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झारखंड की एक प्राचीन जनजाति की महिलाओं को खूबसूरत कलाकृतियां बनाते और पुरुषों को नशे की हालत में घूमते देख हैरान-परेशान एक महिला अफसर ने उनकी दशा बदल दी. ये अधिकारी अब इलाके के 25 से भी ज्यादा गांवों में ‘देवी मां’ के रूप में पूजी जाती हैं.
झारखंड की पर्यटन निदेशक सुचित्रा सिन्हा की तस्वीर आज जनजातीय लोगों के घरों में अन्य देवी-देवताओं के साथ पूजाघरों में लगी है.
रांची से लगभग 135 किलोमीटर दूर नीमडीह प्रखंड के समनपुर गांव की सबर जनजाति की मंजू ने बताया,‘वह हमारी मां हैं. हमारी ‘देवी’ मां. हमने भगवान को नहीं देखा, लेकिन जब भी हमें उनकी जरूरत हुई, यह मां हमारे साथ हमेशा खड़ी रहीं.’
साल 1988 में बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने वाली सुचित्रा सिन्हा 1990 में जमशेदपुर की डिप्टी कलक्टर के तौर पर नियुक्त होने के समय नक्सली विद्रोहियों के प्रभाव वाले उस अविकसित इलाके के बारे में जानती थीं. लेकिन 1996 में एक समारोह में शामिल होने के लिए उनका समनपुर गांव जाना इस कहानी में एक नया मोड़ साबित हुआ.
उन्होंने इस मामले को उप विकास आयुक्त (डीडीसी) के सामने रखा, जिन्होंने उनकी बात पर गौर करने की बजाय उन्हें अपने पद से जुड़े कर्तव्यों पर ध्यान देने की सलाह दी.
सुचित्रा का मजाक उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि यह सोचना मूर्खता है कि गांववालों की शराब की लत छुड़ाना संभव है. यहां तक कि सिन्हा के परिवार ने भी उनके इरादे में साथ न देते हुए उनका मजाक उड़ाया.
हालांकि इस सब की परवाह न करते हुए सिन्हा ने अपने इरादे पर डटे रहकर समनपुर गांव का कई बार दौरा किया और इस बीच गांव की महिलाओं को उनके अद्भुत हुनर के बारे में जागरूक किया. अपने इरादों पर अडिग सिन्हा जल्द ही उनका भरोसा जीतने में कामयाब रहीं.
धीरे-धीरे लोगों ने उनकी बातों पर गौर करना शुरू किया और युवा भी उनके साथ जुड़ने लगे. इसी बीच अपने इरादे की ओर मजबूती से कदम बढ़ा रहीं सुचित्रा को उस समय गहरा झटका लगा, जब उनका ट्रांसफर नई दिल्ली कर दिया गया, लेकिन वह अपने लक्ष्य पर डटी रहीं.
वह गांववासियों द्वारा निर्मित चीजों को हस्तशिल्प विकास आयुक्त के पास लेकर गईं और उन्हें ग्रामीणों के कौशल के बारे में जानकारी दी. आयुक्त ने उनका हौसला बढ़ाया और उन्हें ग्रामीणों को आधुनिक तकनीकों में पारंगत करने की सलाह दी.
बाद में सुचित्रा ने एक समूह ‘अंबालिका’ बनाया, जिसके तहत ग्रामीणों को 10 के समूहों में नई दिल्ली लाया गया और ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी’ (एनआईएफटी) में प्रशिक्षण दिया गया. इसके बाद इन प्रशिक्षित ग्रामीणों ने अपने गांवों के अन्य लोगों को प्रशिक्षण दिया और उसके बाद इस सिलसिले ने सुचित्रा की कामयाबी की कहानी को जन्म दिया.
ग्रामीणों के हस्तशिल्प को शीघ्र ही अपने आप खरीदार मिलने लगे. ग्रामीणों को एक नई जिंदगी देने वाली सुचित्रा इसमें खुद को कोई श्रेय नहीं देतीं. वह कहती हैं,
उन्होंने कहा,‘मैं चाहती हूं कि इन प्राचीन जनजातियों की समस्याओं को उजागर किया जाए, जिन्हें तत्काल मदद की जरूरत है. अगर कॉरपोरेट घराने इन गांवों को गोद लेकर इन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास करें, तो मुझे खुशी होगी. हम इस क्षेत्र और शिल्प ग्राम को विकसित करने की योजना बना रहे हैं.’
बहरहाल, इस महिला अफसर की सोच और लगन की बदौलत झारखंड के कई गांवों में खुशहाली आ गई है.
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