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महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया था, लेकिन हाल ही में आई नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (NSO) की एक रिपोर्ट इस दावे को गलत साबित कर रही है. जुलाई और दिसंबर 2018 में किए गए इस सर्वे के मुताबिक, केवल 71.3 फीसदी ग्रामीण घरों और 96.2 फीसदी शहरी घरों में टॉयलेट है.
हालांकि, ये 2012 के मुकाबले काफी बेहतर स्थिति है. 2012 में केवल 40 फीसदी ग्रामीण घरों में टॉयलेट था.
एनएसओ ने पूरे देश में ये सर्वे किया और 1,06,838 घरों (63,736 ग्रामीण और 43,102 शहरी) से डेटा इकट्ठा किया. रिपोर्ट के मुताबिक, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, झारखंड, तमिलनाडु और बिहार की स्थिति सबसे खराब थी. ओडिशा में 50.7 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 48 फीसदी, झारखंड में 42 फीसदी, तमिलनाडु में 37 फीसदी और बिहार में 36 फीसदी ग्रामीण घरों में टॉयलेट की सुविधा नहीं थी.
पीएम मोदी ने कहा था, 'आज, ग्रामीण भारत ने खुद को 'खुले में शौच से मुक्त' घोषित कर दिया है. ये स्वच्छ भारत मिशन की मजबूती और इसकी कामयाबी का सबूत है. पांच वर्षों में 110 मिलियन शौचालयों का निर्माण कर 660 मिलियन से अधिक लोगों को टॉयलेट बनाकर देने के लिए हमारी तारीफ हो रही है और हमें सम्मानित किया जा रहा है.'
2014-15 और 2018-19 के बीच, केंद्र सरकार स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के लिए राज्य सरकारों को करीब 36,000 करोड़ रुपये दे चुकी है.
एनएसओ की सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले तीन सालों में स्वच्छता सुविधाओं के निर्माण के लिए केवल 17.4 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने सरकारी योजनाओं से लाभ मिलने की बात कही है.
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