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SC ने प्रशांत भूषण के खिलाफ 2009 का अवमानना केस 10 सितंबर तक टाला

अब इस मामले की सुनवाई अलग बेंच करेगी.

क्विंट हिंदी
भारत
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प्रशांत भूषण 
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प्रशांत भूषण 
(फोटो: द क्विंट)

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सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के खिलाफ साल 2009 के अवमानना केस को 10 सितंबर तक टाल दिया है. यह मामला तहलका पत्रिका को, 'न्यायपालिका में भ्रष्टाचार' के बारे में दिए भूषण के बयान से जुड़ा है.

इससे पहले जस्टिस अरूण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने कहा था कि उसके सामने पेश मामले के दूरगामी नतीजे हैं और वो वकीलों को सुनना चाहती है कि क्या जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुये बयान दिए जा सकते हैं और ऐसे मामले में क्या प्रकिया अपनाई जानी चाहिए.

हालांकि, अब 3 सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा के रिटायरमेंट के बाद अब इस मामले की सुनवाई अलग बेंच करेगी.
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भूषण ने रविवार को कोर्ट से कहा था कि जजों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाना अदालत की अवमानना नहीं होगी. शीर्ष अदालत ने वकीलों से कहा था कि वे इन तीन बिंदुओं पर कोर्ट को संबोधित करें:

  • क्या इस तरह के बयान दिये जा सकते हैं?
  • किन परिस्थितियों में ये दिए जा सकते हैं?
  • पीठासीन और रिटायर्ड जजों के मामलों में क्या प्रकिया अपनाई जानी चाहिए?

भूषण की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा था कि कोर्ट की तरफ से उठाए गए सवाल बहुत ही ‘अहम’ हैं और उन्होंने सुझाव दिया था कि इस मामले पर संविधान बेंच को विचार करना चाहिए.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2009 में तहलका पत्रिका में शीर्ष अदालत के कुछ मौजूदा और पूर्व जजों पर कथित तौर पर आक्षेप लगाने के लिए भूषण और तेजपाल को अवमानना नोटिस जारी किए थे. तेजपाल तब इस पत्रिका के संपादक थे.

इस मामले को लेकर भूषण ने अपने बयान में कहा था, ‘‘तहलका को 2009 में दिए गए इंटरव्यू में मैंने भ्रष्टाचार शब्द का इस्तेमाल व्यापक संदर्भ में शुचिता की कमी के बारे में किया था. मेरा मतलब किसी तरह के वित्तीय भ्रष्टाचार या आर्थिक फायदा हासिल करने से नहीं था. अगर मैंने जो कुछ कहा उससे उनमें से किसी को या उनके परिवारों को किसी भी तरह से ठेस पहुंची तो मैं इसके लिए खेद जताता हूं.’’

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Published: 25 Aug 2020,12:14 PM IST

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