advertisement
(द क्विंट को एक इनवेस्टिगेशन के दौरान यह पता चला कि किस तरह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आधार नंबरों का इस्तेमाल करके केंद्र की पीएम किसान स्कीम के लिए साइन अप किया जा रहा है और भारत के सबसे गरीब किसानों के लिए उपलब्ध धनराशि को हेरफेर किया जा रहा है.)
पूर्व चीफ टेलीकॉम रेगुलेटर राम सेवक शर्मा, जोकि यूआईडीएआई के डायरेक्टर जनरल भी रह चुके हैं, को पता चला कि उनके एसबीआई एकाउंट में मार्च से अगस्त 2020 के दौरान पीएम किसान स्कीम की तरफ से तीन कैश इंस्टॉलमेंट जमा हुए हैं.
शर्मा ने द क्विंट को एक ईमेल में बताया कि “यह सच है” कि उन्हें 2,000 रुपए के तीन इंस्टॉलमेंट मिले. उन्होंने कहा कि उन्होंने केंद्र की पीएम किसान स्कीम में रजिस्टर नहीं किया है और वह ‘हैरान’ थे कि उनके खाते में यह धनराशि कैसे जमा हुई.
“हां, यह सच है कि मेरे एकाउंट में पीएम किसान स्कीम से तहत 2,000 रुपए की तीन किस्तें जमा हुईं.” शर्मा ने बताया.
द क्विंट ने पीएम किसान के आधिकारिक रिकॉर्ड्स को एक्सेस किया. शर्मा के नाम से यह एकाउंट 8 जनवरी 2020 को खोला गया था और करीब नौ महीने एक्टिव रहा था. 24 सितंबर को यह डीएक्टिवेट हो गया.
10 दिसंबर, बृहस्पतिवार को द क्विंट ने एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में बताया था कि कैसे ऐक्टर रितेश देशमुख, भगवान हनुमान और आईएसआई जासूस महबूब अख्तर के आधार कार्ड्स, जोकि सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, को पीएम किसान स्कीम में साइन अप करने के लिए इस्तेमाल किया गया और छोटे और सीमांत किसानों के हक के पैसे के साथ ठगी की गई.
हालांकि इन सभी मामलों में आधार नंबरों के जरिए नए बैंक खाते खोले गए और घोटालेबाजों को पैसा ट्रांसफर किया गया. लेकिन शर्मा के मामले में पीएम किसान एकाउंट से जुड़ा बैंक एकाउंट, उनका अपना ही एसबीआई बैंक एकाउंट है, जिसे उनकी जानकारी के बिना, स्कीम के लिए साइन अप किया गया था.
शर्मा के मुताबिक, स्कीम में उनका रजिस्ट्रेशन राज्य सरकार की गलती से हुआ. यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह लाभार्थियों की पहचान करे और उन्हें स्कीम से जोड़े.
शर्मा ने द क्विंट को बताया कि जिस एसबीआई एकाउंट में डायेक्टर बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के जरिए भुगतान हुआ है, वह उनका हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) खाता है जोकि अगस्त 2019 में खोला गया था.
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में वह किसान के तौर पर रजिस्टर हैं और उनके पास खेती की जमीन है जिसमें वह ऑर्गेनिक प्रॉड्यूस उगाते और उसे बेचते हैं.
“मैं काफी लंबे समय से यूपी के फिरोजाबाद में किसान के तौर पर रजिस्टर हूं. वहां मेरा गांव है और खेती की पुश्तैनी जमीन भी. मैं वहां खेती करता हूं. हमारी (मेरी और मेरे छोटे भाई की) पुश्तैनी जमीन पर आंवला और किन्नू का बगीचा है. हम ऑर्गेनिक फल उगाते हैं.”
शर्मा ने क्विंट को बताया, “इस एसबीआई-एचयूएफ एकाउंट में फलों की बिक्री से मिलने वाला पैसा जमा होता है.”
पूर्व यूआईडीएआई डीजी शर्मा ने कहा कि उन्होंने एसबीआई की शाखा से तुरंत पूछा कि केंद्र सरकार की स्कीम से उनके खाते में पैसे कैसे आए जबकि उन्होंने इस स्कीम के लिए साइन अप भी नहीं किया है.
शर्मा के पास उस चिट्ठी की कॉपी है, जो उन्होंने 24 सितंबर को एसबीआई की नोएडा शाखा के चीफ मैनेजर को लिखी थी. इस चिट्ठी में शर्मा ने लिखा था, “मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है कि क्या हमने पीएम किसान के लाभार्थी बनने के लिए कोई आवेदन किया है.”
