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जाने-माने जर्नलिस्ट, लेखक और कहानीकार नीलेश मिसरा के नाम से आप भी जरूर वाकिफ होंगे. उनकी रचनाएं अक्सर आम लोगों से कहीं न कहीं जुड़ी होती हैं. रेडियो पर किस्सागोई का उनका अंदाज तो एकदम ही जुदा होता है.
नीलेश मिसरा की ही मंडली के सदस्य हैं कंचन पंत, जिनकी लिखी एक कहानी है मुंजी की मेढ़ी.
जैसलमेर किले के बस दो मोड़ आगे है मुंजी की मेढ़ी. 8*6 की इस दुकान को मुंजी की मेढ़ी क्यों कहते हैं, इसकी भी एक कहानी है. कभी फुर्सत में मुंजी से मिलिएगा, तो वो अपनी कहानी सुनाएगी. लेकिन अभी नहीं, क्योंकि सीजन का टाइम है. टूरिस्ट दुकानों में ठुसे चले आ रहे हैं, दुकानदारों के पास दम लेने तक का वक्त नहीं है.
लेकिन मुंजी को जरा भी हड़बड़ी नहीं. वो इत्मीनान से अपने सामने बैठे जोड़े को साड़ियां दिखा रही थी.
'ये नमूना दीदी सा हमारी जैसलमेर की राजकुमारी को बहुत पसंद था. उनके पास हजार-हजार ओढ़नियां थीं.' जोड़े को ये बताते हुए मुंजी की आंखों में तारे उतर आए.
इसके बाद आगे क्या होता है, ये जानने के लिए सुनिए ये पूरी कहानी...
(ये कहानी Neelesh Misra के यूट्यूब चैनल से ली गई है)
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