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निर्भया गैंगरप और मर्डर केस के दोषियों को 22 जनवरी को फांसी की सजा नहीं होगी. चार दोषियों में से एक मुकेश ने दया याचिका दाखिल की है. दया याचिका खारिज होने के 14 दिन बाद ही दोषियों को फांसी की सजा हो सकती है. क्या है ये पूरा मामला? क्या है क्यूरेटिव पिटिशन और दया याचिका? दोषियों को फांसी में क्यों हो रही है देरी? सभी सवालों के जवाब जानिए.
कोर्ट ने 7 जनवरी को डेथ वॉरेंट जारी करते हुए कहा था कि चारों दोषियों को को 22 जनवरी को फांसी पर चढ़ाया जाए, लेकिन एक दोषी की दया याचिका के राष्ट्रपति के पास पेंडिंग होने के कारण 22 जनवरी को किसी भी दोषी को फांसी नहीं हो पाएगी.
सुप्रीम कोर्ट सभी दोषियों की रिव्यू पिटिशन खारिज कर चुका है, लेकिन इसके बाद भी दोषियों के पास दो ऑप्शन होता है- क्यूरेटिव पिटिशन और मर्सी पिटिशन (दया याचिका). विनय और मुकेश ने क्यूरेटिव पिटिशन दाखिल की थी, जो खारिज हो चुकी हैं. इसके बाद मुकेश ने दया याचिका दाखिल की है, जो अभी गृहमंत्रालय के पास है और इसके बाद राष्ट्रपति के पास जाएगा. इसपर भी अभी फैसला नहीं आया है.
सुप्रीम कोर्ट के 2013 में शत्रुघन चौहान केस में आए एक जजमेंट के मुताबिक, जब तक दया याचिका के खारिज हुए 14 दिन नहीं हुए हैं, तब तक दोषी को फांसी नहीं हो सकती. निर्भया के गुनहगारों की फांसी में भी इसी कारण देरी हो रही है. मुकेश सिंह की दया याचिका को अगर राष्ट्रपति खारिज कर देते हैं, तो भी सभी दोषियों को फांसी नहीं हो पाएगी, क्योंकि अभी भी तीन दोषियों के पास दया याचिका का ऑप्शन होगा.
दिल्ली जेल प्रशासन के नियम के मुताबिक, अगर चार में से एक दोषी की पूरी प्रक्रिया खत्म हो गई है और तीन की नहीं हुई है, तो भी चारों में से किसी को फांसी नहीं हो सकती. इसके लिए चारों की याचिका को खारिज होना पड़ेगा.
सभी दोषियों की (अगर सभी दाखिल करते हैं तो) दया याचिका को रिजेक्ट होना पड़ेगा. इसमें दो महीने तक का समय भी लग सकता है. आखिरी दया याचिका के खारिज होने के 14 दिन बाद ही फांसी होगी.
जेल प्रशासन अब दिल्ली सरकार को बताएगा कि दया याचिका दाखिल की गई है और उनसे फांसी की तारीख को आगे बढ़ाने के लिए पूछेगा. जब तक दिल्ली सरकार उनको जवाब नहीं देगी, तब तक दोषियों को फांसी नहीं हो सकती.
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