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आर्टिकल 370 को हटाना तो दूर, उसके बारे में सोचना भी किसी भी सरकार के लिए एक बड़ा चैलेंज था. लेकिन मोदी सरकार ने इसे मुमकिन कर दिखाया. माना जाता था अगर ऐसा होता है तो स्थितियां बहुत विस्फोटक होंगी. लिहाजा कोई भी सरकार ये जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहती थी. लेकिन 5 अगस्त को मोदी सरकार ने ये कर दिखाया और बड़ी बात ये है कि जिस तरह के बवाल और हंगामे का डर था, फिलहाल उस तरह का विरोध घाटी में बाहर निकलकर नहीं आया या फिर नहीं आने दिया गया.
ऐसे में सवाल उठता है कि छोटे-छोटे मुद्दों पर खबरों की सुर्खियों में रहने वाला कश्मीर, इतने बड़े मसले पर ठंडा क्यों है ? दरअसल सरकार ने इनकी ताकत को ही अपना हथियार बना दिया.
कश्मीर में पिछले दस दिनों से ब्लैकआउट है. यहां की खूबसूरत वादियों में खामोशी भरी आग है. हालात कुछ ऐसे बने हैं कि सब कुछ खोने के बाद भी कश्मीरी बेबसी के रास्ते पर खड़े हैं. याद कीजिए पिछले पांच सालों में श्रीनगर की सड़कों पर आए दिन युवाओं की टोली हाथों में पत्थर लेकर उतरती तो सुरक्षाकर्मी भी खुद को लाचार पाते थे. अलगाववादियों ने घाटी में सेना को पीछे करने के लिए पत्थरबाजों को ताकत बनाया. ऐसा नहीं है कि सुरक्षा बलों ने पत्थरबाजों पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की.
पत्थरबाजों पर नकेल कसने के लिए मोदी सरकार ने खास प्लान तैयार किया. इस प्लान के तहत ये तय हुआ कि पत्थरबाजी करते पकड़े गए युवाओं को कश्मीर की जेल में नहीं बल्कि योगी के जेलों में भेजा जाएगा. यानी की उत्तर प्रदेश की जेलों में रखा जाएगा. पिछले दिनों पत्थरबाजों को आगरा और लखनऊ जेल में शिफ्ट किया जाना, मोदी सरकार के इसी प्लान का एक पार्ट है. पत्थरबाजों को उत्तर प्रदेश की जेल में भेजने के पीछे भी सरकार की एक बड़ी सोच है. कश्मीर और उत्तर प्रदेश के बीच देश के कई दूसरे राज्य पड़ते हैं. लेकिन इन्हें उत्तर प्रदेश ही क्यों लाया गया, जबकि सुरक्षा के लिहाज से यूपी की जेलें बेहद असुरक्षित है.
जेलों के अंदर माफियाओं की बादशाहत किसी से छिपी नहीं है. जेल के अंदर हत्या भी हुई है और मारपीट की घटनाएं तो आम हैं. ऐसे में कश्मीरी जो ठंडे प्रदेश के हैं. मौसम और माहौल दोनों ही इनके विपरित है. कश्मीरियों को यूपी की खूंखार जेलों में भेजना भी और उससे कहीं अधिक इसका खौफ पैदा करना सरकार की स्ट्रेटेजी है.
ईद और बकरीद का त्योहार मुसलमानों के लिए क्या मायने रखता हैं, ये बताने की जरुरत नहीं है. घाटी में आर्टिकल 370 को हटाने के लिए सरकार ने बड़ी चालाकी से इस खास मौके का इस्तेमाल किया. 12 अगस्त को बकरीद के ठीक सात दिन पहले यानी 5 अगस्त को सरकार ने इस कानून को हरी झंडी दे दी. सरकार जानती है कि कश्मीरी इस मौके को हिंसक नहीं होने देंगे. वो नहीं चाहेंगे कि बकरीद पर घाटी के अमन-चैन में खलल पड़े. हुआ भी कुछ ऐसा ही.
घाटी से आर्टिकल 370 हटाने से पहले सरकार ने एक साथ तीन मोर्चे पर काम किया. पत्थरबाजों को योगी की जेलों का डर दिखाने और धर्म को हथियार बनाने के अलावा सरकार ने सीमा को मजबूत किया. उसे इस बात का डर था कि अगर कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाया गया तो माहौल न सिर्फ घाटी के अंदर बिगड़ेगा बल्कि बॉर्डर पर भी टेंशन बढ़ेगी. इस कदम के बाद पाकिस्तान भी चुप नहीं बैठेगा. मदद और सहानुभूति के नाम पर आतंकी घुसपैठ करने के साथ ही किसी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकते हैं.
लिहाजा एलओसी पर सुरक्षाबलों की भारी तैनाती का फैसला किया गया. कश्मीर से सटे प्रदेशों में सेना की छावनियों में जवानों को 96 घंटे अलर्ट पर रखने का आदेश दिया गया था. सरकार का प्लान था कि बॉर्डर पर सिक्योरिटी बढ़ाकर पाकिस्तान पर दबाव डाला जाए. हुआ भी कुछ ऐसा. सीमा पर हलचल बढ़ते ही पाकिस्तान पशोपेश में पढ़ गया कि मोदी सरकार का अगला कदम क्या होने वाला है. ऐसा करके मोदी सरकार ने न सिर्फ पाकिस्तान को काबू में रखा बल्कि अलगाववादियों पर भी नकेल कस दिया.
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