इसके अलावा चिट्ठी में लिखा है, “कृपया धनराशि के ट्रांसफर होने के स्रोत और आधार के बारे में विस्तार से बताने का कष्ट करें.”
शर्मा कहते हैं कि उन्हें बैंक से अब तक कोई जवाब नहीं मिला है.
पीएम किसान वेबसाइट पर आधिकारिक भुगतान रिकॉर्ड्स के अनुसार, पब्लिक फाइनांस मैनेजमेंट सिस्टम या पीएफएमएस सॉफ्टवेयर ने शर्मा के नाम के एकाउंट के रजिस्ट्रेशन को 14 जनवरी को स्वीकार किया जोकि 8 जनवरी को किया गया था.
रिकॉर्ड में लाभार्थी के तौर पर किसान का नाम है, “राम सेवक शर्मा”, जिसकी जमीन उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के हमीरपुरा गांव में है.
बैंक एकाउंट के अंतिम अंक “7539” हैं और उसमें दर्ज आधार नंबर और जमीन के रिकॉर्ड शर्मा के रिकॉर्ड्स से मेल खाते हैं.
बाद में शर्मा के नाम पर खोला गया पीएम किसान खाता इनएक्टिव हो गया. द क्विंट ने जब आधिकारिक रिकॉर्ड्स को एक्सेस किया तो उसमें कारण लिखा था: “आयकर दाता होने के कारण लाभार्थी निष्क्रिय.”
लेकिन इस मामले पर दो महत्वपूर्ण सवाल खड़े होते हैं. एक, “छोटे और सीमांत किसान परिवारों” के सालाना हक का 6,000 रुपया किसी अपात्र व्यक्ति को मिला जोकि वास्तविक लाभार्थी नहीं था, और वह भी तब, जब उस व्यक्ति ने इसके लिए आवेदन भी नहीं किया था.
तमिलनाडु के कृषि सचिव गगनदीन सिंह बेदी ने सितंबर में कहा था कि पीएम किसान में हुए घोटाले के चलते राज्य को 110 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है. इसमें धोखाधड़ी से पैसों की ठगी की गई थी. अधिकारियों ने कहा था कि एक जांच में 13 जिलों में 5.5 लाख अपात्र लोगों को चिन्हित किया गया था.
इसी तरह असम में केंद्रीय कृषि मंत्रालय और मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल के आदेश पर जांच की गई. इसके बाद अधिकारियों ने कहा कि सिर्फ एक जिले लखीमपुर में लाभार्थियों की लिस्ट में 9,000 अपात्र व्यक्तियों को पहचाना गया.
एक और दिलचस्प घटना हुई थी. 28 जुलाई, 2018 को शर्मा ने अपने 12 अंकों वाले आधार नंबर को ट्विट कर लोगों को यह ‘चुनौती’ दी थी कि “मुझे ऐसा ठोस उदाहरण दें, कि आप लोग मुझे कहां नुकसान पहुंचा सकते हैं!” एक ट्विटर यूजर ने उसी दिन आधार का इस्तेमाल करते हुए यूपीआई के जरिए उनके बैंक खाते में एक रुपया जमा किया था.
शर्मा का आकलन कहता है कि वह रजिस्टर कैसे हुए और उन्हें कैसे पैसे मिले, यह राज्य सरकार की गलती है, और “यह सबसिडी देने वाली संस्था की जिम्मेदारी है कि वह पात्रता की जांच करे.”
उन्होंने कहा, “ऐसे मामलों में गलती इसलिए होती है कि सरकार के संबंधित विभाग ने पात्रता की जांच नहीं की. उसने पीएम किसान खाते में सिर्फ इसलिए ट्रांसफर कर दिया क्योंकि मैं किसान के तौर पर रजिस्टर हूं और उसने मेरी पात्रता की जांच नहीं की.”
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 20 सितंबर को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था, “योजना के प्रावधानों के अनुसार, यह पूरी तरह से राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे लाभार्थियों की पहचान करें.”
तोमर ने यह भी कहा था कि वे लाभार्थियों के डेटा को अपलोड करते हैं, “जिन्हें बैंक और दूसरी संबंधित एजेंसियां कई स्तरों पर वैरिफाई और वैलिडेट करती हैं और इसके बाद ही लाभार्थी के बैंक खातों में पैसे भेजे जाते हैं.”
द क्विंट ने 4 नवंबर को पीएम किसान और यूआईडीएआई के आधिकारियों को इस मसले पर सवालों की एक सूची भेजी थी लेकिन उनके जवाब अब तक नहीं मिले. सवाल के जवाब मिलने पर इस स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)