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उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती की गिनती अलग मिजाज वाले नेताओं में होती है. उनकी सियासत में दलित महापुरुषों और संतों का अहम रोल रहा है. इन्हीं महापुरुषों की बदौलत मायावती ने दलितों को राजनीति का ऐसा ब्रांड बना दिया, जिसे पाने की चाहत हर पार्टी को है.
यूपी में बीजेपी,मायावती की इसी पॉलिटिक्स को अब ‘हाईजैक’ करने की कोशिश में जुट गई है. दलित महापुरुषों के बहाने बीजेपी दलितों पर डोरे डालने का प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वाराणसी दौरे पर इसकी झलक भी देखने को मिली.
वाराणसी के सीरगोवर्धन में ही दलितों के सबसे बड़े संत रविदास का जन्म हुआ था. हर साल 19 फरवरी को उनकी जन्मस्थली पर यहां बड़ा जलसा लगता है. देश के कोने-कोने से उनके अनुयायी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. लेकिन चुनावी माहौल में सीरगोवर्धन सियासत का नया अड्डा बन गया है.
19 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संत रविदास की जन्मस्थली पर सिर झुकाया. श्रद्धालुओं से सत्संग किया और सामाजिक समरसता का संदेश देने की कोशिश की.
रैदासियों पर अब तक मायावती अपना हक मानती हैं. लेकिन बदलते सियासी माहौल में बीजेपी भी सेंधमारी करने में लगी है. रैदासियों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी सिर्फ जुबानी तौर पर प्रयास नहीं कर रही है. बल्कि जमीनी स्तर पर भी कोशिशें कर रही हैं.
सीर गोवर्धन में 1997 से अधूरे पड़े प्रोजेक्ट को बीजेपी सरकार पूरा करने जा रही है. दरअसल, साल1997 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने संत रविदास की जन्मस्थली पर एक भव्य स्मारक और पार्क निर्माण की योजना बनाई थी.
मायावती का यह ड्रीम प्रोजेक्ट तब एसपी के विरोध प्रदर्शन के कारण पूरा नहीं हो पाया. बीएसपी सुप्रीमो के उसी प्रोजेक्ट का अब पीएम मोदी ने शिलान्यास किया है. वाराणसी दौरे पर पहुंचे पीएम मोदी ने जिन परियोजनाओं का लोकार्पणऔर शिलान्यास किया है, उनमें संत रविदास पार्क भी शामिल है.
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की सियासत में एक नया समीकरण देखने को मिला था. बीएसपी के कोर वोटर (दलित) पहली बार कुछ लोकसभा क्षेत्रों में बंटे और आम चुनाव में बीएसपी का यूपी में खाता ही नहीं खुला. दलितों ने मायावती की तुलना में नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताया. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी ने बीएसपी के वोटबैंक में सेंधमारी करते हुए यूपी की 71 सीटें हासिल कर ली.
जानकार बताते हैं कि मोदी सरकार किसी भी कीमत पर दलितों को साथ रखना चाहती है. एससी एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त फैसला सुनाया तो मोदी सरकार ने उसे संसद में पलटने में तनिक भी देर नहीं की.
हालांकि, बीजेपी को इसकी कीमत भी बीते विधानसभा चुनाव में चुकानी पड़ी. पीएम मोदी रैदासियों के जरिए फिर से दलितों का दिल जीतने की कोशिश कर रहे हैं. उन्हें इस बात का बखूबी इल्म है कि अगर यूपी का रण जीतना है तो दलित का साथ पाना ही होगा. लेकिन 2014 की तुलना में इस बार मोदी की डगर कठिन दिख रही है.
देश में सबसे ज्यादा दलित वोटों की संख्या पंजाब में 35 फीसदी है. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 21 फीसदी के साथ ही हरियाणा, बंगाल में दलित वोटरों की अच्छी हैसियत है. रविदास जयंती यानी 19 फरवरी को लाखों की संख्या में रैदासी यहां आते हैं. इनमें ज्यादा संख्या पंजाब की होती है, जिन पर रविदास मंदिर का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है.
लिहाजा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर पीएम मोदी तक मत्था टेक रहे हैं.
दलित विचारक प्रोफेसर एमपी अहिरवार का कहना है कि-
रविदास मंदिर उनकी जन्म स्थली वाराणसी के सीरगोवर्धन गांव में है. यहां पर उनके मंदिर का शिलान्यास सन् 1965 में हुआ, बाद में भव्य मंदिर बन कर तैयार हुआ, जिसमें 1975 में संत रविदास जी की मूर्ति की स्थापना हुई.
दो दशक पहले बीएसपी की सरकार में रविदास की ये जन्मस्थली मजबूत सियासी ताकत के तौर पर उभरी. पहले यहां सिर्फ दलित और बीएसपी समर्थक ही दिखते थे लेकिन यूपी की सियासत में नरेंद्र मोदी के दस्तक के साथ,अब यहां आने वाले चेहरे बदल गए हैं.
बीएसपी समर्थकों की तुलना में बीजेपी नेता कहीं अधिक दिखते हैं. वाराणसी से चुनाव लड़ चुके अरविंद केजरीवाल साल 2016 में पंजाब चुनाव के पहले आए थे. तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी दरम्यान संत रविदास का आशीर्वाद लेने पहुंचे थे.
पिछले साल यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी पहुंचें थे. उन्होंने तो दलित प्रेम दिखाते हुए चंद्रग्रहण के बावजूद मंदिर में लंगर छका था, जिस पर उस समय लम्बी बहस छिड़ी थी.
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