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देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा? इसी साल जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले ये सवाल आजकल सियासी गलियारों में चर्चा का मुद्दा है. हर गुजरते दिन के साथ विपक्ष गोलबंदी की कोशिशें कर रहा है. इससे ये तो तय है कि देश के सबसे ऊंचे संवैधानिक पद के लिए राजनीतिक पार्टियों में आम सहमति नहीं बनने वाली. यानी चुनाव होगा.
राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा सांसद, राज्य सभा सांसद और देश की तमाम 31 विधानसभाओं का इलेक्टोरल कॉलेज मिलकर करता है. संसद के दोनों सदनों में वोट देने वाले 776 सांसद हैं और 4,114 विधायक. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन नियम 1974 के मुताबिक सांसद और विधायक के वोट की कीमत खास फॉर्मूले के तहत आंकी जाती है.
राष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा सांसद, राज्यसभा सांसद और देश की तमाम 31 विधानसभाओं का इलेक्टोरल कॉलेज मिलकर करता है. संविधान के अनुच्छेद 55 के मुताबिक सांसद और विधायक के वोट की कीमत खास फॉर्मूले के तहत आंकी जाती है.
तो इन फॉर्मूलों से साफ है कि राज्य की आबादी से ही विधायक के वोट की कीमत तय होती है और विधायक का वोट सांसद के वोट की कीमत का आधार बनता है. यानी आबादी काफी अहम है.
इस गणित के हिसाब से अपनी मर्जी का राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने के लिए किसी भी गुट को वोट की कुल कीमत के आधे यानी 5,49,441वोट चाहिए.
बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए की तस्वीर तो तकरीबन साफ ही है लेकिन विपक्ष रायसीना हिल्स की इस लड़ाई में सरकार को वॉकओवर देने के मूड मे कतई नहीं दिखता. एनडीए के खिलाफ विपक्षी पार्टियों का साझा उम्मीदवार उतारने के मकसद से हाल में सोनिया गांधी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर एनसीपी प्रमुख शरद यादव, सीपीएम महासचुव सीताराम येचुरी और आरजेडी प्रमुख लालू यादव समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाकत कर चुकी हैं.
हाल में समाजवादी विचारक स्वर्गीय मधु लिमये के 95वें जन्मदिन के मौके पर विपक्षी पार्टियों के एक जमावड़े में सीताराम येचुरी ने कहा था कि
साल 2012 में तृणमील सुप्रीमो ममता बनर्जी ने यूपीए उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी की मुखालफत की थी. लेकिन इस बार
लेकिन कुछ पार्टियों ने राज्यों में अपनी चुनावी मजबूरियों के चलते फिलहाल एनडीए और विपक्षी गठबंधन से बराबर दूरी बना रखी है. ये पार्टियां हैं ऑल इंडिया अन्नाद्रमुक (तमिलनाडु), बीजू जनता दल (ओडिशा), तेलंगाना राष्ट्र समिति (तेलंगाना), वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (आंध्र प्रदेश), आम आदमी पार्टी (दिल्ली) और इंडियन नेशनल लोकदल (हरियाणा). ये निर्गुट पार्टियां आखिरी मौके पर क्या पोजिशन लेंगीं फिलहाल कहना मुश्किल है. इन पार्टियों को एक अलग गुट मान लिया जाए तो तस्वीर कुछ यूं बनती है.
आंकड़ों से साफ है कि,
ऐसे में सवाल ये है कि क्या विपक्षी पार्टियां एक साझा उम्मीदवार पर राजी होंगी. अगर हां, तो वो उम्मीवार कौन होगा. गोलबंदी की कोशिशों के बीच जो नाम उभर कर सामने आए हैं उनमें जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह शामिल हैं. सूत्रों का कहना है कि मनमोहन सिंह के नाम पर ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, लेफ्ट, मायावती और अखिलेश यादव सरीखे नेता तो एक मंच पर आ ही सकते हैं, बीजेडी और एआईडीएमके जैसी निर्गुट पार्टियों को भी पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए.
क्या शिवसेना एनडीए की कमजोर कड़ी साबित हो सकती है? दिलचस्प बात है कि पिछले दो राष्ट्रपति चुनावों में शिवसेना ने एनडीए का हिस्सा होते हुए भी यूपीए उम्मीदवार के पक्ष में वोट दिया था. साल 2007 में प्रतिभा पाटिल के लिए और 2012 में प्रणब मुखर्जी के लिए. सूत्रों का कहना है कि शरद पवार की तमाम पार्टियों में पैठ है. अगर उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाता है तो मराठी अस्मिता के नाम पर शिवसेना इस बार भी एनडीए से दगा कर सकती है. शिवसेना के वोटों की संख्या 25,893 है जो एनडीए से छिटक कर विपक्ष के पाले में आए तो खेल पलट सकते हैं.
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम पर सहमति बनाने के लिए 15 मई के बाद गैर एनडीए पार्टियों के साथ एक बैठक कर सकती हैं. इस बीच बीजेडी, एआईडीएमके और शिवसेना जैसी पार्टियों को साधने की कोशिश की जाएगी.
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