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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा करते वक्त जो मोहलत मांगी थी, वो खत्म होने को है. दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल के सालबोनी और कर्नाटक के मैसुरु स्थित रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के प्रिंटिंग प्रेस में काम कर रहे कर्मचारियों ने 12 घंटे की शिफ्ट करने से मना कर दिया है.
कर्मचारियों के इस फैसले के बाद 500 के नए नोटों की छपाई में भारी गिरवाट आना तय माना जा रहा है. सालबोनी और मैसुरु के प्रिंटिंग प्रेस में सितंबर से 2000 के नोट की छपाई चल रही है और इसी महीने से उन्हें 9 की जगह 12 घंटे काम करने को कहा गया था.
कर्मचारियों ने जिस तरह अचानक अधिक घंटे काम करने से मना किया है, उसे नोटबंदी के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रुख से जोड़कर देखा जा रहा है.
क्विंट से बात करते हुए तृणमूल कांग्रेस के सांसद शिशिर अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा कि करीब 700 कर्मचारी हैं, जिनमें से करीब 300 अधिकारी पद पर हैं, जिन्होंने अधिक घंटों तक काम करने से मना कर दिया है.
सालबोनी प्रेस का संचालन भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (बीआरबीएनएमपीएल) करती है, जो कि सीधे आरबीआई के अंडर आती है. दूसरी तरफ प्रेस में काम करने वाले कर्मचारी इंडियन नेशनल तृणमूल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (आईएनटीटीयूसी) से जुड़े हुए हैं.
आरबीआई ने आशंका जताई है कि कर्मचारियों के इस फैसले से नोटों की छपाई की दर करीब 40 प्रतिशत तक कम हो जाएगी. मोदी ने बाजारों में नए नोटों को जल्द से जल्द लाने का जो ऐलान किया था, वो तो पहले ही मुश्किलों में दिख रहा था, लेकिन इस फैसले के बाद तो दिक्कतें बढ़ना तय हैं.
सालबोनी बीआरबीएनएमपीएल कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष सुब्रत चटर्जी ने क्विंट से फोन पर बात की. उन्होंने कहा, '12 घंटे की शिफ्ट में हर दिन 500 के करीब 2 करोड़ नोट छप रहे थे, लेकिन अब नए समय के अनुसार इनकी संख्या केवल 1.20 करोड़ ही रह जाएगी.'
चटर्जी ने कहा कि सालबोनी से हर दिन सभी डिनोमिनेशन के करीब 3.60 करोड़ नोट आरबीआई को पहुंचाए जाते हैं. चटर्जी ने कहा, 'यहां लोग तीन शिफ्ट में 12-12 घंटे की नौकरी कर रहे थे. इससे उनके स्वास्थ्य और सामाजिक जीवन पर विपरीत असर पड़ रहा था.' वहीं बीआरबीएनएमपीएल वर्कर्स एसोसिएशन के सचिव नेपाल सिंह, जो कि टीएमसी से सालबोनी के ब्लॉक अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में कर्मचारियों के इस फैसले का असर दिखेगा.
दूसरी तरफ आरबीआई के एक सूत्र ने बताया, “कर्मचारियों के इस फैसले के पीछे निश्चित तौर पर तृणमूल कांग्रेस का हाथ है और इसके जरिए प्रधानमंत्री पर निशाना साधा जा रहा है.” सूत्र के अनुसार, बाजार में नए नोटों की आमद पर यकीनन असर तो पड़ेगा, साथ ही लोगों की मुश्किलें बढ़ेंगी और मोदी के लिए भी यह एक शर्मनाक स्थिति होगी.
अधिकारी ने कहा कि इसके पीछे कोई भी राजनीतिक चाल नहीं है. उन्होंने फोन पर बताया, ''कर्मचारी पिछले चार महीनों से 12 घंटे की नौकरी कर रहे हैं. कई ऐसे हैं जो सालबोनी प्लांट कॉम्प्लेक्स में अपने परिवार के साथ रहते हैं. लेकिन 12 घंटे की नौकरी के चलते कई कर्मचारी तबीयत खराब होने की शिकायत कर चुके हैं.'
उन्होंने आगे बताया, 'अगर अधिक घंटे काम करने से कर्मचारियों की तबीयत खराब हो रही है, तो वो अधिक काम कैसे करेंगे और उन्हें करना भी नहीं चाहिए.'
माना जा रहा है कि टीएमसी के कहने पर सालबोनी के कर्मचारियों ने यह फैसला लिया है. लेकिन उनके इस फैसले के बाद बीआरबीएनएमपीएल की मैसुरु प्रेस के कर्मचारियों ने भी 12 घंटे की ड्यूटी करने से मना कर दिया है.
आरबीआई सूत्रों का कहना है कि इस फैसले के बाद 500 के नोटों की छपाई और भी कम हो जाएगी जो पहले से ही काफी कम संख्या में छपे हैं. असल में 500 के नए नोटों की छपाई 2000 के नोट की छपाई शुरू होने के एक महीने बाद चालू की गई थी.
मोदी ने जब 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की थी उसी समय से देवास और नासिक की प्रिंटिंग प्रेस में 500 के नए नोटों की छपाई का काम शुरू हो गया था. इन दोनों प्रिंटिंग प्रेस के रखरखाव और व्यवस्था की जिम्मेदारी सुरक्षा प्रिंटिंग एवं मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) के अंतर्गत थी, जो कि वित्त मंत्रालय के अधीन है. लेकिन 500 के नोटों की कम आपूर्ति और 2000 के नोटों के कागज खत्म होने की वजह से आरबीआई और सरकार को सालबोनी और मैसुरुको भी 500 के नोटों की छपाई में लगाना पड़ा, जिससे जल्द से जल्द बाजार में उन्हें उपलब्ध कराया जा सके.
जब इन चारों प्रिंटिंग प्रेस ने एक साथ काम शुरू किया, तो नोटों की छपाई की संख्या में जरूर इजाफा हुआ, लेकिन इसके बावजूद यह उतने नहीं छप पा रहे थे, जितने की बाजार में जरूरत थी. 500 के नए नोटों के अलावा यह चारों प्रेस छोटे नोट भी छाप रहे थे.
सालबोनी और मैसुरु में जहां काम की स्थिति फिलहाल खराब लग रही है, वहीं दूसरी तरफ एसपीएमसीआईएल के अधिकारियों ने देवास और नासिक में मौजूद प्रेस के लिए लंच से जुड़ी एक नई घोषणा की है. इसके अंतर्गत अगर कर्मचारी अपना लंच ब्रेक नहीं लेते हैं, तो उन्हें इसके बदले में 150 से 200 रुपये नगद दिए जा रहे हैं.
इस नई घोषणा का मकसद साफ है कि कम से कम कर्मचारी लंच ब्रेक पर जाएं और ज्यादा से ज्यादा देर तक काम कर सकें. हालांकि यह फैसला देवास बैंक नोट प्रेस की स्याही फैक्ट्री के लिए नहीं लिया गया है. इस फैक्ट्री में नोटों पर इस्तेमाल होने वाली इंटेगलियो स्याही बनाई जाती है. नोटबंदी के फैसले के बाद से यहां स्याही का उत्पादन 1000 टन पहुंच चुका है.
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