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सुमेद सैनी: पंजाब के ‘सुपरकॉप’ पूर्व DGP के भगोड़ा बनने की कहानी

जहां शीर्ष पुलिस अधिकारियों को कोई छू नहीं सकता था, उस पंजाब में सैनी की ये दशा हैरान करती है

आदित्य मेनन
भारत
Updated:
(फोटो: Quint)  
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(फोटो: Quint)  

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25 साल पूर्व अपने अपहरण से पहले आखिरी स्पीच में पंजाब के मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खलरा ने कहा था कि “अंधकार को चुनौती देने के लिये सिर्फ एक चिराग ही काफी होता है.”

6 सितंबर, 1995 को पुलिस द्वारा अपहरण किये जाने के पूर्व खलरा ने पंजाब में हजारों अवैध हत्याओं का खुलासा किया था. अपहरण के बाद खलरा को फिर कभी नहीं देखा गया.

खलरा के ऊपर दिए गए शब्द अब पंजाब में गैर न्यायिक हत्याओं और गायब किए गए लोगों को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ लोग दोहरा सकते हैं. खलरा के अपहरण के ठीक 25 साल बाद पूर्व डीजीपी सुमेद सैनी जो पंजाब में सुपर कॉप और अजेय थे, आज कानून से भाग रहे हैं.

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सुमेद सैनी की अग्रिम जमानत की याचिका को 8 सिंतबर को खारिज कर दिया है.  

मंगलवार 8 सितंबर को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 29 वर्ष पुरानी हत्या और अपहरण के मामले में सैनी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया जिससे अब उनकी गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया है. सैनी के फरार होने के साथ-साथ एक्टिविस्टों ने उनके नाम और फोटो के साथ वांटेड के पोस्टर लगाए हैं.

ऐसा राज्य जहां शीर्ष पुलिस अधिकारियों ने कोई छू नहीं सकता था, वहीं सैनी की यह दशा सबको चकित करती है.

2012 में सबसे कम उम्र में पंजाब के पुलिस महानिदेशक बनने के आठ साल बाद वांटेड पोस्टर में सैनी का नाम होना पूर्व डीजीपी के लिये किसी नाटकीय घटनाक्रम से कम नहीं हैं.

सुमेद सैनी कौन हैं और आखिर कैसे कानून ने उन्हें पकड़ा?

केपीएस गिल की आंखों का तारा बनने से लेकर बादल के चहेते बनने तक सफर...

  • सुमेद सैनी 1982 बैच के पंजाब कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. खालिस्तान उग्रवाद के दौरान आतंकवाद विरोधी अभियानों में सक्रियता से शामिल होने के कारण सैनी पूर्व डीजीपी केपीएस गिल की आंखों का तारा बन गये थे.
  • उन्होंने बटाला, फिरोजपुर, लुधियाना, भटिंडा, रोपर और चंडीगढ़ में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के तौर पर कार्य किया.
  • वर्ष 2002 में सैनी आईजी (इंटेलीजेंस) बने, 2007 में विजिलेंस ब्यूरो के प्रमुख और 2012 में अंतत: डीजीपी बने.
  • उन्हें शिरोमणी अकाली दल-भाजपा गठबंधन का करीबी माना जाता है, जिसके कारण उन्हें कई महत्वपूर्ण नियुक्तियां मिलीं. उदाहरण के लिये वह 2012 में पंजाब के सबसे कम उम्र के डीजीपी बने, मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और डिप्टी सीएम सुखबीर बादल के समर्थन के कारण चार वरिष्ठ अधिकारियों को सुपर सीड कर उन्हें डीजीपी बनाया गया.

सैनी ने बादल के समर्थन के कारण अपने चहेतों को फोर्स के अंदर बढ़ावा दिया और जिन्होंने बात नहीं मानी उन्हें दरकिनार कर अपनी शक्ति का विस्तार किया.

पत्रकारों के प्रति भी उनकी यही रवैया था. सैनी की पसंद एक दम स्पष्ट थीं जो बदले में उनके लिये महिमामंडित करने वाली ऐसी स्टोरी लिखते थे जिससे उनकी छवि “डर्टी हैरी” या “खलिस्तान पर सख्त” जैसी बन सके.

हालांकि सैनी के कद बढ़ने के साथ-साथ उन पर अत्याचार और अक्षमता के आरोप भी लगते रहे. उदाहरण के लिये 1992 में सैनी ने एक सेवारत सैन्य अधिकारी लेफ्टीनेंट कर्नल रवि वत्स पर हमला किया और बिना किसी कारण के उन्हें हिरासत में रखा. सैनी ने इस दौरान इस घटना को कवर कर रहे एक पत्रकार को डराने की भी कोशिश की थी.

