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मोदी से एक बार फिर हुई ‘ऐतिहासिक’ भूल, ये क्‍या बोल बैठे

पीएम ने कहा है कि यहीं पर संत कबीर दास, गुरू नानक देव और बाबा गोरखनाथ ने एक साथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा की थी.

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इतिहास के मामले में फिर कमजोर साबित हुए पीएम, अब कर बैठे ये गलती  
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इतिहास के मामले में फिर कमजोर साबित हुए पीएम, अब कर बैठे ये गलती  
(फोटो: PTI)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर इतिहास से जुड़ी गलती कर बैठे. संत कबीरदास की 500वीं पुण्यतिथि पर यूपी के मगहर में पीएम ने कहा कि यहीं पर संत कबीर दास, गुरु नानकदेव और बाबा गोरखनाथ ने एकसाथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा की थी.

लेकिन कबीर, गुरु नानकदेव और बाबा गोरखनाथ की एक साथ मुलाकात संभव नहीं हो सकती है, क्योंकि गोरखनाथ का जीवनकाल 11वीं से 12वीं सदी के बीच माना जाता है. वहीं संत कबीरदास का निधन साल 1518 में हुआ था और गुरु नानकदेव का जन्म 1469 में हुआ और निधन 1539 में हुआ था. ऐसे में कबीर और गुरु नानक से गोरखनाथ की आध्यात्मिक चर्चा संभव नहीं है. हालांकि कबीर और गुरु नानकदेव के मध्य प्रदेश के अमरकंटक में मुलाकात की जानकारी मिलती है.

पीएम ने अपने बयान में क्या कहा?

प्रधानमंत्री ने गुरुवार को मगहर में संत कबीरदास की समाधि पर फूल चढ़ाने के बाद कहा, ''समभाव और समता के प्रतीक महात्मा कबीर को उनकी ही निर्वाण भूमि से कोटि-कोटि नमन करता हूं. ऐसा कहते हैं कि यहीं पर संत कबीरदास, गुरु नानकदेव और बाबा गोरखनाथ जी ने एक साथ बैठकर आध्यात्मिक चर्चा की थी. मगहर आकर मैं धन्य अनुभव करता हूं.''

पहले भी हुई है पीएम से चूक

प्रधानमंत्री मोदी ने इससे पहले भी कुछ मौकों पर तथ्यों में गलतियां की हैं. इसी साल 9 मई को एक चुनावी रैली में उन्होंने कहा था कि जब स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को जेल भेजा गया, तो क्या कोई कांग्रेसी नेता उनसे मिलने गया था? इसको लेकर पीएम ने कांग्रेस पर स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति बेपरवाह होने के आरोप भी लगाए. लेकिन सच्चाई ये थी कि जवाहरलाल नेहरू ने न सिर्फ लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह से मुलाकात की थी, बल्कि उन्होंने इसके बारे में लिखा भी था.

पीएम ने इसी साल एक चुनावी रैली में ये भी कहा था कि भारत 1948 में जनरल थिमैया के नेतृत्व में पाकिस्तान से युद्ध जीता गया, लेकिन उस पराक्रम के बाद कश्मीर को बचाने वाले जनरल थिमैया का तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और रक्षामंत्री कृष्णा मेनन ने बार-बार अपमान किया, जिसके बाद उन्हें सम्मान की खातिर अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. तथ्यों के मुताबिक, ये भी गलत है, क्योंकि 1948 में थिमैया इस पद पर थे ही नहीं, और इस्तीफे की कोई भी बात नहीं थी.

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Published: 28 Jun 2018,11:01 PM IST

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