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आम आदमी पार्टी की सरकार रायशुमारी के अंदाज अपना रही है और इसने सम-विषम का दूसरा दौर शुरू करने से पहले जनता की राय मांगी है. द क्विंट ने सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायर्नमेंट) की अनुमिता रॉय चौधरी से दिल्ली की प्रदूषण विरोधी नीतियों और उपायों के नफे-नुकसान पर बात की.
सवालः दिल्ली सरकार का दावा है कि 15 दिन के सम-विषम योजना की वजह से प्रदूषण का स्तर 20-25 फीसद तक कम हुआ. क्या इसका श्रेय वाकई वाहनों पर लगी रोक को मिलना चाहिए या कोई और वजह है?
अनुमिता रॉय चौधरीः हमने सम-विषम सप्ताहों के दौरान दिल्ली की 200 जगहों से इकट्ठा किए सरकार के आंकड़ों का विश्लेषण नहीं किया है. लेकिन रीयल टाइम आंकड़ों के हमारे नियमित विश्लेषण, जो दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमिटी की निगरानी में होते हैं, यह बताते हैं कि सम-विषम योजना के दौरान प्रदूषण का स्तर जाड़ो में स्मॉग के उच्च स्तरों के मुकाबले काफी कम रहा.
विपरीत मौसम परिस्थितियों के बावजूद—हवा, तापमान में गिरावट और पश्चिमी विक्षोभ न होने पर भी, सम-विषम योजना के दौरान प्रदूषण बेहद कम रहा. प्रदूषण के इस स्तर को कम घटते यातायात ने कम किया.
सम-विषण कार्यक्रम के दौरान हवा की कम रफ्तार के बावजूद प्रदूषण स्तर मे तेज गिरावट दर्ज की गई. उपग्रह के चित्र बताते हैं कि दिल्ली मे प्रदूषण में सम-विषम पखवाड़े मे खास कमी देखी गई है.
अध्ययन बताते है कि दिल्ली का प्रदूषण स्तर पड़ोसी इलाको से सम-विषम योजना के दिनों में बेहद कम रहा है. लेकिन राजधानी की सीमाओं से सटे हुए इलाकों में और एनसीआर के आसपास प्रदूषण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा—बल्कि इनमे 35 फीसद की गिरावट ही आई. शिकागो विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक अन्य अध्ययन के मुताबिक सम-विषम योजना के दौरान पार्टीक्युलेट वायु प्रदूषण में 10 से 13 फीसद की कमी आई थी.
सवालः क्या सम-विषम योजना जारी रहनी चाहिए खासकर तब जब आम लोगो ने इस योजना को सही ठहराया और क्या इसमें दोपहिया वाहनों को भी शामिल किया जाए क्योंकि पूरी दिल्ली में उनकी संख्या चार पहिया वाहनों से अधिक है?
अनुमिता रॉय चौधरीः इस असर का प्रभाव निश्चित रूप से इस कार्यक्रम के स्कोप पर निर्भर करेगा. ऐसी आपातकालीन उपायों के अगले चरण में अपवादों की गिनती कम रहेगी और इसमें दोपहिया और महिलाओं को भी शामिल किया जा सकता है.
इसके लिए सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को बेहतर करने की योजनाओं को तत्काल शुरू करने की भी जरूरत होगी. दूसरे देशो में ऐसे कार्यक्रमों को जरूरतों और प्रदूषण समस्याओं की गंभीरता के लिहाज से लागू किया जाता है.
कुछ छोटी अवधि के कार्यक्रमों, मिसाल के तौर पर पैरिस में, यातायात में 18 फीसद की कमी दर्ज की गई जबकि प्रदूषण के स्तर में 6 फीसद की. जबकि बीजींग में कार्यक्रम थोड़ा लंबा और सख्त था, तो पीएम 10 के स्तर में इससे 38 फीसद की कमी दर्ज की गई.
सवालः सफर (एसएएफएआर) के मुताबिक, 1 से 15 जनवरी के बीच पीएम 2.5 के आंकड़े अभी भी बेहद खराब श्रेणी में थे और इसकी सुई खतरनाक स्तर को छूने वाली थी. दूसरी तरफ, दिल्ली सरकार 200 स्टेशनों पर भेजी गई छोटी मशीनों के आंकड़ों पर भरोसा कर रही है, और आंकड़ो को पिछले साल की तुलना में देख रही है.लेकिन कोई आधारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है ऐसे में क्या यह बहुत जल्दबाजी नहीं है कि इस नतीजे पर पहुंचा जाए कि एक पखवाड़े में दिल्ली का प्रदूषण कम हो गया?
