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ये जो इंडिया है ना... यहां एक बड़ी पॉपुलर लाइन है - ऐ! तू जानता नहीं, मैं कौन हूं! जी हां, आज चलिए प्रिविलेज यानी रुतबा, और इस रुतबे के दुरुपयोग के बारे में, बात करते हैं!
प्रिविलेज या रुतबा, जिसने एक पूर्व IAS ऑफिसर की पत्नी, और झारखंड की बीजेपी नेता, सीमा पात्रा को.. अपनी आदिवासी हाउस हेल्प सुनीता को, सालों तक कथित रूप से, टॉर्चर करने का अधिकार दिया. उसे कैद रखा, कथित तौर पर उसे रॉड से मारा, उसके दांत तोड़े, मानसिक और शारीरिक तौर पर उसे एकदम तोड़ कर रख दिया. सीमा पात्रा ने इन आरोपों से इनकार किया है, लेकिन हमें ये जरूर पूछना चाहिए- क्या प्रिविलेज हमें किसी और इंसान को इस तरह से टॉर्चर करने का अधिकार देता है? जी नहीं.
ये भी देखिए - कैसे इस प्रिविलेज के वजह से, गुड़गांव के बिजनेसमैन, वरुण नाथ ने एक सिक्योरिटी गार्ड अशोक कुमार, और एक लिफ्ट ऑपरेटर को बार-बार थप्पड़ मारा, उसे गालियां दीं. क्योंकि वो लिफ्ट में 3-4 मिनट के लिए फंसे हुए थे. उन्होंने उन्हीं लोगों को मारा, जिन्होंने उनकी मदद की थी. और प्रिविलेज का एक और, यह किस्सा भी देखिए - नोएडा की एक वकील भव्या राय ने सिक्योरिटी गार्ड करण चौधरी से गाली-गलौज की, क्योंकि उसने उनकी गाड़ी के लिए सोसाइटी का गेट देर से खोला. क्या प्रिविलेज या रुतबा हमें यह हक देता है? जी नहीं.
और यह भी देखिए, कुछ साल पहले, 2017 में,सेलिब्रिटी और सिंगिंग टैलेंट शो होस्ट आदित्य नारायण ने रायपुर एयरपोर्ट पर अपनी प्रिविलेज दिखाते हुए इंडिगो एयरलाइन्स के स्टाफ के साथ कैसा बर्ताव किया.
पैटर्न क्लियर है, नेता, या नेता के रिश्तेदार, तो प्रिविलेज. बिजनसमैन, तो प्रिविलेज.सरकारी अफसर, तो प्रिविलेज. स्टार या सेलिब्रिटी, तो प्रिविलेज. और जब प्रिविलेज या रुतबा होता है, तो कभी हाथ या कभी जुबान चल ही जाती है. और तब, डोमेस्टिक हेल्प्स, सेक्युरिटी गार्ड, सोसाइटी के इलेक्ट्रीशियन और प्लंबर्स, रेस्टोरेंट में वेटर्स, होटल स्टाफ, डिलेवरी एग्जिक्यूटिव, टैक्सी ड्राईवर, ऑफिस के पिऊन...इस प्रिविलेज के दुरूपयोग का शिकार बन जाते हैं.
अब अगर हम इस पर थोड़ा और ध्यान दें, अपने आस-पास नजर दौड़ाएं.. तो साफ दिखता है कि भारत में हर तरह का भेद-भाव… प्रिविलेज से जुड़ा हुआ है. हाल ही में शाहरुख हुसैन नाम के व्यक्ति ने, 19 साल की लड़की को जलाकर मार डाला . वो उसे एक साल से स्टॉक, यानी, उसका पीछा कर रहा था, परेशान कर रहा था..जैसे की कई सुर्खियां बताती हैं, ऐसे कई मामलों का अंत बहुत दुखद होता है. ये पुरुष प्रधान समाज में, मेल प्रिविलेज का एक बदसूरत उदाहरण है.
