Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संजय गांधी की पुण्यतिथि पर, जानिए उनके अनसुने किस्से

संजय गांधी की पुण्यतिथि पर, जानिए उनके अनसुने किस्से

कार और प्लेन उड़ाने के शौकीन संजय की 33 साल की उम्र में ही एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत हो गयी थी.

नेहा यादव
भारत
Updated:
23 जून, 2016. संजय गांधी की 36वीं पुण्यतिथि. 
i
23 जून, 2016. संजय गांधी की 36वीं पुण्यतिथि. 
(फोटो: PTI)

advertisement

ऐसा लगता है जैसे इतिहास में संजय गांधी की एक ‘शख्सियत’ के रुप में कोई स्मृति न हो!वह या तो राजीव गांधी के लापरवाह छोटे भाई के रूप में याद किये जाते हैं, या एक प्रधानमंत्री मां के लाड़-प्यार से बड़े हुए बेटे की तरह. या फिर आपातकाल के लिए दोषी बेटे के तौर पर.

उनकी 38वीं पुण्यतिथि पर, द क्विंट विनोद मेहता की किताब के जरिए एक बार फिर संजय गांधी को उनके अनसुने किस्सों के माध्य्म से परिभाषित करने जा रहा है.

बचपन से इंजीनियर

उसे मशीनों और चीजों की मरम्मत करने का बहुत शौक था. उसके कमरे में एक छोटा सा वर्कशॅाप बना हुआ था जिसमें वह हमेशा प्रयोग किया करता था. हम उसे छोटी-मोटी चीजें ठीक करने के लिए देते थे. वह इतनी बारीकी से काम करता था कि एक टूटा हुआ सामान ड्यूराफिक्स से चिपकाने के बाद बिल्कुल नया लगने लगता था. लेकिन, उसे हर काम के लिए भुगतान चाहिए होता था. उसका मेहनताना आम तौर पर एक कहानी या एक हार्डी फिल्म होता था.
नेहरू हाउस के रिसेप्शन आॅफिसर , विनोद मेहता की द संजय स्टोरी (1978) का अंश 

संजय एक औसत मगर शानदार छात्र

स्कूल में रहने के दौरान या तो आप बहुत अच्छे होते हैं या फिर बहुत बुरे होते हैं. संजय इन दोनों में से कुछ नहीं था. वास्तव में, वो औसत दर्जे का था पर शानदार था.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश 
कौन उसे दोस्त बनाना चाहता? वह काफी नीरस और उबाऊ था. जब भी आप उसे देखो, वह दुखी और दयनीय दिखता था. कौन इस तरह के बेवकूफ के साथ रहना चाहता?
सैंडी, संजय के साथी छात्र , द संजय स्टोरी (1978) का अंश 
इंदिरा गांधी और संजय गांधी के मां-बेटे के रिश्ते को लेकर अंतहीन अटकलें लगती रहीं. (फोटो: PTI)

घर पर एकसाथ पली-बढ़ी: पथरीली चुप्पी और गुस्सा

घर पर, दो भाई और उनकी दोनों पत्नियों के बीच बमुश्किल ही बात होती थी. राजीव और संजय के बीच संबंधों में हमेशा तल्खी रहती थी ... एक सुबह, बी.के. नेहरू और उनकी पत्नी फ्लोरी गांधी परिवार के साथ ब्रेकफास्ट कर रहे थे. संजय अचानक गुस्से में कमरे के अंदर चले गए और अपनी थाली फेंक दी. क्योंकि सोनिया उनके कहे अनुसार अंडे नहीं पका पाई थी. इंदिरा ने संजय को इसके लिए एक शब्द भी नहीं कहा.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश  

