को कई समाचार संगठनों ने खारिज कर दिया था.
ज़ी न्यूज़ ने आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि जो दावे किए गए थे वे "पूरी तरह से गलत थे, प्रेरित थे और आक्षेपित प्रसारणों की सामग्री की व्याख्या पूरी तरह से गलत तरीके से की गई है."
"पहले दो आक्षेपित कार्यक्रमों में किसान विरोध में खालिस्तानी तत्वों की भागीदारी से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक निष्पक्ष और ऑब्जेक्टिव पैनल डिस्कशन / डिबेट शामिल थी और तीसरा प्रोग्राम 26.01.2021 को लाल किले से एक लाइव टेलीकास्ट से संबंधित था, जिसमें कुछ तत्व लाल किले पर किसान संघ का झंडा फहराते हुए दिखाई दे रहे थे."
घोरपड़े की पहली शिकायतों के जवाब में ज़ी न्यूज़ ने इस बात से इनकार किया कि उसने "आम जनता के मन में सनसनी फैलाने और डर या भय पैदा करने की कोशिश की."
"उन्होंने (जी न्यूज ने) किसानों के विरोध को दबाने की कोशिश की", इस आरोपों के जवाब में जी न्यूज ने कहा कि "इसने हमेशा एक स्टैंड लिया है कि किसान वास्तव में सबसे बड़े देशभक्त व अन्नदाता हैं और यह शांतिपूर्ण विरोध का पक्षधर है."
इसके अलावा, ज़ी न्यूज़ ने दावा किया कि उसके द्वारा प्रसारित ट्रैक्टरों के असत्यापित फुटेज को "एक उचित नोटिस के साथ दिखाया गया था कि ये वायरल फिल्में थीं जिन्हें सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा था और इसके चैनल ने इसकी प्रामाणिकता का दावा नहीं किया था."
ज़ी न्यूज़ ने आगे बताया कि सबूत किसानों के प्रदर्शन में खालिस्तान समर्थक समूहों के शामिल होने की ओर इशारा करते हैं.
चैनल ने आगे कहा कि "यहां इस बात पर भी गौर करना जरूरी है कि किसानों के विरोध में खालिस्तान समर्थक तत्वों की घुसपैठ के संबंध में उपरोक्त चिंता को केंद्र द्वारा भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भी दोहराया गया था."
ज़ी न्यूज़ के अनुसार, दो कार्यक्रमों का उद्देश्य "गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर रैली आयोजित करने के बारे में किसानों के रुख के संबंध में सभी दृष्टिकोणों को सामने रखना और यह चिंता भी व्यक्त करना था कि यदि कोई अप्रिय घटना होती है तो इसमें जिम्मेदार किसे ठहराया जाएगा?"
घोरपड़े की दूसरी शिकायत थी कि चैनल ने दावा किया कि प्रदर्शनकारियों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया गया था. इसके जवाब में जी न्यूज ने कहा कि यह वाक्या एक लाइव प्रसारण के दौरान हुआ था.
ज़ी न्यूज़ के अनुसार एंकर ने एक चूक के कारण कहा था कि राष्ट्रीय ध्वज को हटाने के बाद बीकेयू का झंडा फहराया गया था. साथ ही यह भी कहा कि इसके बाद संबंधित YouTube वीडियो को सुधारात्मक कार्रवाई के रूप में हटा दिया गया था.
ज़ी न्यूज़ को जवाब देते हुए, घोरपड़े ने कहा कि राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के दावे के वीडियो लिंक को हटा दिया गया था, लेकिन जैसा कि NBDSA के दिशानिर्देशों में आवश्यक है उस अनुसार चैनल द्वारा इसके बारे में कोई स्पष्टीकरण प्रमुखता से प्रसारित नहीं किया गया था.
उन्होंने यह भी कहा कि "वह यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि उपरोक्त त्रुटि एक निरीक्षण के कारण हुई थी, क्योंकि लाइव प्रसारण के दौरान त्रुटि होने के बाद भी, चैनल अपने डिजिटल माध्यमों जैसे यूट्यूब और ट्विटर के जरिए उसी गलत जानकारी को फैलाना जारी रखता है."
द क्विंट की वेबकूफ (WebQoof) टीम उन लोगों में से थी जिन्होंने ज़ी न्यूज़ के इस दावे का फैक्ट-चेक किया था और इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि तिरंगे को कभी भी लाल किले से नहीं हटाया गया था.
इसके अलावा, 19 और 20 जनवरी के कार्यक्रमों के बारे में ज़ी न्यूज़ द्वारा दिए गए जवाब के संबंध में घोरपड़े ने आरोप लगाया कि यह जानने के बावजूद कि जी न्यूज द्वारा प्रसारित संशोधित ट्रैक्टरों के असत्यापित वीडियो जर्मनी में आयोजित एक असंबंधित घटना से थे, चैनल कोई सुधार प्रदान करने में विफल रहा.
हम जिस वीडियो पर चर्चा कर रहे हैं उस वीडियो में किसान आंदोलन के जरिए होने वाली ट्रैक्टर रैली में प्रयुक्त होने वाले सजे-धजे ट्रैक्टरों को दिखाने के लिए फुटेज का इस्तेमाल किया गया था.
द क्विंट की वेबकूफ टीम ने इस दावे के तथ्यों की जांच की थी और इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि यह जर्मनी में क्रिसमस से संबंधित सजावट करने वाले वाहनों को दिखाने वाला एक पुराना वीडियो था.
घोरपड़े ने अपने जवाब में आगे कहा कि ज़ी न्यूज़ ने "कई बार बिना किसी संज्ञेय सबूत यानी कॉग्निजेबल एविडेंस के रिपोर्ट किया था कि खालिस्तानी आतंकवादियों ने रैली में घुसपैठ की थी. जबकि जी न्यूज ने रिपोर्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने विरोध में खालिस्तानी घुसपैठ के बारे में बात की थी, उन्होंने बताया कि शीर्ष अदालत ने वास्तव में उनसे एक हलफनामा पेश करने का अनुरोध किया था जिसमें आंदोलन में खालिस्तानी घुसपैठ के किसी भी सबूत का संकेत दिया गया था
एनबीडीएसए NBDSA ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी धार्मिक चिन्ह या झंडे के बारे में समाचार प्रसारित करते समय समाचार प्रसारकों को अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए और आचार संहिता और प्रसारण मानकों के मूल सिद्धांतों का पालन करना चाहिए.
शिकायतकर्ता द्वारा रिपोर्ट की गई हेडलाइंस और टिकर की समीक्षा के बाद NBDSA ने फैसला सुनाया कि जी न्यूज की हेडलाइन और टिकर आचार संहिता और प्रसारण मानकों तथा रिपोतार्ज कवर करने के लिए दिए गए विशिष्ट दिशा-निर्देश, मौलिक मानकों और दिशानिर्देश 1 और 2 का स्पष्ट उल्लंघन कर रहे थे.
इस पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त करते हुए, एनबीडीएसए ने निर्देश दिया है कि उक्त प्रसारण का वीडियो, यदि अभी भी चैनल की वेबसाइट, या यूट्यूब, या किसी अन्य लिंक पर उपलब्ध है, तो उसे तुरंत हटा दिया जाना चाहिए. निकाय ने यह भी कहा है कि सात दिनों के भीतर एनबीडीएसए को लिखित रूप में इसकी पुष्टि की जाए.
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