ऐसे पुरुष मानते हैं कि इस तरह महिला को स्टॉक करना, लगातार परेशान करना, उन पर हमला करना, एसिड फेंकना , उनका प्रिविलेज, उनका हक है. यहां तक जान से मारने को भी अपना अधिकार समझते हैं. हाल ही में जारी किए गए NCRB के डेटा पर नजर डालिए - 2021 में महिलाओं के खिलाफ 32% अपराध, यानी 1 लाख से अधिक केस, ‘पति की क्रूरता’ यानी डोमेस्टिक वाइलेंस से संबंधित थे. ये मेल प्रिविलेज का एक और उदाहरण है.
फिर, इस हाल के स्क्रीनशॉट पर भी एक नजर डालिए - एक कस्टमर हैदराबाद में एक फूड डिलीवरी सर्विस को बता रहा है कि उसे मुस्लिम डिलीवरी पर्सन नहीं चाहिए! या ये देखिए- बीजेपी के गोधरा विधायक ने बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने वालों की रिहाई को सही ठहराया क्योंकि वे 'संस्कारी ब्राह्मण’ थे. और ये भी देखिए - कट्टरपंथी हिंदुत्व साधू के एक ग्रुप का कथित 'हिंदू राष्ट्र’ संविधान - जिसमें मेन पॉइंट ये था कि 'मुसलमानों और ईसाइयों के लिए मतदान का अधिकार नहीं’ होगा. मेरे लिए.. ये सभी मेजोरिटी प्रिविलेज, यानी 'बहुसंख्यक विशेष अधिकार के दुखद, ज्वलंत उदाहरण हैं. अधिकांश हिंदू ऐसा नहीं मानते, लेकिन इन मुट्ठीभर लोगों के लिए.. इनका हिंदू होने का प्रिविलेज यही है कि वो मुसलमानों को 2nd क्लास सिटीजन की तरह ट्रीट करें.
लेकिन.. जब हम भारत में प्रिविलेज के बारे में बात करते हैं ... तो उसका सबसे पुराना, सबसे गलत इस्तेमाल .. कास्ट या जाती का प्रिविलेज है. नए NCRB डेटा से पता चलता है कि यूपी, राजस्थान, एमपी, बिहार - Scheduled Castes के खिलाफ अपराधों के लिए Top 4 राज्य हैं. 2021 में ऐसे लगभग 35,000 मामले दर्ज किए गए. UP #1 पर है, जहां Scheduled Castes के खिलाफ 36 अपराध हुए हैं... हर दिन!
हाल ही में हुए कुछ घटनाओं को देखिए - UP के वाराणसी में एक 14 वर्षीय दलित लड़के को ऊंची जाति के लोगों ने आम और चावल चोरी करने के लिए पीट-पीट कर मार डाला. राजस्थान के जालोर में.. एक 9 वर्षीय दलित लड़के को उसके ही शिक्षक ने एक मटके से पानी पीने के कारण इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई. MP के खंडवा जिले में, एक 15 साल की दलित लड़की को इसलिए पीटा गया क्योंकि वो एक मंदिर के सामने से निकल रही थी. ऐसे और हजारों उदाहरण हैं. गाली-गलौज, मारपीट, यौन उत्पीड़न, बलात्कार, हत्या, ये सब किया जा चुका है, बिना किसी पछतावे के. क्योंकि जातिवाद आज भी हमारे समाज में जड़ें जमा कर बैठा है.
निश्चितरूप से , इस प्रिविलेज के दुरूपयोग को खत्म करने का समय आ चुका है. लेकिन इसकी पहल कौन करेगा? क्या भारत के नेता ऐसा करेंगे ? ये जो इंडिया है ना... यहां, हमारे नेता खुद, प्रिविलेज, यानी विशेषाधिकार के सबसे बड़े लाभार्थी हैं. चाहे वो वंशवादी पार्टी के नेता हों, या ऐसी पार्टी जहां एक ही नेता वर्षों तक बिना चुनौती के राज करता हैं. ऐसी हालात में... क्या ये P शब्द .. Pri-vi-lege.. हमारे देश की डिक्शनरी से हट सकता है? शायद नहीं.
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