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बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने शुक्रवार, 14 अक्टूबर को दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा को माओवादियों के साथ कथित संबंधों के आरोप से जुड़े मामले में निर्दोष (Ex DU Prof Saibaba acquitted) करार देते हुए बरी कर दिया और उन्हें तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया. 90 फीसदी शारीरिक दिव्यांगता के कारण व्हीलचेयर पर निर्भर प्रोफेसर साईंबाबा वर्तमान में नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं.
जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की डिवीजन बेंच ने प्रोफेसर साईंबाबा द्वारा दायर अपील को मंजूरी दी. साईंबाबा ने अपने अपील में निचली अदालत के 2017 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें माओवादियों के संबंध के आरोप में UAPA के तहत दोषी ठहराया गया था और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी.
बेंच ने आज कानूनी कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन करने के महत्व पर जोर दिया, और फैसला सुनाया कि UAPA के तहत कार्रवाई के लिए जरूरी मंजूरी का अभाव था और ऐसे में निचली अदालत के सामने कार्रवाई "अमान्य" थी.
मालूम हो कि 33 साल के पांडु नरोटे की स्वाइन फ्लू के संक्रमण के बाद 25 अगस्त 2022 को नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई थी. साईंबाबा की पत्नी वसंथ कुमारी ने आरोप लगाया था कि पांडु नरोटे के वकील ने बार-बार अनुरोध किया कि उन्हें ICU वार्ड में ट्रांसफर कर दिया जाए, लेकिन याचिका अनसुनी कर दी गयी.
अब साईंबाबा की रिहाई के आदेश के बाद उनकी पत्नी ने कहा है कि उन्हें विश्वास था कि साईंबाबा को बरी कर दिया जाएगा. न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि ''मुझे यकीन था कि मिस्टर साईंबाबा रिहा होंगे. हम न्यायपालिका और हमारा समर्थन करने वालों के शुक्रगुजार हैं''
साईबाबा के वकील आकाश सोरदे ने रिपोर्टरों से बात करते हुए हाई कोर्ट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताया है. उन्होंने कहा कि "साईंबाबा के साथ आज हाई कोर्ट ने पांडु नरोटे को भी बरी किया है लेकिन हमें दुःख है कि अब पांडु नरोटे दुनिया में नहीं रहे."
प्रोफेसर साईंबाबा और अन्य आरोपियों को मार्च 2017 में नक्सली गतिविधियों में कथित रूप से शामिल होने का दोषी ठहराया गया था. साईंबाबा सहित पांच दोषियों को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी जबकि छठे आरोपी- विजय तिर्की को कठोर कारावास की सजा दी गयी, क्योंकि निचली अदालत का कहना था कि यह उसका पहला अपराध था.
निचली अदालत के जज ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि "अभियोजन पक्ष (प्रोसेक्यूशन) ने यह साबित किया है कि सभी छह आरोपी प्रतिबंधित संगठनों CPI (माओवादी) और रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (RDF) से जुड़े हैं, जो एक माओवादी फ्रंट है."
साईबाबा के परिवार ने उनके स्वास्थ्य की स्थिति का हवाला देते हुए कई बार जमानत की मांग की थी. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मेडिकल ग्राउंड पर रिहा किया था.
हालांकि, उन्हें जल्द ही वापस जेल भेज दिया गया. इस दौरान उन्होंने अपनी मां से मिलने के लिए जमानत की मांग की थी लेकिन उसे इनकार कर दिया गया और चार दिन बाद मां का निधन हो गया. 2021 में वो कोविड -19 पॉजिटिव भी हुए.
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