84 साल के इस IIT ग्रेजुएट की वजह से असम में लागू हुआ NRC 

प्रदीप कुमार भुयन ने 2009 में NRC को अपडेट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी

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प्रदीप कुमार भुयन ने NRC के लिए याचिका तैयार की
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प्रदीप कुमार भुयन ने NRC के लिए याचिका तैयार की
( फोटो : यूट्यूब) 

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असम में NRC की आखिरी लिस्ट के बाद लगभग 19 लाख लोगों के सामने विदेशी होने का खतरा मंडरा रहा है. लेकिन बहुत कम लोगों को पता है NRC को लेकर इस पूरी प्रक्रिया की शुरुआत आईआईटी खड़गपुर के 1958 बैच के ग्रेजुएट प्रदीप कुमार भुयन की सरपरस्ती में दाखिल एक याचिका से हुई. 84 साल के भुयन इस बारे में बहुत कम बात करते हैं. प्रदीप कहते हैं उन्हें अपने राज्य से प्यार है और इसी वजह से उन्होंने NRC को अपडेट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका तैयार करने में मदद की थी.

प्रदीप कहते हैं कि उन्होंने असम आंदोलन में हिस्सा लिया था और लगातार यह देख कर चिंतित थे राज्य में राजनीतिक ताकत बाहरी लोगों के हाथ में सिमटती जा रही है.

जुलाई 2009 में सुप्रीम कोर्ट में मंजूर हुई थी याचिका

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में प्रदीप कहते हैं कि फरवरी 2009 में एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स के अभिजीत शर्मा ने उनसे संपर्क किया. पूछा कि क्या वह NRC को लागू करने के लिए दायर की जाने वाली याचिका को तैयार करने में मदद कर सकते हैं. उन्होंने हामी भर दी और फिर दो महीने तक राज्य में 1971 के चुनावों के हर आंकड़े का विश्लेषण किया. उन्होंने एक-एक क्षेत्र के चुनावी नतीजों को परखा और फिर इस आधार पर जुलाई 2009 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इससे पहले इस मामले को लेकर कई पीआईएल रद्द हो चुकी थीं लेकिन असम पब्लिक वर्क्स की याचिका मंजूर हो गई.

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बाहरी लोगों के वोट का अधिकार छीनना होगा

प्रदीप कुमार का कहना है कि उन्हें इतनी बड़ी तादाद में लोगों को बाहरी करार दिए जाने की गंभीरता का अंदाजा है. लेकिन उनके पास फॉरेन ट्रिब्यूनल में जाने का विकल्प मौजूद है. NRC प्रक्रिया का मकसद लोगों को बाहर निकालना कभी नहीं रहा.

प्रदीप कहते हैं कि उन्होंने चुनाव आयोग को सुझाया है सबसे पहले इन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटे जाएं. घुसपैठिये साबित होने वाले लोगों को वर्क परमिट दिया जा सकता है. लेकिन उन्हें मताधिकार से वंचित करना होगा. वोट देने का अधिकार मिलने से बाहरी लोगों का राज्य की राजनीतिक पर नियंत्रण हो गया है. इसके अलावा भाषा, संस्कृति और आबादी का स्वरूप बिगड़ने का खतरा तो है ही.

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