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दशकों से चले आ रहे कावेरी जल विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि नदी के पानी पर किसी भी राज्य का मालिकाना हक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब तमिलनाडु को पहले से कम पानी मिलेगा. वहीं कर्नाटक को मिलने वाले पानी की मात्रा में 14.75 मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसीएफटी) का इजाफा किया है. कावेरी नदी पर इस फैसले के साथ ही राजनीतिक बयानों का दौर शुरू हो गया है. तमिलनाडु का पानी कम किये जाने पर राज्य के नेताओं ने कड़ा विरोध दर्ज किया है.
फिल्म से राजनीति में आने वाले कमल हासन ने इसपर कहा है कि हमारे लिए ये बहुत आश्चर्य की बात है कि तमिलनाडु को कम पानी मिलेगा.
साथ डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन ने तमिलनाडु सरकार की हार बताते हुए कहा कि एआइएडीएमके की सरकार वो हक खो दिया है जो कलैग्नार (करूणानिधि) ने हासिल किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कावेरी के पानी के मामले में उसका फैसला अगले 15 सालों के लिए लागू रहेगा. कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने फैसले पर खुशी जताते हुए इसका स्वागत किया है. सिद्धारमैया ने कहा हम इस फैसले के लिए बहुत सालों से लड़ रहे थे और अब कामयाबी मिली है.
कावेरी नदी पर फैसला आने के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि गोदावरी का 3,000 टीएमसी पानी समुद्र में चला जाता है, हम कोशिश कर रहे हैं कि नदियों को जोड़ने के लिए दो प्रोजेक्ट लाएं.
उन्होंने कहा गोदावरी के पानी को रोक कर हमलोग इंद्रावती के पास कालेश्वर, तेलंगना के डैम ले जाएंगे. उसके बाद इंद्रावती का पानी महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ सरकार की अनुमति लेकर ये पानी हम फिर से दो डैम में दाल कर कावेरी के आखिरी छोड़ तक तमिलनाडु ले जाएंगे.
ये विवाद अाजादी से पहले ही शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत मद्रास प्रेसिडेंसी और मैसूर राज के बीच अंग्रेजी हुकूमत के वक्त से है. 1924 में इन दोनों राज्य के बीच एक समझौता हुआ, लेकिन बाद में इस विवाद में केरल और पांडिचेरी भी शामिल हो गए. आजादी के बाद चारों राज्यों के बीच समझौता हुआ. लेकिन इसका कोई हल नहीं निकला. यह विवाद खास तौर पर तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच था.
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