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छापे में कितना कैश बरामद हुआ? कश्मीर में पिछले वीकेंड की रेड को लेकर हम लोगों के मन में पहला सवाल यही आता है. हालांकि, नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) के लिए बड़ा प्रश्न यह है कि लैपटॉप, पेन ड्राइव्स और रेड में इस तरह की जो दूसरी डिवाइस बरामद हुई हैं, उनमें कौन से राज छिपे हैं?
जांच एजेंसियों ने श्रीनगर, जम्मू, दिल्ली और हरियाणा में रोहतक जैसी जगहों पर हुर्रियत नेताओं के घरों पर जो छापे मारे, उनमें काफी दस्तावेज और सायबर डेटा बरामद हुए हैं.
एनआईए के एक बड़े अधिकारी ने मुझे बताया कि सभी दस्तावेजों और साक्ष्यों की पड़ताल में वक्त लगेगा और उसके बाद ही टेरर फंडिंग के बारे में नतीजे निकाले जाएंगे. श्रीनगर में छापे उनके नेतृत्व में मारे गए थे. उन्होंने दावा किया कि एजेंसी आरोपियों के खिलाफ मजबूत केस तैयार करेगी.
शमसाबरी रेंज को देखते हुए ये बेहद मुश्किल काम था. पैसे लाने वाले आतंकी जब अक्सर मारा जाया करते थे, तब जिन लोगों के घरों में नोटों से भरे ये बैग रखे हुए होते थे, वो अचानक से अमीर बन जाते थे.
1994 में आतंकवादियों के खिलाफ भारत के अभियान तेज करने के बाद काठमांडू, ढाका और कभी-कभार दुबई के रास्ते पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने अपने लोगों के साथ कैश भेजना शुरू किया. कई कश्मीरी आतंकवादियों को नेपाल के रास्ते कश्मीर भेजा गया क्योंकि भारतीय पहचान पत्र होने पर नेपाल से देश में आना बहुत आसान था. इसके लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं पड़ती थी.
21वीं सदी शुरू होने पर इंटरनेट, फंड ट्रांसफर का बड़ा जरिया बन गया. तब तक बैंक ट्रांसफर के बहाने भी ढूंढ लिए गए थे. एक तरीका एक्सपोर्ट ऑर्डर की रकम बढ़ाकर बताना था. ऐसा करने वाले सभी एक्सपोर्टर्स कश्मीरी मुस्लिम नहीं थे.
विदेश में रहने वाले कश्मीरियों के जरिये भी आतंकवाद का पैसा भेजा जाता था. आतंकवादी संगठनों का पैसा वे अपने परिवार के पास ट्रांसफर करते थे, जो यहां बैठे आतंकवादियों को सौंप दिया जाता था. बड़ी संख्या में कश्मीरी नौजवान खाड़ी देशों में नौकरी करते हैं.
NIA इन्हीं लोगों का सच सामने लाने की कोशिश कर रही है. NIA के इस अभियान का मकसद टेरर फंडिंग के इस रूट को बंद करना है, न कि आतंकवाद के लिए लाई जा रही रकम को इक्का-दुक्का मामलों में जब्त करना.
एनआईए की मुहिम के बाद कई अलगाववादी संगठनों के ‘नेताओं’ के सैलरी ट्रांसफर पर रोक लगने का संकेत मिलता है. ये अलगाववादी संगठन ‘हुर्रियत’ नाम से ऑपरेट करते हैं, जिसका मतलब ‘आजादी’ है.
1993 में 22 से अधिक संगठनों को मिलाकर ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (एपीएचसी) की स्थापना हुई थी. पाकिस्तान इसके कई बड़े नेताओं और टूटकर अलग हुए धड़ों के लीडर्स को सैलरी देता आया है. कुछ अलगाववादियों को दुनिया के दूसरे देशों से भी फंडिंग मिलती रही है. एनआईए और प्रवर्तन निदेशालय (ED) उनकी भी जांच करेंगे.
भारत सरकार ने पहले इस तरह की फंडिंग पर रोक नहीं लगाई थी, वह सिर्फ फंडिंग पर नजर रखती थी. खुफियां एजेंसियों का मकसद जांच का डर इन नेताओं के अंदर बनाए रखना था, जिससे ‘अलगाववादियों’ को नियंत्रण में रखा जा सके.
जब युवा कश्मीरियों की नई पीढ़ी साल 2008 में सड़कों पर उतरी, तब वह आराम से जिंदगी जी रहे कई हुर्रियत नेताओं के पास पहुंची और उनसे अपने प्रदर्शनों का नेतृत्व करने को कहा. हुर्रियत नेताओं की पहले इसमें दिलचस्पी नहीं थी और वे युवा पीढ़ी की इस मांग से हैरान थे.
इसके बावजूद बाद में उन्होंने इन प्रदर्शनों का नेतृत्व किया. साल 2008 में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन के ट्रांसफर से कश्मीर में एक बड़ा विद्रोह खड़ा हुआ. तब तक नई पीढ़ी का हुर्रियत नेताओं से मोहभंग हो गया था.
(लेखक कश्मीर में रहते हैं, लेखक और पत्रकार हैं)
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