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रेलवे ट्रैक के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल से सफर अब सेफ नहीं

पटरी से ट्रेन के पलटने की घटना के पीछे रेलवे ट्रैक का अत्यधिक इस्तेमाल वजह बनी

इंडियास्पेंड
भारत
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मुजफ्फरनगर रेल हादसा
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मुजफ्फरनगर रेल हादसा
(फोटोः ANI)

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देश में एक बार फिर बड़ा ट्रेन हादसा हुआ है. यूपी के मुजफ्फरनगर में शनिवार को पुरी-हरिद्वार-कलिंगा उत्कल एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गए. इस हादसे में अबतक कई लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. फिलहाल, हादसे के कारणों की कोई जानकारी नहीं मिली है.

पिछले साल दिसंबर से इस घटना तक देश ने कई बड़े ट्रेन हादसे देख लिए. अप्रैल, 2017 में पब्लिश इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक नवंबर, 2016 और मार्च 2017 के दौरान पटरी से ट्रेन के पलटने की हर घटना के पीछे रेलवे ट्रैक का अत्यधिक इस्तेमाल ही वजह बनी है.

नीचे दिए गए मैप के मुताबिक, इन लाइनों को अपनी क्षमता से ज्यादा चलाने के लिए इस्तेमाल किया गया था.

40% ट्रैक का इस्तेमाल 100% से ज्यादा

फरवरी 2015 में जारी इंडियन रेलवे, लाइफलाइन ऑफ द नेशन श्वेत पत्र के मुताबिक भारतीय रेल के 1,219 लाइन सेक्शन में से कम-से-कम 40 फीसदी का इस्तेमाल 100 फीसदी से ज्यादा हुआ है. तकनीकी रुप से किसी सेक्शन का इस्तेमाल अगर अपनी क्षमता से 90 फीसदी से ज्यादा होता है तो उसे सेचुरेट मान लिया जाता है.

भारतीय रेल नेटवर्क के 247 हाई डेंसिटी वाले ट्रैक पर 65 फीसदी है. रेलवे की स्थायी समिति के सदस्य और राज्य सभा के सदस्य मुकुट मिथी कहते हैं, “आदर्श इस्तेमाल की दर लगभग 80 फीसदी होना चाहिए. ”

उपलब्ध आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है कि ट्रैक में अवरोध और ट्रेनों के पटरी से उतरने के दो मुख्य कारण हैं, अत्यधिक यातायात और रेल बुनियादी ढांचे में कम निवेश.
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ट्रेन की संख्या में इजाफा, ट्रैक का क्या?

अब जरा गौर करें, 15 सालों के दौरान पैसेंजर ट्रेन की दैनिक संख्या में 56% का इजाफा हुआ है. साल 2000-01 में 8,520 से बढ़कर साल 2015-16 में 13,313 हो गया.

इसी समय के दौरान माल गाड़ियों की संख्या में 59% की बढ़ोतरी हुई. लेकिन 15 सालों में इन सभी ट्रेनों के लिए चल रहे ट्रैक की लंबाई में केवल 12% का विस्तार हुआ. ट्रैक की लंबाई 81,865 किमी से बढ़ कर 92,081 किमी हुआ है.

1950 से 2016 के बीच कम निवेश

अगर आप साल 1950 से 2016 तक के समय को देखें तो रेलवे के बुनियादी ढांचे में कम निवेश साफ दिखाई देता है.

  • रेलवे मार्ग की लंबाई में मात्र 23% (किलोमीटर में) का विस्तार हुआ है.
  • जबकि यात्रियों की संख्या में 1,344% और माल ढुलाई में 1,642 % की वृद्धि हुई है.
  • ये आंकड़े रेलवे की स्थायी समिति द्वारा रेलवे में सुरक्षा पर दिसंबर 2016 में जारी एक रिपोर्ट के हैं.

20 नवंबर 2016 को कानपुर के पास इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बों के पटरी से उतरने के कारणों की समीक्षा करते हुए उत्तर प्रदेश रेलवे पुलिस के महानिदेशक गोपाल गुप्ता ने कहा था कि इसका कारण विस्फोटक नहीं ‘रेलवे पटरियों की थकान’ है.

गंगा रेल नेटवर्क पर सबसे ज्यादा जोखिम

फिजिएका ए जर्नल पेपर, भारत के एक्सप्रेस ट्रेन मार्गों पर यातायात प्रवाह पर और भारतीय रेलवे में हाल ही में हुए दुर्घटनाओं पर नजर डालती है. फिजिएका ए जर्नल पेपर-2012 के मुताबिक, भारत के उच्च यातायात वाले ज्यादातर रेल मार्ग गंगा के मैदानी इलाकों में है. पेपर के अनुसार साल 2010 में पटरी से उतारने या टकराव की वजह से हुई 11 प्रमुख दुर्घटनाओं में से 8 इसी क्षेत्र में हुई हैं.

दिल्ली-टुंडला-कानपुर अनुभाग भारत के सबसे जोखिम वाले एक्सप्रेस ट्रेन ट्रंक मार्ग के तौर पर दर्ज किया गया है.

इसलिए देर से चलती हैं ट्रेन

पेपर के मुताबिक, विशेषकर गंगा के मैदानी इलाकों में रेल यातायात इतना अधिक है कि “अगर सभी ट्रेनें समय तालिका के अनुसार चलने लगेंगी तो भारतीय रेलवे का वर्तमान बुनियादी ढांचा ट्रैफिक-फ्लो को संभालने में सक्षम नहीं होगा.”

पेपर के अनुसार, “भारतीय रेलवे अधिकारी इस स्थिति का प्रबंधन ‘सिग्नल पर रेलगाड़ियों को इंतजार कराते हुए’ करते हैं. इस वजह से ही ट्रेन लगतार देरी से चलती है और मानवीय चूक की स्थिति में दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती है.”

बजट के बाद हर साल बढ़ती है भीड़

नई रेलगाड़ियों की घोषणा और ट्रैक विस्तार के बिना कोई वादे के साथ हर साल भारत की पटरियों पर भीड़ बढ़ती है. पिछले 15 सालों में यात्रियों की संख्या और उनके द्वारा तय की जाने वाली यात्रा की दूरी दोनों में 150% की वृद्धि हुई है. माल ढुलाई भी दोगुनी हुई है.

भीड़ से ट्रैक के रख-रखाव में लगता है समय

ट्रैक पर भीड़ गति को कम कर देती है और इस कारण बेहद व्यस्त रास्तों पर टकराव की संभावना बढ़ जाती है. इससे रख-रखाव के लिए भी ज्यादा समय लगता है.

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Published: 19 Aug 2017,09:37 PM IST

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