पंजाब में कमजोर पुलिस प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने वाले एक NGO इंसाफ का आरोप है कि सैनी की कमान वाले क्षेत्रों में जबरन गायब होने और हत्या के मामले हैं.

एनजीओ के अध्ययन में बताया आरोप लगाया गया है कि इन मामलों मे से 24 केस में सैनी व्यक्तिगत तौर पर शामिल रहे हैं.

ऐसा ही एक मामला दिसंबर 1991 में बलवंत सिंह मुल्तानी का है.

वह मामला जिसकी कीमत सैनी चुका रहे हैं...

बलवंत मुल्तानी का अपहरण

  • 1991 की बात है जब सैनी चंडीगढ़ के SSP थे. उस वर्ष अगस्त में सैनी को घर जाते समय एक कार ब्लास्ट हमले का सामना करना पड़ा था. इस हमले में सैनी के ड्राइवर और एक ASI समेत तीन लोगों की मौत हुई, वहीं सैनी घायल हुये.
  • पंजाब पुलिस ने हमले के बाद जिन लोगों पर हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया था उनमें से एक बलवंत मुल्तानी भी थे जो IAS अफसर दर्शन सिंह मुल्तानी के बेटे और चंडीगढ़ सरकार के जूनियर इंजीनियर थे.
  • दिसंबर 1991 में किसी दिन पुलिस ने बलवंत को हिरासत में ले लिया था. बाद में पुलिस ने अदालत में यह प्रस्तुत किया कि बलवंत को 13 दिसंबर को गिरफ्तार किया गया था और 18 दिसंबर को गुरदासपुर के कादियान पुलिस स्टेशन ले जाया गया था.
  • पुलिस का दावा है कि 19 दिसंबर को बलवंत हिरासत से भाग गया और उसके बाद से उसे कभी देखा नहीं गया. बाद में उसे अपराधी घोषित कर दिया गया. इसी महीने के अंत में बलवंत के पिता ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की और कहा कि उन्हें उनके बेटे से मिलवाया जाए, लेकिन इस याचिका को खारिज कर दिया गया.

केस दोबारा खोला गया

  • 2007 में विस्फोट के तीन अन्य आरोपियों को बरी किये जाने के बाद राज्य सरकार ने अपील दायर की, उच्च न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया और बलवंत सहित घोषित अपराधियों की स्थिति पर CBI की मदद मांगी.
  • इसी दौरान सिंह मुल्तानी ने एक और हलफनामा दायर कर कोर्ट में दावा किया कि उनका बेटा 1991 में ही एक एनकाउंटर में मारा गया था. उन्होंने इस बात की गवाही देने वालों के बारे में भी दावा किया.
  • हाईकोर्ट ने तब CBI से पूछा कि क्या बलवंत और अन्य दो आरोपी नवनीत और मंजीत मुठभेड़ में मारे गये थे?
  • एक अन्य सह-आरोपी गुरशरण कौर ने बलवंत के लापता होने के लिये सैनी को दोषी को ठहराते हुए बयान दिया और पुलिस स्टेशन में बलवंत को घायल अवस्था में देखने का दावा भी किया.
  • कारवां की एक रिपोर्ट ने गुरशरण के हवाले से दावा किया कि सैनी ने उसके पति को धमकाया और उससे कहा कि “मैंने उसके (बलवंत) पिता और चाचा के IAS अधिकारी होने बावजूद भी उसे मार डाला। क्या आप भी मरना चाहते हैं?”
  • सीबीआई जांच में यह भी कहा गया कि उसे प्रताड़ित किया गया था और पुलिस की बलवंत को भगोड़ा कहे जाने की बात पर भी संदेह जताया गया.
शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी ने सुमेद सैनी का बचाव करते हुये कहा कि उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अग्रणी भूमिका निभाई है और वे एक डिकोरेटेड अफसर हैं.
  • 2 जुलाई 2008 को CBI ने सैनी के खिलाफ FIR दर्ज की थी, लेकिन शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी की सरकार की अपील के कारण इसे रद्द कर दिया गया. अपील में कहा गया कि सैनी एक प्रतिष्ठित अफसर है और आंतकवाद के खिलाफ उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई है.
  • हालांकि कोर्ट ने नई FIR दर्ज करने की अनुमति दे दी और बलवंत के भाई पलविंदर सिंह मुल्तानी ने सैनी और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई.
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पुलिसवाले जिन्होंने सैनी के खिलाफ गोपनीय बातें उजागर कीं...