‘मारुति’ की हार

एक प्रबंध निदेशक के रूप में संजय गांधी ने 1971 में एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी, मारुति लिमिटेड शुरु किया था. मशीनरी और संसाधनों के अकुशल उपयोग से संजय ने पहला प्रोटोटाइप तैयार किया...(अनुमानित कीमत जल्द ही 6000 रुपये से 11,300 रुपये पर पहुंच गई). संजय ने एक मोटरसाइकिल इंजन को मारुति का इंजन बनाने की कोशिश की. पर वो अनुकूल नहीं था. दूसरे प्रोटोटाइप से भी काम नहीं चल पाया. तीसरी बार में इंजन जल्दी गरम हो गया. प्रयोग की गई कार काफी आवाज कर रही थी, दरवाजे ठीक से बंद नहीं हो रहे थे, और उसकी स्टीयरिंग व्हील काफी हल्की थी.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश
संजय ने अपने डीलरों को निर्देश दिया कि छोटी कारों की प्रदर्शनी के लिए उपयुक्त शोरूम बनाया जाए. कई डीलरों ने बैंकों से पैसा उधार लिया और अपनी संपत्ति गिरवी रखी. इसके बाद उन्होंने न कभी छोटी कार देखी और न ही उन्हें कोई ब्याज मिला. इतना ही नहीं लापरवाही के बारे में पूछने और अपने पैसे वापसी के लिए बार-बार पूछने पर दो डीलरों को तुरंत M.I.S.A के तहत जेल भेज दिया गया.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
तुर्कमान गेट आज. (फोटो: विकीपीडिया)

तुर्कमान गेट नरसंहार

संजय को झुग्गी बस्तियों की समस्या या उनके उन्मूलन में कोई रुचि नहीं थी. वह उन्हें हटा कर अपने नजरों से दूर करना चाहते थे ताकि वो कह सकें कि उन्होंने दिल्ली को खूबसूरत बनाया है. ..तुर्कमान गेट पर एक बड़ी झुग्गी थी ... यह दशकों में बसी-बसाई गई थी. कई परिवार वहां पैदा हुए और वहीं उनकी मौत भी हो गई. ... जो लोग इस झुग्गी बस्ती में रहते थे वो मुख्य रूप से मुसलमान और बेसहारा थे ... यह सब 13 अप्रैल 1976 के सुबह शुरू हुआ.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश
एक रिपोर्ट है कि वहां शिविर में जब लोग हाथ में काले रंग की पटि्टयां बांधे (शांतिपूर्ण विरोध में) धरना दे रहे थे तब ‘बुलडोजर ने अपना पहला निवाला खाना शुरू कर दिया’. 19 अप्रैल की सुबह 8 बजे के करीब 500 महिलाओं और 200 बच्चों को ‘ट्रकों में भरकर जंगल में फेंक दिया गया.’ सूरज के चढ़ने के साथ ही, लॉरी-भर कर पुलिस और सी.आर.पी वहां आने लगी. पुलिस जंग के लिए तैयार वेश-भूषा में थी. दंगों के समय उपयोग की जाने वाली ढाल, आंसू गैस बंदूकें, राइफलें. पुलिस ने विरोध कर रहे अब्दुल मलिक को गोली दाग दी. 45 दिनों तक चलने वाली गोलीबारी के साथ ... अत्याचार की कहानियां, बलात्कार, डकैती, और सिर्फ यातनाएं थीं.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश

कॉकपिट में कोल्हापुरी चप्पल

विमान दुर्घटना से पहले एक नौसिखिया पायलट के रुप में उन्हें (संजय) कई बार कम ऊंचाई पर प्लेन उड़ाने पर चेताया गया था. दिल्ली फ्लाइंग क्लब के विमान अधिकारियों ने इंदिरा को कॉकपिट में संजय के कोल्हापुरी चप्पल पहनने के खतरे से भी आगाह किया था. राजीव बार-बार चेतावनी देते थे कि संजय उड़ान से पहले चप्पल नहीं बल्कि पायलट वाले जूते पहनें. पर संजय उनकी सलाह पर कोई ध्यान नहीं देते थे.
द संजय स्टोरी (1978) का अंश

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 23 Jun 2016,12:37 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT