Home News India अपनी आबादी के अनुपात से ज्यादा दलित-मुस्लिम जेल में: NCRB डेटा
अपनी आबादी के अनुपात से ज्यादा दलित-मुस्लिम जेल में: NCRB डेटा
दलितों-मुसलमानों के लिए 2015 से कितनी बदली स्थिति?
क्विंट हिंदी
भारत
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सांकेतिक तस्वीर
(फोटोः हर्ष साहनी/ द क्विंट)
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने हाल ही में साल 2019 के लिए 'कारागार सांख्यिकी' रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में जाति, धर्म जैसे अलग-अलग आधार पर देश की जेलों में बंद कैदियों से जुड़े आंकड़े दिए गए हैं. इन आंकड़ों से पता चलता है कि समाज में हाशिए पर रहने वाले वर्गों की जेल में संख्या, आबादी में उनके अनुपात से कहीं ज्यादा है.
चलिए, NCRB के आंकड़ों के जरिए देखते हैं कि साल 2019 में देश की जेलों में दलितों, अनुसूचित जनजातियों और मुसलमानों को लेकर क्या स्थिति थी:
अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस ने NCRB रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि साल 2019 के आखिर में, देशभर की जेलों में बंद कुल दोषी कैदियों में दलित 21.7 फीसदी थे. वहीं, जेलों में विचाराधीन कैदियों के बीच अनुसूचित जातियों का हिस्सा 21 फीसदी था. हालांकि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, आबादी में उनका हिस्सा 16.6 फीसदी है.
जेल में बंद दोषी कैदियों में से 13.6 फीसदी कैदी अनुसूचित जनजाति के थे, जबकि विचारधीन कैदियों में उनका हिस्सा 10.5 फीसदी था. हालांकि जनगणना के मुताबिक, देश की आबादी में उनका हिस्सा 8.6 फीसदी है.
धर्म के आधार पर कैदियों से जुड़े आंकड़ों की बात करें तो सभी दोषी कैदियों में मुसलमानों की संख्या 16.6 फीसदी और विचाराधीन कैदियों में 18.7 फीसदी थी. जबकि देश की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 14.2 फीसदी है.
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इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इन आंकड़ों को लेकर ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के पूर्व प्रमुख एनआर वासन ने कहा, ''आंकड़ों से पता चलता है कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली न सिर्फ ढीली है, बल्कि गरीबों के खिलाफ भी भरी हुई है. जो लोग अच्छे वकील रख सकते हैं, उन्हें आसानी से जमानत मिल जाती है. आर्थिक मौकों की कमी के कारण भी गरीब छोटे-मोटे अपराधों में संलिप्त हो जाते हैं.''
OBCs और 'अगड़ी' जातियों की तस्वीर अलग
NCRB 'कारागार सांख्यिकी' रिपोर्ट 2019 के मुताबिक,
दोषी कैदियों में OBC के लोग 35 फीसदी थे, वहीं विचाराधीन कैदियो में उनका हिस्सा 34 फीसदी था. हालांकि नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन (NSSO) के 2007 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश की आबादी में OBSc का हिस्सा 40.94 है.
बाकियों में व्यापक रूप से 'अगड़ी जातियों' के हिंदू और अन्य धर्मों के गैर-हाशिए वाले वर्ग शामिल हैं. आबादी में इनका हिस्सा 19.6 फीसदी है, हालांकि दोषी कैदियों में उनका हिस्सा 13 फीसदी, जबकि विचाराधीन कैदियों में 16 फीसदी था.
दलितों-मुसलमानों के लिए 2015 से कितनी बदली स्थिति?
2019 के आंकड़ों की तुलना साल 2015 के NCRB डेटा से करें तो विचाराधीन कैदियों में मुसलमानों का अनुपात गिरा है. 2015 में विचाराधीन कैदियों में 20.9 फीसदी मुसलमान थे, और दोषी कैदियों में उनका हिस्सा 15.8 फीसदी था. जबकि 2019 में ये आंकड़े क्रमशः 18.7 फीसदी और 16.6 फीसदी थे.
हालांकि अनसूचित जातियों और अनसूचित जनजातियों के लिए स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है. 2015 में दोषी और विचाराधीन कैदियों में दलितों के हिस्से का आंकड़ा 21 फीसदी के आसपास था, जो 2019 में भी करीब 21 फीसदी है.
वहीं साल 2015 में अनुसूचित जनजातियों के लोग कुल दोषी कैदियों में 13.7 फीसदी थे, वहीं विचाराधीन कैदियों में उनका हिस्सा 12.4 फीसदी था. जबकि 2019 में ये आंकड़े क्रमशः 13.6 फीसदी और 10.5 फीसदी थे. मतलब यह है कि विचारधीन कैदियों में अनुसूचित जनजातियों का अनुपात थोड़ा गिरा है.