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भारत के किसानों से वादा था दोगुनी आमदनी का, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और नजर आ रही है. हालत यह है कि भारत ही नहीं पूरे एशिया में प्याज के सबसे बड़े होलसेल मार्केट- नासिक के लासलगांव में ही प्याज किसान हतास-परेशान (Onion Farmers in crisis) हैं. वजह है प्रति किलो प्याज के लिए उन्हें केवल 2 से 4 रुपए तक मिल रहे हैं. आखिर में कीमतों में गिरावट परेशान होकर किसानों ने सोमवार, 28 फरवरी को महाराष्ट्र के नासिक जिले के इस लासलगांव मंडी (Lasalgaon wholesale market) में प्याज के खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी.
कुछ ही दिन पहले आपने सोलापुर जिले के बरशी तालुका के बोरगांव के प्याज किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण की कहानी सुनी होगी. सोलापुर थोक बाजार में अपना 512 किलो प्याज बेचने और सभी खर्चों की कटौती के बाद उन्हें 2 रुपये का चेक मिला था.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 9 फरवरी तक लासलगांव में प्याज 1,000-1,100 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा था, और किसान किसी तरह लागत निकाल पा रहे थे. लेकिन कीमतें 10 फरवरी को 1,000 रुपये से नीचे और 14 फरवरी तक 800 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गईं.
किसानों के लिए यह कितना बड़ा झटका है, यह समझने के लिए आप पिछले साल की कीमत देखिये. पिछले साल मार्च की शुरुआत में यहां 2,000 रुपये से 2,500 रुपये प्रति क्विंटल का रेट चल रहा था.
इसे समझने के लिए आपको प्याज की खेती का चक्र समझना पड़ेगा. दरअसल प्याज किसान साल में तीन फसलें उगाते हैं:
खरीफ (जून-जुलाई में बोई जाती है और सितंबर-अक्टूबर में काटी जाती है)
पछेती-खरीफ (सितंबर-अक्टूबर में लगाई जाती है और जनवरी-फरवरी में काटी जाती है)
रबी (दिसंबर-जनवरी में रोपी जाती है और मार्च-अप्रैल में काटी जाती है)
आपको बता दें कि मंझोले और बड़े किसान इन कटी हुई फसल को एक बार में नहीं बेचते; बल्कि आम तौर पर किश्तों में बेचते हैं. ऐसा वे यह सुनिश्चित करने के लिए करते हैं कि मंडी में एकसाथ बहुत प्याज न आ जाए और उन्हें घाटे का सौदा न करना पड़ा.
प्याज की कीमत में मौजूदा गिरावट का सबसे बड़ा कारण फरवरी के दूसरे सप्ताह के बाद से तापमान में अचानक वृद्धि है. उच्च नमी वाले प्याजों में अधिक गर्मी से गुणवत्ता खराब होने का खतरा होता है, वे अचानक सूखने के कारण सिकुड़ जाते हैं.
यही कारण है कि किसान अब खरीफ के साथ-साथ अपने पछेती-खरीफ में उगाए गए प्याजों को भी मंडी में बेंचने ला रहे हैं. अर्थशास्त्र का नियम कहता है कि जैसे ही किसी वस्तु की सप्लाई बढ़ती है, उसकी कीमत कम होने लगती है. लासलगांव से लेकर भारत के तमाम मंडियों में प्याज किसानों के साथ यही हो रहा है.
महाराष्ट्र राज्य प्याज उत्पादक संघ के अध्यक्ष, भरत दिघोले ने मांग की है कि सरकार 1,000 रुपये प्रति क्विंटल का न्यूनतम मूल्य तय करे और उस दर से नीचे कोई भी खरीद न होने दे. इसके अलावा, मांग की है कि सरकार को नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (नेफेड) को खरीद शुरू करने का निर्देश देना चाहिए.
अखिल भारतीय किसान सभा के सचिव डॉ. अजीत नवले ने कहा कि सरकार को किसानों के लिए 600 रुपये प्रति क्विंटल मुआवजा घोषित करना चाहिए."
किसान नेताओं ने प्याज के आयत पर रोक लगाने की मांग भी की है. अजीत नवले ने कहा है कि "केंद्र सरकार को आयात और निर्यात नीति में बदलाव करना चाहिए जिससे अन्य राज्यों को प्याज निर्यात करने में मदद मिलेगी. भारत में प्याज का पर्याप्त उत्पादन होता है, फिर भी हमारी सरकार व्यापारियों को बांग्लादेश से प्याज लाने की अनुमति दे रही है."
पीएम मोदी ने एक दिन पहले ही PM किसान सम्मान निधि की 13वीं किस्त जारी की है. 2-2 हजार रुपए की किश्तों में गरीब किसानों को साल में 6 हजार रुपए मिल जाएंगे. लेकिन क्या 512 किलो प्याज बेचकर 2 रुपए का चेक लेने वाले किसान राजेंद्र तुकाराम चव्हाण अपने परिवार को 'सम्मान' के साथ पाल सकते हैं? यकीनन नहीं.
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