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हिमाचल सरकार ने स्कूलों के परिणामों के आंकलन और सूबे में शिक्षा के खराब परिणामों के कारणों का पता लगाने के लिए जनवरी, 2010 में एक नीति बनाई थी. इस नीति के तहत जिन स्कूलों के परीक्षा परिणाम 25 फीसदी से कम होते, उनके शिक्षकों को दंडित किया जाना था.
ऐसे स्कूलों के शिक्षकों की वार्षिक गोपनीय रपट में प्रतिकूल टिप्पणी के साथ भावी वेतन वृद्धि रोकने का प्रावधान भी था. लेकिन इतना सब करने के बावजूद हिमाचल के शिक्षा विभाग ने शिक्षा की खराब स्थिति का कीर्तिमान स्थापित किया है.
राज्य के 20 फीसदी सरकारी स्कूलों में 2014-15 की परीक्षा में 10वीं कक्षा के आधे और 12वीं कक्षा के 14 प्रतिशत छात्र फेल हो गए. यह खुलासा ऑडिट रिपोर्ट से हुआ.
CAG ने साथ ही इस बात पर ज्यादा आश्चर्य व्यक्त किया कि विभाग ने 25 फीसदी से कम परिणाम वाले स्कूलों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. CAG की रिपोर्ट में कई और चौकाने वाले आंकड़े भी सामने आए हैं.
मसलन, हिमाचल सरकार के शिक्षा विभाग के पास किसी तरह से फंड्स की कमी भी नहीं है. फिर भी सरकारी लेखा परीक्षक ने विधानसभा में रिपोर्ट पेश कर यह बताया कि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के क्रियान्वयन में कई खामियां रहीं, क्योंकि राज्य के स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है.
हाल में समाप्त बजट सत्र के दौरान विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने राज्य में शिक्षा के स्तर में तेजी से गिरावट और स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या में वृद्धि पर चिंता जताई थी. इसपर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सफाई देते हुए कहा कि शिक्षकों के खाली पदों को भरना उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता है.
मुख्यमंत्री ने इस साल मार्च में शिक्षण संस्थानों के निरीक्षण और शिक्षा में सुधार के लिए ब्रिटिश व्यवस्था को पुनर्जीवित करते हुए शिक्षा निरीक्षणालय का गठन किया.
इसके अलावा इस बार बजट में मुख्यमंत्री ने एक योजना की घोषणा की जिसके तहत प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के दो उच्च माध्यमिक स्कूलों में उत्कृष्ट आधारभूत संरचनाओं और पढ़ाई की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी.
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