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स्तंभकार प्रताप भानु मेहता ने हाल ही में अशोका विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद से चर्चा शुरू हो गई क्या इस्तीफे का कारण उनके द्वारा लिखे गए लेखों के माध्यम से मोदी सरकार की आलोचना है? अभी यह बात पूरी तरह साफ नहीं है. ऐसा नहीं है कि मेहता हमेशा से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करते रहे हैं.
साल 2014 से पहले स्तंभकार मेहता गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का सराहा करते थे. मोदी के प्रधानमंत्री बनने (2014) के बाद वह उनकी नीतियों के आलोचक हो गए.
स्तभंकार प्रताप भानु मेहता ने 2013 में इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था 'While we were silent' (जब हम चुप थे) इसमें उन्होंने बताया कि कैसे यूपीए ने अपने 10 साल के कार्यकाल में देश के बुनियादी ढांचे, संस्थाओं और उद्योगों को नष्ट किया है.
इस लेख में उन्होंने लिखा,
साल 2012 दिसंबर में जब नरेंद्र मोदी एक बार फिर गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय मेहता ने 2002 के गुजरात दंगे में मोदी की भूमिका को लेकर "A Modi-fied Politics" शीर्षक से लेख लिखा.
जिसमें उन्होंने कहा गुजरात दंगे (2002) की जांच एसआईटी ने की. जांच एजेंसियों द्वारा मोदी को सभी आरोपों से दोषमुक्त होने के बाद भी वह राजनीतिक दोषी बने रहेंगे.
साल 2014 लोकसभा चुनाव के पहला चरण होने में कुछ दिन रह गए थे. इसी बीच कई लोगों ने तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को 'फासिस्ट' कहा था. इस पर स्तंभकार प्रताप भानु मेहता ने 'Regarding Fascism' शीर्षक से लिखे लेख में इसकी निंदा की. उन्होंने कहा कि
उन्होंने लेख में यह जरूर माना कि देश में सांप्रदायीकरण बढ़ रहा है. मुजफ्फरनगर दंगों(2013) को एक साल भी नहीं हुआ था. मेहता ने कहा कि बीजेपी का प्राथमिक लक्ष्य आर्थिक विकास है. इसे हासिल करने की कोशिश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एजेंडा हावी नहीं होने देंगे.
आगे लिखा कि
सितंबर 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी में घर में गोमांस रखने के शक में अखलाक की भीड़ ने हत्या कर दी थी. इसके बाद प्रताप भानु मेहता ने अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में 'Dadri Reminds Us How PM Modi bears Responsibility For the Poison that is being Spread' शीर्षक से लेख लिखा. इसमें उन्होंने लिखा,
साल 2016 में जेएनयू छात्रसंघ के तत्कालीन अध्यक्ष कन्हैया कुमार को कथित देश विरोधी नारे लगाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद मेहता ने अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में An Act Of Tyranny: 'Modi Govt Threatened Democracy: That is the most anti-national of all acts' शीर्षक से कॉलम लिखा. इसमें उन्होंने कहा,
हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार विधेयक, 2020 को हाल ही में राज्यपाल की मंजूरी मिल गई है.
जिसके बाद यह कानून बन गया है. इस पर प्रताप भानु मेहता ने द इंडियन एक्सप्रेस में हाल ही में अपने लेख के माध्यम से सरकार की आलोचना की. लिखा कि यह संवैधानिक रूप से सही नहीं और सामाज को बांटने वाला भी है. इस कानून के तहत हरियाणा में निजी क्षेत्र की 50 हजार रुपये से कम प्रति माह वेतन वाली नौकरियों में राज्य के युवाओं को 75 प्रतिशत आरक्षण है.
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