Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019मोदी सरकार गरीब, युवा, किसान, महिलाओं के मोर्चे पर कहां पीछे रह गईं? | हिसाब-किताब

मोदी सरकार गरीब, युवा, किसान, महिलाओं के मोर्चे पर कहां पीछे रह गईं? | हिसाब-किताब

Lok Sabha Election 2024: भारत में जितने बेरोजगार हैं, उनमें 83% युवा हैं - रिपोर्ट

प्रतीक वाघमारे
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>मोदी सरकार गरीब, युवा, किसान, महिलाओं के मोर्चे पर कहां पीछे रह गईं? | हिसाब-किताब</p></div>
i

मोदी सरकार गरीब, युवा, किसान, महिलाओं के मोर्चे पर कहां पीछे रह गईं? | हिसाब-किताब

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

मोदी सरकार (Modi Govt) के दूसरे कार्यकाल के आखिरी बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने कहा था, "प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार चार प्रमुख जातियों GYAN पर फोकस रखेगी. ये GYAN क्या है? G माने गरीब, Y यानी युवा, A यानी अन्नदाता मतलब हमारे किसान और N मतलब नारी शक्ति...महिलाएं.

तो सीतरमण ने कहा कि उनकी "सरकार 'गरीब', 'महिलाएं', 'युवा' और 'अन्नदाता' (किसान) पर ध्यान केंद्रित करने में विश्वास रखती है. उनकी जरूरतें, उनकी आकांक्षाएं, उनका कल्याण हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है. देश तभी उन्नति करता है जब ये उन्नति करते हैं."

लेकिन मोदी सरकार ने पिछले 10 सालों में इन चार प्रमुख जातियों के लिए क्या किया है? चलिए हिसाब किताब करते हैं.

गरीब

नीति आयोग ने एक डिस्कशन पेपर जारी किया है जिसने दावा है कि पिछले 9 सालों में 24 करोड़ 82 लाख लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला गया है. साल 2013-14 में कुल आबादी में गरीबों का हिस्सा 29.17% था जो साल 2022-23 में घटकर 11% रह गई है. यानी लगभग 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले. इससे पता चलता है कि पिछले सालों की तुलना में गरीबी में तेज गिरावट हुई थी.

क्या है बहुआयामी गरीबी?

गरीब वो है जिसके पास पैसों की कमी है लेकिन बहुआयामी गरीबी का मतलब केवल पैसों की कमी से नहीं है बल्कि इससे एक कदम आगे हैं. यानी उसके पास शिक्षा है या नहीं, स्वास्थ्य और जीवन जीने का स्तर, बैंक अकाउंट ये सब शामिल होता है. हो सकता है आपके पास पैसों की कमी हो लेकिन आपके पास अपना मकान है तो मतलब आप बहुआयामी गरीबी से बाहर हैं.

पहले तो ये बता दें कि भारत सरकार ने 2011 के बाद से गरीबी का डेटा देना ही बंद कर दिया था. अब 2023-24 में आंकलन आया है. कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं बहुआयामी गरीबी के आंकड़े जारी करना ज्यादा सही है तो कुछ कहते हैं कि इसकी वजह से वास्तविक गरीबी छिप जाती है. इसीलिए कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वास्तविक गरीबी देखने के लिए व्यक्ति की कमाई देखी जानी चाहिए.

पिछले 6 सालों से लोगों के वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई है. वेतन स्थिर है. हाल ही में आई इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट भी बताती है कि फुल टाइम जॉब करने वालों के वेतन स्थिर हैं. अब महंगाई लगातार बढ़ रही है लेकिन वेतन स्थिर हैं तो ये दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती है...कि गरीबी कम हुई है लेकिन लोगों के वेतन में बढ़ोतरी नहीं हुई है. तो ये बात तो साफ है अगर हेल्थ, पेयजल, हॉस्पिटल फैसिलिटी, बैंक अंकाउट को शामिल कर गरीबी देखेंगे तो उसमें तो कमी आई है लेकिन आर्थिक रूप से गरीबी का डेटा नहीं है.

अब वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट पर आते हैं जो महामारी के बाद की है. इसमें बताया गया:

  • महामारी की वजह से जितने लोग गरीब हुए, उसमें सबसे ज्यादा गरीबी भारत में आई.

  • साढ़े 5 करोड़ (5.6) से ज्यादा लोग गहरी गरीबी में फंस गए.

  • रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया में गरीबी बढ़ाने में भारत का बड़ा योगदान रहा.

  • अब आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट्स को भारत सरकार खारिज कर देती है लेकिन सरकार ने इस रिपोर्ट को ना तो खारिज किया और ना ही इसे एक्सेप्ट किया.

  • रिपोर्ट में ये भी दर्ज है कि भारत सरकार से गरीबी के आंकड़े मांगे गए थे लेकिन सरकार आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए और वर्ल्ड बैंक ने सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के आधार पर गरीबी का आंकलन किया.

युवा

युवाओं के बीच रोजगार बड़ा मुद्दा है तो युवाओं की बेरोजगारी पर नजर डालते हैं.

