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आप जानते हैं कि प्लास्टिक कितना अधिक आपकी जिदगी में घुल गया है? इसका अंदाजा हाल ही में हुई एक रिसर्च से लग सकता है जो कहती है कि आप हर हफ्ते करीब 5 ग्राम प्लास्टिक खा रहे हैं यानी एक क्रेडिट कार्ड के बराबर! यह रिसर्च ऑस्ट्रेलिया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकासल की है और भारतीयों पर भी लागू होती है जिनके शरीर में खाने-पीने के सामान, जूस और बोतलबंद पानी के अलावा नलों से आने वाले पानी के जरिये हर साल करीब 250 ग्राम तक माइक्रो-प्लास्टिक कण पहुंच रहे हैं और इंसानी सेहत के लिये काफी नुकसानदेह हैं.
प्रधानमंत्री का ऐलान सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर था यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे हम एक बार इस्तेमाल करके फेंक देते हैं. यह पर्यावरण में कचरा बढ़ाने के लिये काफी हद तक जिम्मेदार है. पिछले साल पर्यावरण दिवस के मौके पर भी प्रधानमंत्री ने 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को खत्म करने की बात कही थी. इस साल की शुरुआत में सिंगल यूज प्लास्टिक बैन को लेकर एक कमेटी का भी गठन किया गया लेकिन कुछ खास तरक्की नहीं हुई है.
भारत में केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के अलावा 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हैं लेकिन 2017-18 में इनमें से केवल 14 बोर्डों ने ही प्लास्टिक के कचरे के बारे में सीपीसीबी को जानकारी दी. उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि भारत में करीब 6.5 लाख टन प्लास्टिक का कचरा सालाना पैदा हुआ. अगर हम 10 टन कचरे से भरे ट्रक की कल्पना करें तो देश में हर साल 66 हजार ट्रकों के बराबर कचरा निकल रहा है. यह हाल तब है जब आधे से अधिक राज्यों ने अपने आंकड़े नहीं दिये हैं.
एक ओर प्लास्टिक से हवा, पानी और मिट्टी सबके खराब होने का डर है और दूसरी ओर यह माइक्रो प्लास्टिक के रूप में हमारे शरीर में जा रहा है. सोडा की बोतल हो या खाने पीने के बर्तन कई हानिकारक तत्व प्लास्टिक से चिपक कर हमारे शरीर में जाते हैं.
यह समस्या इसी बात से समझी जा सकती है कि पॉलीथीन के एक बैग को नष्ट होने में 800 से 1000 साल तक लग सकते हैं. आज पॉलीथीन समुद्र से लेकर नदियों और तालाबों तक हर जगह जलीय जीवन के लिये खतरा बन गया है.
सिंगल यूज प्लास्टिक का सबसे बड़ा हिस्सा सामान ले जाने वाले थैले (कैरी-बैग) माने जाते हैं. इसके अलावा जूस या नारियल पानी पीने के काम आने वाले स्ट्रॉ, सॉस या कैचप के मिनी पैकेट, प्लास्टिक के गिलास, कटलरी और वैट वाइप (गीले रूमाल) इस श्रेणी में आते हैं. हवाई उड़ानों और रेलगाड़ियों में अचार और जैम जैसी सुविधाओं के लिये इनका खूब इस्तेमाल होता है. बर्थ डे पार्टी और शादी-बारात या दूसरे धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सिंगल यूज प्लास्टिक की बाढ़ ही आ जाती है. इसके अलावा पैकेजिंग में सबसे अधिक प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. प्लास्टिक की बेहद कम कीमत और उपयोगिता इसके इस्तेमाल को और बढ़ा रही है.
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट में प्रोग्राम मैनेजर स्वाति सिंह संब्याल कहती हैं.
पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही एनजीओ चिंतन की निदेशक भारती चतुर्वेदी कहती हैं, “बिना लाइफ स्टाइल बदले सिर्फ कानून या नियम बनाने से यह समस्या खत्म नहीं होगी. मिसाल के तौर पर लोग कहते हैं कि बिना स्ट्रॉ के जूस या नारियल पानी कैसे पियें लेकिन क्या ऐसा करना संभव नहीं है?”
आज बैंगलुरु में प्लास्टिक कटलरी के इस्तेमाल के घटाने के लिये देश का सबसे बड़ा प्लेट बैंक बन गया है. केरल समेत कुछ राज्यों में ग्रीन प्रोटोकॉल को प्रभावी ढंग से लागू करने की कोशिश हो रही है.
(हृदयेश जोशी स्वतंत्र पत्रकार हैं. उन्होंने बस्तर में नक्सली हिंसा और आदिवासी समस्याओं को लंबे वक्त तक कवर किया है.)
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