  • इस मामले में एक अन्य महत्वपूर्ण मोड़ 2015 में आया जब विशेष पुलिस अधिकारी गुरमीत सिंह “पिंकी” ने आउटलुक को एक साक्षात्कार दिया जिसमें उन्होंने कई गैर न्यायिक हत्याओं और जबरन गायब करवाने के मामलों सैनी का हाथ होना बताया. पिंकी ने दावा किया कि मुल्तानी को पुलिस हिरासत में प्रताड़ित किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई.
  • उसी साल मई में सैनी और अन्य छह पुलिस वालों पर मोहाली पुलिस ने अपहरण के मामले में केस दर्ज किया था, लेकिन इस मामले में सभी सबूत और दस्तावेज गायब हो गये, जिसके बाद इस पर एसआईटी SIT का गठन किया गया.
  • इस साल अगस्त में दो सह आरोपियों पूर्व इंस्पेक्टर जगीर सिंह और एएसआई कुलदीप सिंह ने मुल्तानी मामले में सैनी के खिलाफ गवाही दी और उन्होंने यह दावा किया कि वे प्रताड़ना के गवाह थे. इससे एसआईटी को सैनी के खिलाफ हत्या के आरोपों को जोड़ने का मौका मिला.

राजनीतिक और न्यायिक व्यवस्था से सैनी की तनातनी

जिस राज्य में पुलिस के संबंध अकसर अपराधियों से जोड़े जाते रहे हैं, वहां सैनी जैसे टॉप कॉप का पतन एक अनोखा मामला दिखता है. यह आंशिक रूप से राजनीतिक प्रतिष्ठान, न्यायपालिका एवं पुलिस के भीतर अपने प्रतिद्वंद्वियों से बैर लेने के कारण हुआ.

कैप्टन अमरिंदर से तनातनी

  • चाहे जो भी सत्ता में हो पंजाब पुलिस के प्रभुत्व को राजनीतिक धुरंधरों द्वारा चुनौती दी जाती रही है. 1980 और 1990 की शुरुआती दौर में कांग्रेस शासन के दौरान गैर न्यायिक हत्याओं और जबरन गायब होने वाले मामलों के आरोपी अधिकारियों का वर्चस्व 1997 में SAD-BJP के सत्ता संभालने के बाद भी चलता रहा.
  • सैनी का मामला भी इसी तरह का था, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह के पहले कार्यकाल (2002-07) के अंत में कांग्रेस नेता के साथ उनका समीकरण गड़बड़ा गया. वह 2007 से 2012 के बीच अकालियों के करीबी बने और सतर्कता ब्यूरो में उनके कार्यकाल ने कांग्रेस के साथ उनके समीकरण को और अधिक नुकसान पहुंचाया, विशेषकर राज्य लोक सेवा आयोग में कथित अनियमितताओं की उनकी जांच ने.

खलनायक बनने की दास्तां

  • सैनी का पतन 2015 में बरगारी में हुए पवित्र मामलों के साथ शुरू हुआ. जब पुलिस ने बिहबल कलां मे इस बलिदान का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग की, पुलिस फायरिंग में दो प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद सिखों का गुस्सा भड़क उठा और सैनी को इस घटना के बाद खलनायक के तौर देखा जाने लगा.
  • घोर आलोचनाओं के कारण बादल को सैनी के स्थान पर सुरेश अरोड़ा को लाने के लिये मजबूर होना पड़ा. 2017 में SAD-BJP की सत्ता चले जाने और भारी बहुमत से कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री बनने के बाद सैनी के लिए हालात और खराब हो गये.
  • कैप्टन ने रिटायर्टड जज रंजीत सिंह के नेतृत्व में जांच के लिये एक जांच आयोग का गठन किया, आयोग ने सुमेद सैनी को 2018 में पेश की गई रिपोर्ट में कार्रवाई के लिये जिम्मेदार पाया.

सैनी की सतर्कता रिपोर्ट को न्यायपालिका ने बताया ‘संदिग्ध’

सैनी के मामले को और नुकसान पहुंचने का प्रमुख कारण न्यायपालिका के साथ उनकी खींचतान रही, विशेषकर जब वे सतर्कता ब्यूरो के प्रमुख रहे.

