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भारत में घुसपैठ करने के लिए 150 से ज्यादा पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवादी पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में लॉन्च पैड तक पहुंच चुके हैं. क्विंट को यह बात पता चली है. ये जानकारी तब मिली है जब अभी 3 मई को ही एक एनकाउंटर में दो आतंकी मारे गए हैं और सुरक्षा बलों के 5 अफसर और जवान शहीद हुए हैं. ये एनकाउंटर इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि आतंकियों की एक रिसेप्शन पार्टी का इनपुट मिला था.
इस पत्रकार से एक्सक्लूसिव बातचीत में जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा, “भारत में घुसपैठ के लिए 150 से ज्यादा पाकिस्तानी आतंकी सीमा के उस पार लॉन्च पैड पर तैयार बैठे हैं.”
जम्मू कश्मीर पुलिस प्रमुख ने विस्तार से बताया, “इससे पहले 5 अप्रैल को कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में सुरक्षा बलों के हाथों पांच खतरनाक आतंकवादी एक मुठभेड़ में मारे गए थे. यह मुठभेड़ तीन दिनों तक चली थी. हमारी टुकड़ियां और सुरक्षा बल पूरी सतर्कता बनाए हुए हैं. हालांकि केरन और लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) से जुड़े दूसरे इलाकों में घुसपैठ की कोशिशें लगातार जारी हैं.”
मई के पहले हफ्ते में हंदवाड़ा की जुड़वां घटनाओं, जिसमें सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सीआरपीएफ के 8 अफसर और जवान मारे गए थे, ने उत्तर कश्मीर से घुसपैठ की नई आशंकाओं को जन्म दिया है. हॉट बेल्ट दक्षिण कश्मीर के अलावा सुरक्षा बलों के लिए यह नया मोर्चा हो सकता है.
इस पत्रकार को सूत्रों ने संकेत दिया है कि गर्मी की शुरुआत के साथ एलओसी से घुसपैठ के लिए पाकिस्तान पुंछ, उरी, करनाह का इस्तेमाल करने को बेसब्र हो रहा है जबकि जम्मू के पास साम्बा और कठुआ सेक्टरों के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा का इस्तेमाल किया जा रहा है.
हालांकि कश्मीर में इस वक्त कितने स्थानीय और विदेशी आतंकी हैं इसे लेकर अधिकारी कोई सटीक आंकड़े के साथ सामने आने से इनकार करते हैं, लेकिन दिल्ली में मौजूद डिफेंस के शीर्ष सूत्र संकेत देते हैं कि ‘यह संख्या चिंताजनक है’.
क्विंट ने एक्सक्लूसिव तौर पर उस खुफिया नोट को देखा है जो पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में रमजान से दो दिन पहले हुई एक बैठक के बारे में है. इस बैठक में कश्मीर के हिज्बुल मुजाहिदीन कैडर के लिए लश्कर-ए-तैयबा की ओर से तैयार ड्रोन का इस्तेमाल करना तय हुआ.
नोट में यह भी कहा गया है, “इस बैठक में घाटी के कैडरों को जल्द से जल्द ड्रोन उपलब्ध कराने का फैसला किया गया. बैठक में हिज्बुल के नायब अमीर के अलावा जकी-उर-रहमान, हमजा अदनान, मोस्सा भाई, सैय्यद सलाहुद्दीन, खालिद सैफुल्लाह साहिब, ताहिर एजाज साहिब भी मौजूद थे.”
ऐसे में जबकि आर्टिकल 370 बेअसर किए जाने के 9 महीने पूरे हो रहे हैं, पाकिस्तान की सरकार, इसकी सेना और यहां तक कि आतंकी समूह जबरदस्त दबाव में हैं. ऐसा इसलिए कि जम्मू-कश्मीर में एकतरफा संवैधानिक परिवर्तन पर कूटनीतिक रूप से वे समर्थन जुटाने या नई दिल्ली पर दबाव बनाने में नाकाम रहे हैं.
शीर्ष सूत्रों ने संकेत दिया है कि पाकिस्तान के लिए कश्मीर में 2020 की गर्मी वाला समय ‘करो या मरो’ की स्थिति है. “पाकिस्तान इस गर्मी को यूं ही गुजरने नहीं दे सकता.”
