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भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को कट्टर हिंदू पार्टी और अपने अकड़ैल रवैये के लिए जाना जाता है. लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार के लिए सर्व सहमति बनाने को लेकर उसका विपक्षी दलों से संपर्क करना एक सुखद आश्चर्य है. हालांकि ये भी संभव है कि राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के पास बहुमत होने की वजह से ही वह उदार रवैया दिखा रही है.
एनडीए उम्मीदवार को लेकर आम सहमति बनाने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता और मोदी सरकार में मंत्री वेंकैया नायडू विपक्षी दलों को याद दिला रहे हैं कि वह 'लोकतंत्र की वास्तविक भावना' के तहत सलाह-मशविरा कर रहे हैं, लेकिन विपक्षी दलों को याद रखना चाहिए कि "लोगों का जनादेश सरकार के साथ है." नायडू के अलावा विपक्षी दलों से बात करने के लिए गृहमंत्री राजनाथ सिंह और वित्तमंत्री अरुण जेटली को चुना गया है.
हालांकि आम सहमति का उम्मीदवार तभी चुना जा सकता है, जब बीजेपी अपनी संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की उस सलाह को खारिज कर दे, जिसमें पार्टी को अपने बहुमत का फायदा उठाते हुए हिंदुत्व विचारधारा का प्रत्याशी चुनने की बात कही गई है.
इस विचारधारा के साथ ही आरएसएस, भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद जैसे 'स्वायत्त' संस्थानों में भगवा विचारधारा वालों को बिठाने में सफल रही है. ऐसे में वह राष्ट्रपति भवन में अपने पसंद के उम्मीदवार को भेजने में संकोच क्यों करेगी?
हालांकि जब भागवत ने खुद इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया तो शिवसेना एम. एस. स्वामीनाथन से लेकर 'मेट्रो मैन' ई. श्रीधरन का नाम आगे बढ़ाने लगी. राष्ट्रपति पद के लिए यह दोनों ही उपयुक्त उम्मीदवार हैं, क्योंकि उन्होंने राजनीति से दूरी बनाए रखी है.
बीजेपी और 'धर्मनिरपेक्ष' दलों के बीच एक और नाम लालकृष्ण आडवाणी पर समझौता हो सकता है. लेकिन बीजेपी के मार्गदर्शक अब आरएसएस के पसंदीदा नहीं रहे, जबसे उन्होंने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की थी. इसके बाद उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था और वह आज तक पार्टी में हासिए पर पड़े हुए हैं.
आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा इन दोनों नेताओं का मामला जानबूझकर खोला गया है, क्योंकि दोनों ही नरेंद्र मोदी के विश्वासपात्र नहीं हैं.
हालांकि एक और शख्सियत राष्ट्रपति पद की दावेदार दिख रही हैं जो 2014 के आम चुनावों से पहले तक मोदी की तरक्की से खुश नहीं थी. सुषमा स्वराज का नाम राष्ट्रपति पद के लिए दावेदारी की दौड़ में आगे दिख रहा है. विदेश मंत्री के रूप में उनकी मानवीय मदद (जिसे एनआरआई से लेकर पाकिस्तानी लोगों तक को उन्होंने दी) उनके लिए काफी सकारात्मक बात है और दूसरी प्रमुख सकारात्मक बात यह है कि माना जाता है कि उन्हें आरएसएस का समर्थन भी प्राप्त है.
दौड़ में आगे चल रहे अन्य लोगों में झारखंड की गर्वनर द्रौपदी मुर्मू और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन हैं.
लेकिन दूसरी तरफ विपक्ष की तरफ से लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष मीरा कुमार उम्मीदवार हो सकती है, जो प्रमुख नेता जगजीवन राज की बेटी हैं और दलित जाति से भी हैं. लेकिन कांग्रेस के आदमी के नाम पर आरएसएस सहमत नहीं होगा.
अगर कांग्रेस से नहीं चुनना हो तो उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नाम पर सहमति हो सकती है. क्योंकि उनके अलावा कोई और प्रमुख नाम नहीं है, जो संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के मुताबिक, मुस्लिम होने के बावजूद राष्ट्रवादी हैं.
वामपंथी दल महात्मा गांधी (जिसे अमित शाह ने चतुर बनिया घोषित किया है) के प्रपौत्र गोपाल कृष्ण गांधी का नाम आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन पूर्व गवर्नर और राजनयिक होने के अलावा उन पर जो धर्मनिरपेक्षता का ठप्पा है, वह शायद मोदी सरकार को रास नहीं आएगा.
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