2009 में हिंदुस्तान टाइम्स में एक खबर प्रकाशित हुई जिसका आधार विजिलेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में होने वाली गड़बड़ी का उल्लेख था. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह दो व्यक्तियों की टेप की गई फोन बातचीत पर आधारित है जिसमें वे न्यायिक नियुक्तियों को ठीक करने की बात कर रहे हैं.

अदालत ने भी सतर्कता रिपोर्ट के साथ-साथ प्रकाशित खबर पर भी कड़ा रुख अपनाया. पूर्व सीजेआई CJI जस्टिस टीएस ठाकुर जो उस दौरान पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय में थे, उन्होंने सतर्कता रिपोर्ट को संदिग्ध बताया और कहा कि जुटाई गई जानकारी कानूनी के अनुसार नहीं थी. इस बात ने सैनी को सीधे कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया.

पूर्व सीजेआई टीएस ठाकुर ने सैनी की सतर्कता रिपोर्ट को खारिज कर दिया और इस ओर इशारा किया कि यह रिपोर्ट संदेहास्पद तरीके से जुटाया गया है.

विनोद कुमार केस- एक जज जिसे धमकी दी गई

  • एक अन्य मामला जिसमें पूर्व हाईकोर्ट जज वीके झांजी ने आरोप लगाते हुये कहा कि एक मामले की सुनवाई के दौरान उन्हें धमकी भरा फोन आया जिसमें सैनी का नाम था. इस कारण भी सैनी न्यायपालिका के निशाने पर थे. अनाम कॉलर ने कथित रुप से झांजी से कहा कि उसे उठाकर भट्‌ठी में फेंक देगा.
  • मामला ऑटोमोबाइल व्यवसायी विनोद कुमार उनके बहनोई अशोक कुमार और ड्राइवर मुख्तियार सिंह के कथित अपहरण के बारे में था. सैनी को इस मामले में एक आरोपी के तौर पर नामित किया गया था और उन पर आरोप था कि अपने ही रिश्तेदारों के साथ कुछ व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता के कारण वे इस परिवार को परेशान करना चाहते थे, जो कुमार के बिजनेस पार्टनर थे.
  • यह मामला आज भी चल रहा है। विनोद कुमार की मां अमर कौर ने वर्ष 2017 में 102 साल की उम्र में अपनी मृत्यु हो जाने तक लगातार 23 वर्षों तक यह कानूनी लड़ाई जारी रखी थी.
  • विनोद द्वारा दायर किये गए हलफनामे और आवेदन में लगाए गए आरोप इतने गंभीर थे कि कोर्ट को लगा कि सुमेद सैनी और उनके अधिकारियों को आदेश के प्रति कोई गंभीरता नहीं है. 22 दिसंबर 1995 को जस्टिस वीके झांजी ने कहा, “कोर्ट को ऐसा लगा कि सुमेद सिंह सैनी, एसएसपी लुधियाना और उनके नीचे काम करने वाले अधिकारियों के लिये कोर्ट के आदेश का कोई महत्व नहीं था.”

अब आगे क्या?

अब अदालत ने सैनी को अग्रिम जमानत देने से इंकार करते हुए कहा कि आगे सैनी को अपील करने के लिये सुप्रीम कोर्ट जाना होगा. एसआईटी पहले चंडीगढ़ और होशियारपुर में सैनी को पकड़ने के लिये झापेमारी कर रही है. अगर सुप्रीम कोर्ट में सैनी की अपील खारिज हो जाती है तो उनके पास बलवंत मुल्तानी केस में आत्मसमर्पण करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचेगा.

एक बार गिरफ्तार होने के बाद यह भी संभावना है कि सैनी को बेहबाल कलां फायरिंग मामले में और अधिक सख्ती का सामना करना पड़ेगा.

इस मामले में बादल को भी राजनीतिक तौर नुकसान पहुंचाने की क्षमता है क्योंकि आरोप यह है कि न केवल सैनी बल्कि सुखबीर बादल भी फायरिंग के लिए जिम्मेदार थे. क्योंकि दोनों इस संकट के दौरान निकट संपर्क में थे.

सैनी के मामले का महत्व राजनीति से परे है. सैनी हत्या और अपहरण के लिए गिरफ्तार होने वाले पहले शीर्ष पुलिस अधिकारी होंगे. यह उन लोगों के लिये एक बड़ी जीत है जो फर्जी मुठभेड़ों में मारे या लापता किए गए लोगों को न्याय दिलाने के लिए लड़ रहे हैं.

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Published: 13 Sep 2020,07:59 PM IST

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