अनुमिता रॉय चौधरीः बहुत जाहिर सी बात है कि इस योजना के खत्म होने के ठीक बाद वायु प्रदूषण बहुत तेजी से वापस आया है. सम-विषम योजना के पूरे होने के बाद पहले तीन कामकाजी दिन में हवा में प्रदूषण की मात्रा में तेजी दिखाई दी, पीएम 2.5 स्तर में पहले कामकाजी दिन में 57 फीसद की उछाल आई थी. और यह कई स्तरों के ऊंचा बना रहा.
लेकिन यह बात भी समझना अहम है कि इसके साथ कितने और भी फायदे इस सम-विषम पखवाड़े में शहर को हासिल हुए. इन दिनो में सार्वजनिक परिवहन में लोगों की भागदारी बढ़ी. सड़कों की राशनिंग ने परिवहन के हर प्रकार को अधिक सक्षम बनाने में मदद की, उनको अधिक लोगों को अधिक दूरी तक ले जाने में सहायता की.
मेट्रो में भी मुसाफिरों की संख्या बढ़ी. बस के यात्रियों की संख्या करीब 8 फीसद बढ़ गई. डीटीसी के बस के बेड़ों का उपयोग सामान्य दिनों के 84 फीसद से बढ़कर 95 फीसद हो गया.
ग्राफिक्सः सम-विषम पखवाड़े में डीटीसी के बस के बेड़ों का उपयोग सामान्य दिनों के 84 फीसद से बढ़कर 95 फीसद हो गया.
स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड कार्किटेक्चर के ट्रैफिक सर्वे एंड ट्रैवल एट्रीब्यूट्स स्टडी से मिले आंकड़े बताते हैं कि सम-विषम योजना के दिनों में यात्रा की औसत रफ्तार 50 किमी प्रति घंटा रही जबकि आम दिनों में यह 20 से 25 किमी प्रति घंटा ही होती है.
हमने 15 जनवरी 2016 (सम-विषम योजना के दिनो के लिए) और 19 जनवरी 2016 (सम-विषम योजना के बाद के लिए) को गूगल के ट्रैफिक अप़डेट की तुलना की. सम विषम योजना के बाद ज्यातार सड़को पर भीड़-भाड़ की स्थितियां बढ़ी हैं.
सवालः आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के जमा किए जाने के दो महीने बाद भी दिल्ली सरकार ने इसकी सिफारिशों को सार्वजनिक नहीं किया है. न्यूज़ रिपोर्टों के मुताबिक, वाहनों के उत्सर्जन से अधिक धूल की वजह प्रदूषण होता है. क्या सरकार को रिपोर्ट की सिफारिशें सार्वजनिक करनी चाहिए, क्या सीएसई स्रोत विभाजन अध्ययन के निष्कर्ष के बारे में बता सकती है?
अनुमिता रॉय चौधरीः हम सरकार से अनुरोध करेंगे कि वह जल्दी से रिपोर्ट को फाइनल करे और इसे सार्वजनिक करे. मसौदा रिपोर्ट से उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि प्रदूषण में वाहनों की हिस्सेदारी दूसरी सबसे ज्यादा है. चाहे वह पार्टिक्युलेट मैटर हो या नाइट्रोजन ऑक्साइड.
यही नहीं, इस रिपोर्ट में पहली बार सेकेंडरी पार्टिक्युलेट्स की जांच की गई है कि यह दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 का 25 फीसद योगदान करती है।
यह अध्ययन हवा में जहरीले तत्व मसलन, पॉलीसाइक्लिक एरौमैटिक हाइड्रोकार्बनों की तरफ भी इशारा करता है. हर किसी को ध्यान रखना चाहिए कि सड़क से उड़ती धूल, जो कि पीएम 2.5 में सबसे अधिक योगदान करती है, वह भी हवा में यातायात की वजह से ही आती है और इसमें वाहनों से निकले जहरीले तत्व भी होते हैं.
लोगों की सेहत के नजरिए से वाहनों के धुएं वाली पाईपों पर हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि उन्हीं से सबसे अधिक उत्सर्जन होता है. हमें प्रदूषण के हर स्रोत पर जल्द कार्रवाई करनी होगी.
साफ हवा और लोगों की सेहत के लिए यह काम समयबद्ध सीमा में करना होगा. इसके लिए वाहनों पर खास ध्यान देने की जरूरत है.
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