सूत्र ने यह भी संकेत दिया है कि पंजाब और जम्मू में अंतरराष्ट्रीय सीमा के जरिए बीते कई महीनों से घुसपैठ का वैकल्पिक मार्ग इस्तेमाल किया गया है. फिर भी, भारी उपकरणों और हथियारों के लिए जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा का इस्तेमाल होता है क्योंकि ज्यादा ट्रक पंजाब और जम्मू होकर नहीं आ रहे हैं.
कश्मीर में 15वें चिनार कॉर्प्स के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) सतीश दुआ इस बात से सहमत हैं. उन्होंने क्विंट को बताया,
सतीश दुआ ने क्विंट को बताया, “पाकिस्तान के लिए यह रोज का काम है. वे कोरोना महामारी के कारण आतंकवाद को नहीं रोकेंगे. इसके बदले वे लॉकडाउन का फायदा उठाएंगे क्योंकि आर्टिकल 370 हटाए जाने के महीनों बीत जाने के बाद वे कश्मीर में कुछ नतीजे निकालकर दिखाने के दबाव में हैं.”
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के सामने पाकिस्तान अब तक बेचैन नजर आया है क्योंकि उसका नाम उस ग्रे लिस्ट से नहीं हटाया गया है जिसमें अंतरराष्ट्रीय आतंकियों की वित्तीय मदद करने वालों पर निगाह होती है.
दिलबाग सिंह ने इस बात की पुष्टि की है, ''एफएटीएफ की नजरों से बचने के लिए पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा की नए सिरे से द रजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) के तौर पर ब्रांडिंग की है. इसमें उसने दूसरे आतंकी तत्वों का भी समर्थन लिया है ताकि इसे स्वदेशी रूप दिया जा सके. ज्वाइंट रजिस्टेंस लीडरशिप (जेआरएल) के बदले (जिसका नेतृत्व सैय्यद अली शाह गिलानी, मीरवाइज उमर फारूक और यासीन मलिक ने किया था) अब यह नए रूप में द रजिस्टेंस फ्रंट बनकर खड़ा है.
द रजिस्टेंस फ्रंट अपने टेलीग्राम चैनल और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर कश्मीर में हाल के हफ्तों में कई आतंकी हमले करने का दावा करता रहा है और वो आने वाले दिनों में कई बाकी हमले की चेतावनी भी दे रहा है. हालांकि स्थानीय स्तर पर आतंकियों की भर्ती नहीं दिखी है और इसमें कमी आई है, मगर ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि टीआरएफ के आने के बाद लोगों को रावलपिंडी से लाया जा रहा है.
लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ कहते हैं, “आतंकी समूहों ने बहुत होशियारी से खुद को रीब्रांड कर लिया है. द रजिस्टेंस फ्रंट के पीछे 23 साल के लड़कों का दिमाग नहीं है- यह आईएसआई का गेमप्लान है. वे आतंकी समूहों को इकट्ठा कर रहे हैं और उन्हें ऑनलाइन कर रहे हैं. इससे भी उन्हें एफएटीएफ में मदद मिलेगी क्योंकि यूएन की ओर से बनी आतंकी समूहों की सूची में टीआरएफ नहीं है. और, इसे सूची में लाने में भारत को डेढ़ साल से ज्यादा वक्त लग सकता है.”
कश्मीर में बीते एक महीने में 28 आतंकियों को मारने और केंद्र शासित प्रदेश में हाल में सुरक्षा बलों को हुए नुकसान की बढ़ती घटनाओं से, जिससे देशभर में गुस्सा है, कई सालों बाद भारत के लिए कश्मीर में इस बार की गर्मी असामान्य दिख रही है.
जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह चुटकी लेते हैं, “गर्मी हमेशा गरम होती है. कश्मीर में आप जितनी सोचते हैं उससे कहीं अधिक गर्मी होती है.”
वह भरोसा दिलाते हैं, “हमने पिछले साल उन्हें शांत कर दिखाया था, हम इस बार भी ऐसा ही करेंगे.”
(आदित्य राज कौल को कॉन्फ्लिक्ट, इंटरनल सिक्योरिटी और फॉरेन पॉलिसी कवर करने का लंबा अनुभव है.)
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