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विपक्ष के बहिष्कार के बीच राज्यसभा से तीन लेबर बिल पास हो गए हैं. अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये लेबर कानून बन जाएगे. बिना विपक्ष के पास हुए इन बिलों को लेकर केंद्र सरकार का दावा है कि इनसे श्रमिक क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा. लेकिन कृषि बिलों के बाद अब लेबर बिलों को लेकर भी विरोध शुरू हो चुका है. विपक्षी नेता तो इसका विरोध कर ही रहे हैं, लेकिन अब आरएसएस की संगठन भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने भी लेबर बिल का विरोध किया है. साथ ही कुछ और मजदूर संगठनों ने भी लेबर बिलों को लेकर विरोध जताया है.
भारतीय मजदूर संघ ने एक लेटर जारी कर कहा है कि सरकार के बनाए गए ये कानून इंडस्ट्रिलिस्ट, कारोबारी और नौकरशाह को ज्यादा फायदा पहुंचाने वाला नजर आ रहा है, उन्होंने कहा कि इसमें मजदूरों का खयाल नहीं रखा गया. इतना ही बीएमएस ने ये भी दावा किया की उन्होंने जो सुझाव दिए थे उसे भी तवज्जो नहीं दी गई है.
BMS के अलावा दूसरे मजदूर यूनियनों ने भी सरकार की तरफ से पारित किए बिल का विरोध किया है. इनमें INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF, UTUC टेक्सटाइल - होजरी कामगार यूनियन और कारखाना कामगार यूनियन ने 25 सितंबर को होने वाले भारत बंद को अपना समर्थन भी दे दिया दिया है. बता दें कि 25 सितंबर को कृषि बिलों को लेकर देशभर में बंद बुलाए गए हैं.
इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष राकेश्वर पांडे ने बताया कि इन बिलों के विरोध को लेकर हम राष्ट्रीय स्तर पर फैसला लेंगे. एक बार फैसला लिए जाने के बाद सभी राज्यों में इसका विरोध होगा. उन्होंने कहा,
पांडे ने बताया कि हम इस मनमानी के खिलाफ चुप बैठने वाले नहीं हैं. लगातार सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा जाएगा.
सरकारी कंपनी का निजीकरण और कुछ प्रमुख क्षेत्र में FDI को 100% की अनुमति के फैसले का भी यूनियन विरोध कर रहे हैं. बीएमएस के जनरल सेक्रेटरी विजेश उपाध्याय ने कहा कि इस विषय पर जल्द बैठक कर आगे की रणनीति पर फैसला करेंगे. उधर सरकार का कहना है कि लेबर कानून में बदलाव मौजूदा वक्त में कारोबार में हो रहे बदलाव को ध्यान में रखकर किए गए हैं. सरकार का कहना है की 300 कर्मचारियों वाली कंपनी में कर्मचारियों को निकालने की इजाजत सरकार से नहीं लेनी होगी, ये कानून 16 राज्यों में पहले से मौजूद है.
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