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वन नेशन,वन इलेक्शन को PM ने बताया है देश की जरूरत,नफा-नुकसान जानिए

केंद्र की मोदी सरकार कई बार कर चुकी है एक देश एक चुनाव की बात

क्विंट हिंदी
भारत
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केंद्र की मोदी सरकार कई बार कर चुकी है एक देश एक चुनाव की बात
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केंद्र की मोदी सरकार कई बार कर चुकी है एक देश एक चुनाव की बात
(फोटो: Twitter/BJP)

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बीजेपी और खुद पीएम मोदी वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं. उनका कहना है कि देश में अलग-अलग चुनावों में होने वाले खर्च और मैन पावर से बचने के लिए एक साथ चुनाव कराए जाने चाहिए. अब एक बार फिर पीएम मोदी ने एक देश एक चुनाव की बात की है. पीएम मोदी ने संविधान दिवस के मौके पर पीठासीन अधिकारियों को संबोधित करते हुए इसका जिक्र किया.

पीएम मोदी ने कहा कि राज्य की विधानसभाओं में पुराने उलझे हुए कानूनों को हटाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए. इसके बाद उन्होंने वन नेशन वन इलेक्शन का जिक्र करते हुए कहा कि ये भी एक बड़ा मुद्दा है. पीएम ने कहा,

“सिर्फ ये चर्चा का विषय नहीं है, बल्कि ये भारत की जरूरत है. हर कुछ महीने में भारत में कहीं न कहीं बड़े चुनाव हो रहे होते हैं. इससे विकास के कार्यों पर जो प्रभाव पड़ता है, उस आप सभी भली भांति जानते हैं. ऐसे में वन नेशन वन इलेक्शन पर गहन मंथन और अध्ययन आवश्यक है.”

पीएम मोदी ने कहा कि इसमें पीठासीन अधिकारी मार्गदर्शन कर सकते हैं. इसके साथ ही लोकसभा हों, विधानसभा हो या पंचायत चुनाव हों, इनके लिए एक ही वोटर लिस्ट काम में आए. इसके लिए सबसे पहले हमें रास्ता बनाना होगा. आज हर एक के लिए अलग-अलग वोटर लिस्ट है, हम क्यों खर्चा कर रहे हैं? समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं? पहले तो उम्र में फर्क था, लेकिन अब जरूरत नहीं है.

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पीएम मोदी ने कहा कि अब पूर्ण डिजिटलीकरण का समय आ चुका है. उन्होंने कहा कि हमें एक लक्ष्य तय करना होगा और सोचना होगा कि कब तक हम इसे साकार कर सकते हैं.

कई बीजेपी नेता कर चुके हैं पैरवी

बता दें कि ये पहला मौका नहीं है, जब वन नेशन वन इलेक्शन का जिक्र किया गया हो. इससे पहले भी बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने इसकी पैरवी की है.

वन नेशन वन इलेक्शन का आईडिया नया नहीं है, इसे सबसे पहले 1983 में खुद चुनाव आयोग ने दिया था. चुनाव आयोग ने कहा था कि एक ऐसा सिस्टम तैयार करना चाहिए, जिसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं.

वन नेशन वन इलेक्शन के पीछे तर्क

अब आपको बताते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार और अन्य लोग जो वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन कर रहे हैं उनके इसके पीछे क्या तर्क हैं.

  • सबसे पहला तर्क ये है कि वन नेशन वन इलेक्शन से चुनावों में खर्च होने वाले करोड़ों रुपये बचाए जा सकते हैं
  • देश में होने वाले चुनावों की बार-बार तैयारी करने से छुटकारा मिलेगा
  • पूरे देश में चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी
  • सरकारों के विकास कार्यों में रुकावट नहीं आएगी
  • वन नेशन वन इलेक्शन के खिलाफ तर्क

अब भले ही केंद्र सरकार वन नेशन वन इलेक्शन को अपने ड्रीम प्रोजेक्ट की तरह पेश कर रही हो, लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो इसके खिलाफ हैं. इसका विरोध करने के लिए उनके पास अपने तर्क हैं. उनका कहना है कि अगर ये लागू होता है और देश में किसी एक पार्टी की लहर चल रही हो तो लगभग पूरे देश में वही पार्टी चुनाव जीतेगी. जिससे पूरे देश में एक ही पार्टी का शासन हो जाएगा.

इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि वन नेशन वन इलेक्शन से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों में मतभेद और ज्यादा बढ़ सकते हैं. इससे राष्ट्रीय पार्टियों को बड़ा फायदा पहुंच सकता है और छोटे दलों को नुकसान होने की संभावना है. साथ ही आर्टिकल 356 का गलत इस्तेमाल हो सकता है.

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