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Aditya L1 मंजिल पर 126 दिन बाद पहुंचा, मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी कौन हैं?

Aditya L1 मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी की कहानी

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>"ISRO में केवल प्रतिभा मायने रखती है": Aditya L1 मिशन की डायरेक्टर निगार शाजी कौन हैं?</p></div>
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"ISRO में केवल प्रतिभा मायने रखती है": Aditya L1 मिशन की डायरेक्टर निगार शाजी कौन हैं?

(फोटो अल्टर्ड बॉय क्विंट हिंदी)

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), समय के साथ "विज्ञान और अंतरिक्ष" की दुनिया में भारत का स्वर्णिम इतिहास लिख रहा है. इसकी ताजा मिसाल ‘आदित्य एल-1’ मिशन है. सूर्य के अध्ययन के लिए देश का पहला अंतरिक्ष आधारित मिशन पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘लैग्रेंज प्वाइंट 1’ पर सफलतापूर्वक पहुंच गया है. सूर्य मिशन की कमान एक महिला वैज्ञानिक के हाथ में है. उनका नाम है निगार शाजी (Nigar Shaji). आदित्य एल-1 की सफलता के बाद निगार शाजी की दुनियाभर में चर्चा हो रही है.

आदित्य एल1 मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर निगार शाजी

59 वर्षीय निगार शाजी, वर्तमान में , इसरो में एक प्रोग्राम डायरेक्टर और सूर्य का अध्ययन करने के लिए इसरो के आदित्य एल1 मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं.

2012 में, निगार शाजी, ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक कहानी सुनाई जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि माता-पिता को बच्चों को टीमों में काम करना सीखने के लिए क्या सिखाना चाहिए.

उन्होंने पोस्ट में लिखा, " आप अपने बच्चे को एक बड़े घर में रहने दे सकते हैं, उसे घूमने-फिरने के लिए ड्राइवर और कार दे सकते हैं, अच्छा खाना खा सकते हैं, पियानो सीख सकते हैं, बड़ी स्क्रीन वाला टीवी देख सकते हैं, लेकिन जब आप घास काट रहे हों, तो कृपया उन्हें इसका अनुभव करने दें."

भोजन के बाद उन्हें अपने भाइयों और बहनों के साथ अपनी प्लेटें और कटोरे धोने दें. उन्हें सार्वजनिक बस में यात्रा करने के लिए कहें. ऐसा इसलिए नहीं है कि आपके पास कार के लिए या नौकरानी रखने के लिए पैसे नहीं हैं, बल्कि इसलिए कि आप उन्हें सही तरीके से प्यार करना चाहते हैं.
निगार शाजी, वैज्ञानिक, इसरो

दो बच्चों की मां निगार शाजी ने लिखा, "सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपका बच्चा प्रयास की सराहना करना सीखता है, और कठिनाई का अनुभव करता है, और काम पूरा करने के लिए दूसरों के साथ काम करने की क्षमता सीखता है."

'ISRO में केवल प्रतिभा मायने रखती है'

NDTV से बात करते हुए निगार शाजी ने कहा, "इसरो में महिलाओं के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. वह कहती हैं कि इसरो में केवल प्रतिभा मायने रखती है, लिंग कोई भूमिका नहीं निभाता.

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निगार शाजी कौन हैं?

तमिलनाडु में तेनकासी के सेनगोट्टई क्षेत्र से आने वाले शाजी एक साधारण परिवार से आती हैं. उनके पिता शेख मीरान एक कॉलेज ग्रेजुएट थे. शाजी मीरान और सईदु बीवी की तीसरी संतान हैं.

तेनकासी में एसआरएम गवर्नमेंट गर्ल्स हाई स्कूल की छात्रा, शाजी कक्षा 10 और 12 में जिला टॉपर थी. साल 1986 में उन्होंने तिरुनेलवेली में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार में बीटेक किया और बाद में बिट्स, पिलानी से मास्टर डिग्री प्राप्त की.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, शाजी के भाई शेख सलीम तेनकासी के एक कॉलेज से रिटायर्ड प्रोफेसर हैं. सलीम के पास लेजर फिजिक्स में आईआईटी चेन्नई से पोस्ट-डॉक्टरेट की डिग्री है और एकेडमिक क्षेत्र में आने से पहले वो बेंगलुरु में भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान में वैज्ञानिक थे.

उन्होंने कहा, "मेरे पिता ने सुनिश्चित किया कि उनके सभी बच्चे अच्छी तरह से शिक्षित हों."

मेरे पिता ने 1940 के दशक में गणित में बीए ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की थी. उस समय पांचवीं और आठवीं कक्षा की पढ़ाई बहुत बड़ी थी. उन्होंने गणित में बीए ऑनर्स पूरा किया. उनका प्राथमिक उद्देश्य हम सभी को शिक्षित करना था. हमारे परिवार के सभी सदस्य शिक्षित हैं.
शेख सलीम

शेख मीरान की 1995 में मृत्यु हो गई; उनकी मां अब बेंगलुरु में अपनी वैज्ञानिक बेटी के साथ रहती हैं.

निगार शाजी को स्कूल के बाद चिकित्सा के लिए प्रवेश मिल गया, लेकिन उन्होंने इंजीनियरिंग साइंस में अपना करियर चुना. शाजी जीईसी तिरुनेलवेली के दूसरे बैच से हैं, जबकि उनके पति शाजहान, जो दुबई में एक मल्टी नेशनल कंपनी के लिए काम करते हैं, जीईसी तिरुनेलवेली के पहले बैच से हैं.
शेख सलीम

प्रोफेसर शेख सलीम ने कहा, "जैसे ही उसने इंजीनियरिंग पूरी की, उसने अखबारों में इसरो में रिक्तियों के विज्ञापन देखे. उन्होंने इसके लिए आवेदन किया क्योंकि वे इंजीनियरों की तलाश कर रहे थे."

उन दिनों, ISRO साल में दो या तीन बार भर्ती करता था. लगभग 80 लोगों ने आवेदन किया और सीधे इंटरव्यू हुए और उनका चयन हो गया. उन्होंने काम करते हुए मास्टर्स किया- यह एक इन-सर्विस एमटेक डिग्री थी.
शेख सलीम

46 साल से ISRO में शाजी

शाजी 1987 से इसरो में हैं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत चेन्नई से लगभग 140 किमी दूर श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से की थी.

आदित्य एल1 परियोजना, 2008 से बन रही है. पिछले कुछ वर्षों से इस मिशन का निगार शाजी नेतृत्व कर रही हैं.

आदित्य एल1 मिशन के परियोजना निदेशक होने के अलावा, शाजी वर्तमान में बेंगलुरु के यूआर राव अंतरिक्ष केंद्र में 'स्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर: लो अर्थ ऑर्बिट एंड प्लैनेटरी प्लेटफॉर्म' की प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी हैं.

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