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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बता रहे हैं कि 2019 में खुदकुशी से मरने वाले कुल लोगों में सबसे ज्यादा तादाद दिहाड़ी मजदूरों की थी. उसके बाद नंबर आता है हाउस वाइफ्स का. 2019 के जारी आंकड़ों के मुताबिक किसानों और कारोबारियों ने भी ज्यादा खुदकुशी की. चिंता की बात है कि लॉकडाउन, मंदी के कारण 2020 में हालत और खराब होने की आशंका है.
सबसे पहले आपको कुल सुसाइड मामलों की जानकारी देते हैं, कि कैसे पिछले कुछ सालों में सुसाइड तेजी से बढ़े हैं. जहां साल 2015 में भारत में कुल 1,33,623 लोगों ने सुसाइड किया था, वहीं इसके अगले साल यानी 2016 में ये संख्या थोड़ी कम होकर 1,31,008 हो गई थी. इसके बाद 2017 में फिर से सुसाइड केस कम हुए और इस साल कुल 1,29,887 लोगों ने किसी न किसी वजह से खुदकुशी कर ली.
साल 2019 में सबसे ज्यादा सुसाइड महाराष्ट्र में हुए हैं. यहां कुल 18,916 लोगों ने सुसाइड किया. इसके बाद तमिलनाडु में 13,493 सुसाइड हुए. वहीं तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल रहा, जहां पिछले साल 12,665 लोगों ने अपनी जान दी. मध्य प्रदेश में 12,457 लोगों ने और इसके बाद कर्नाटक में 11,288 लोगों ने सुसाइड किया.
लेकिन अगर पूरे आंकडों पर नजर डालें तो 2019 में सबसे ज्यादा सुसाइड दिहाड़ी मजदूरों ने किए हैं. कुल सुसाइड मामलों में से सबसे ज्यादा 23.4 फीसदी सुसाइड डेली वेज पर काम करने वाले लोगों के हैं. पिछले साल पुरुषों के कुल आत्महत्या के मामले 97,613 थे, लेकिन इनमें से 29,092 सुसाइड दिहाड़ी मजदूरों के थे. या ऐसे लोगों के थे जो रोजाना कमाकर अपना घर चलाते हैं. वहीं कुल 11,599 बेरोजगारों ने इस साल आत्महत्या की.
एनसीआरबी ने अपने डेटा में ये भी बताया है कि पिछले साल देश में कितने सेल्फ एंप्लॉयड लोगों ने सुसाइड किया. खुद का बिजनेस करने वाले लोगों में कुल 16,098 लोगों ने सुसाइड किया. जो कि कुल सुसाइड (1,39,123) का 11.6 फीसदी है. इनमें महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 14.2 फीसदी, तमिलनाडु में 11.7 फीसदी, कर्नाटक में 9.7 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 8.2 और मध्य प्रदेश में 7.8 फीसदी सेल्फ एंप्लॉयड लोगों ने सुसाइड किया. वहीं अगर इस आंकड़े की तुलना इससे पिछले साल यानी 2018 के आंकड़ों से करें तो इसमें काफी ज्यादा उछाल आया है. 2018 में कुल 13,149 सेल्फ एंप्लॉयड लोगों ने सुसाइड किया था.
हर दूसरे दिन अखबार के किसी कोने में या फिर न्यूज चैनल के नीचे चलने वाली पतली सी पट्टी में आपको किसानों की आत्महत्या की खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि देश का किसान लगातार कमजोर होता जा रहा है, ऐसा हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि एनसीआरबी के आंकड़े बता रहे हैं. साल 2018 में कुल 5763 किसानों ने आत्महत्या की थी, जबकि 4,586 कृषि मजदूरों ने खुद अपनी जान ले ली. वहीं इसके एक साल बाद ये आंकड़ा बढ़ गया, 2019 में कुल 5,957 किसानों ने आत्महत्या की, वहीं खेतों में काम करने वाले 4324 मजदूरों ने भी खुदकुशी कर ली. जो कि कुल सुसाइड मामलों का 7.4 फीसदी है.
अब तक हमने जिन भी सुसाइड केस की बात की वो पिछले कुछ सालों के हैं, यानी कोरोना काल से पहले के सुसाइड केस हैं. लेकिन मार्च 2020 के बाद भारत में अचानक सुसाइड करने वालों की तादात बहुत ज्यादा बढ़ गई. हर तरफ से ऐसी खबरें सामने आने लगीं. जिसके बाद अब एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना और लॉकडाउन के कारण हालात काफी बुरे हो सकते हैं. भारत में आत्महत्याओं की संख्या में एक बड़ा उछाल देखने को मिल सकता है. इस दौरान हर वर्ग के लोगों के सुसाइड की खबरें सामने आईं, फिर चाहे वो लॉकडाउन में अपना सब कुछ गंवाने वाले दिहाड़ी मजदूर हों, बैंक का लोन और नुकसान झेलने वाले किसान हों या फिर बेरोजगारी की मार झेल रहे फिल्मी जगत के सितारे और युवा हों, हर तरफ यही छाया रहा. इसीलिए जब 2020 के आंकड़े जारी होंगे तो वो काफी चौंकाने वाले हो सकते हैं.
ILS में सेंटर ऑफ मेंटल हेल्थ, लॉ एंड पॉलिसी के डायरेक्टर डॉ सौमित्र पठारे ने क्विंट से बात करते हुए बताया कि जितने भी सुसाइड केस सामने आए हैं उनमें से ज्यादातर ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें कोई भी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम नहीं थी. यानी उन्होंने किसी और कारण से अपनी जान ली. उन्होंने कहा, "लोगों ने पहले कहा कि शराब की दुकानें बंद होने के कारण ऐसा हुआ है, इसके बाद चार हफ्ते के लंबे लॉकडाउन को वजह बताया गया, फिर कहा गया कि खुद को और परिवार को कोरोना होने के डर से लोग आत्महत्या कर रहे हैं. लेकिन इसके बाद लॉकडाउन के आखिर में हमने देखा कि लोग घरों में खाना नहीं होने के चलते, पैसों की कमी और बेरोजगारी के चलते आत्महत्या कर रहे हैं."
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