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पंजाब कैबिनेट ने पंचायत चुनावों और शहरी निकाय चुनावों में महिलाओं का आरक्षण 33 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी करने का फैसला किया है.
बिहार देश का पहला ऐसा राज्य था जिसने पंचायत चुनावों में 50 फीसदी आरक्षण महिलाओं के लिए किया था इसके बाद दूसरे राज्यों ने भी सीख ली. 2006 में बिहार के इस फैसले के बाद उस साल 55 फीसदी महिलाएं ग्राम प्रधान चुन कर आईं थी.
स्थानीय चुनावों में मजबूत हिस्सेदारी से महिलाएं सशक्त हो रही हैं. बिहार इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 (NFHS-4) के आंकड़े के मुताबिक, बिहार में 75 फीसदी महिलाएं घरेलू फैसले लेने में हिस्सेदारी निभाती हैं, वहीं दिल्ली में ये आंकड़ा एक फीसदी कम यानी 74 फीसदी ही है.
शादी की उम्र में सुधार महिला सशक्तिकरण और साक्षरता का बड़ा पैमाना है. बिहार में एक दशक पहले यानी 2005-06 के मुकाबले 2015-16 में 18 साल से कम उम्र में महिलाओं की शादी के मामलों में 21 फीसदी की कमी आई है. ये वही अवधि है जिसमें महिलाओं को पंचायत चुनावों में 50 फीसदी का आरक्षण मिल चुका था.
इस दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में भी काफी सुधार हुआ है, राजस्थान के बाद बिहार में सबसे ज्यादा सुधार हुआ है. बिहार में घरेलू हिंसा के मामलों में साल 2005-06 के मुकाबले साल 2015-16 में 16 फीसदी की कमी आई है.
अब महिला ग्राम प्रधान आगे आकर पंचायतों का नेतृत्व कर रही हैं उनके हाथ में सत्ता आने के बाद लड़कियां ज्यादा संख्या में स्कूल जाने लगी है. फैमिली प्लानिंग और बच्चों के वैक्सीनेशन जैसी जरूरी चीजों पर भी महिलाएं अब ज्यादा ध्यान देने लगी हैं.
ऐसे में पंजाब सरकार के इस फैसले की सराहनी होनी चाहिए. इस फैसले से पंजाब में महिलाओं की हालात में तेज गति से सुधार होने की संभावना बढ़ जाएगी.
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