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और मानव विकास संस्थान (IHD) ने मिलकर भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 जारी की, इसके अनुसार:

  • भारत में जितने बेरोजगार हैं उनमें 83% युवा हैं.

  • रिपोर्ट में कहा गया कि कुल बेरोजगार युवाओं में 65.7% बेरोजगार युवा ऐसे हैं जिन्होंने सैकेंडरी एजुकेशन या हायर एजुकेशन प्राप्त किया है.

  • साल 2000 में ऐसे कुल 35.2% बेरोजगार थे जो अब बढ़कर 2022 में 65.7% हो गया है.

  • रिपोर्ट ये भी बताती है कि 90% रोजगार अनऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में हैं. ऐसा सेक्टर जहां न जॉब की गारंटी हैं ना नियमित सैलरी की, न अप्रेजल की, ना पेंशन की.

विपक्षी दल भी लगातार रोजगार के मुद्दे पर मुखर रहा है, कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी कहा गया है कि 30 लाख खाली पड़े सरकारी पद भरे जाएंगे. यानी सरकार नौकरियां देने में कहीं न कहीं पीछे रही है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किसान

अब किसानों की बात करते हैं. मोदी सरकार ने लगातार किसानों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने, उनके कौशल विकास को बढ़ावा देने, बाजार तक पहुंच की सुविधा देने और टिकाऊ किसानी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. इनमें एक योजना खास है जो 2016 में शुरू की गई - प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY).

खास इसलिए भी है क्योंकि प्रीमियम के मामले में ये दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी बीमा योजना है. इस योजना के तहत अगर कोई अनहोनी होती है और किसान की फसल बर्बाद हो जाती है तो उन्हें उसका पैसा मिल जाएगा.

पिछले 8 सालों में 56 करोड़ 80 लाख किसानों ने बीमा कवर के तहत क्लेम किया. 23 करोड़ 22 लाख से ज्यादा किसानों को क्लेम मिला यानी इंश्यॉरेंस का पैसा मिला है. इस दौरान, किसानों ने प्रीमियम के अपने हिस्से के रूप में लगभग 31,139 करोड़ रुपये का भुगतान किया जबकि 1,55,977 करोड़ रुपये का भुगतान बीमा के क्लेम के रूप में किसानों को किया जा चुका है.

हालांकि, हमने आंकड़ों को गौर से देखा तो पता चला कि किसान जो क्लेम कर रहे हैं उसकी संख्या पिछले कुछ सालों में बढ़ी हैं जैसे ( 2016-17 में क्लेम 581.7 लाख से बढ़कर 2021-22 में 832.8 लाख हो गया) लेकिन सरकार ने जो बीमा क्लेम के बदले भुगतान किया है, उसमें गिरावट देखी गई है. 2016-17 में 16,795.5 करोड़ रुपये भुगतान किया गया था, ये 2018-19 में बढ़कर 28,651.8 करोड़ हुआ लेकिन 2021-22 में ये क्लेम केवल 14,716.9 करोड़ था.

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के मामलों में भी ऐसा ही ट्रेंड देखा गया है. लोगों काम की मांग ज्यादा कर रहे हैं लेकिन काम मिलने की संख्या में कमी देखी गई है.

नौकरियों की मांग में 41% की तेजी आई जबकि दी गई नौकरियों की संख्या में 38% की ही तेजी आई है. आपको लग रहा होगा कि केवल 3% का ही तो अंतर है लेकिन जब पूरी आबादी के संबंध में इसे देखा जाता है तो यह आंकड़ा बड़ा हो जाता है.

महिला

अब बात करते हैं महिला सशक्तिकरण की. भारत में जितने लोगों के पास रोजगार है उसमें महिलाओं की भागीदारी में कई दशकों से कमी देखी गई है. ये ट्रेंड पिछले नौ सालों में और भी बदतर हो गया है.

  • वर्ल्ड बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 2012 में महिलाओं की भागीदारी 27% थी लेकिन 2021 तक यह गिरकर 22.9% हो गई है. ये नीचा जाता ग्राफ बेहद चिंताजनक है.

लेकिन थोड़ा बहुत पॉजिटिव भी है. हमने आपको पिछले 9 साल का आंकड़ा बताया लेकिन केवल 2022 की बात करें तो महिलाओं की भागीदारी में 23.9% की मामूली वृद्धि हुई है. 2023 में यह बढ़कर 34.1% हुई है.

लेकिन राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो अपनी रिपोर्ट में महिला सुरक्षा की गंभीर वास्तविकता पर प्रकाश डालता है.

  • 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले सामने आए, इसके हिसाब अंदाजा लगाए तो हर घंटे लगभग 51 FIR दर्ज हो रही है.

सोचिए कई केसेस तो रिपोर्ट ही नहीं होते. आपको पता है महिलाओं के खिलाफ हर साल अपराध बढ़ रहे हैं. इस साल की तुलना में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की संख्या 4,28,278 थी जबकि 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज किए गए थे.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT