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14 अक्टूबर को पंजाब सरकार ने पंजाब विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र “केंद्र सरकार के खतरनाक किसान विरोधी कानून का मुकाबला करने के लिए एक विधेयक लाने को लेकर ” 19 अक्टूबर को बुलाने का फैसला किया.
पंजाब में तीनों कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है जिसे हाल ही में संसद ने पारित (जिसे राष्ट्रपति ने 24 सितंबर को अपनी मंजूरी दी है) किया है. मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने पहले ही कहा था कि उनकी सरकार नए कानूनों, जिसे उन्होंने संघीय ढांचे के खिलाफ करार दिया था, के खिलाफ कानूनी और विधायी सहित हर संभव लड़ाई लड़ेगी.
कानूनी रास्ता सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 131 के तहत इन कानूनों को चुनौती देने का हो सकता है जो सुप्रीम कोर्ट को केंद्र-राज्य के विवाद में फैसला देने का अधिकार देता है. यहां इस बात पर बहस होने की संभावना है कि क्या केंद्र सरकार के पास संवैधानिक योजना के तहत इन कानूनों को लाने का अधिकार था, या ये ऐसा विषय है जिसपर राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है.
विधायी रास्ता वो है जिस पर 19 अक्टूबर को विधानसभा के नए सत्र के दौरान चर्चा होगी. सरकार के पास क्या-क्या विकल्प हैं और ऐसी कोशिश से क्या हो सकता है, हमें देखना होगा.
पंजाब सरकार सीधे-सीधे केंद्र सरकार से पारित कानून को निरस्त नहीं कर सकती और न ही इसकी अनदेखी कर सकती है. संसद से पारित और राष्ट्रपति की मंजूरी से बना कानून पूरे देश में लागू होता है और राज्य सरकारें इसको खत्म नहीं सकती-केवल संसद के पास ही ऐसा करने के अधिकार होते हैं.
अगर केंद्र को राज्य सूची में शामिल किसी विषय पर कानून बनाना था तो राज्य ये तर्क दे सकते हैं कि कानून मान्य नहीं है. हालांकि सूचियों में कुछ विषय ऐसे भी हैं जिनको लेकर काफी कुछ स्पष्ट नहीं है, उनको लेकर ये तर्क दिया जा सकता है कि वे समवर्ती सूची का हिस्सा हो सकते हैं.
कृषि कानूनों के मामले में आलोचकों का दावा है कि ये खेती का मामला है जो राज्य सूची (आइटम 14) का हिस्सा है जबकि केंद्र सरकार का तर्क है कि ये किसानों के उत्पाद के व्यापार से जुड़ा है जो समवर्ती सूची (आइटम 33) के तहत आता है.
ऐसे मामलों में (या फिर किसी भी स्थिति में) एक राज्य के लिए प्रभावी तौर पर ये मानना कि केंद्र सरकार का कानून मान्य नहीं है, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जरूरत होगी. ऐसा करने से पहले अगर राज्य कानून को लागू करने से इनकार कर दे तो केंद्र सरकार उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है या राज्य के लोगों की ओर उसे हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं का सामना करना पड़ सकता है.
पंजाब सरकार कृषि कानूनों को अपने उद्देश्यों के हिसाब से बदल भी नहीं सकती। अगर कोई कानून संघ सूची के विषय का है तो राज्य स्तर पर इसमें कोई संशोधन नहीं किया जा सकता. अगर ये समवर्ती सूची का विषय है तो राज्य सरकार कानून में संशोधन का प्रस्ताव पास कर सकते हैं लेकिन ये कानून को कमजोर नहीं कर सकते, सिर्फ मजबूत कर सकते हैं.
उदाहरण के तौर पर आपराधिक कानून और आपराधिक प्रक्रिया समवर्ती सूची का हिस्सा हैं. भारतीय दंड संहिता (IPC) और दंड प्रक्रिया संहित (CrCP) केंद्र सरकार के कानून हैं, लेकिन राज्य IPC के तहत सजा बढ़ाने के लिए संशोधन कर सकते हैं या किसी खास अपराध को गैर जमानती और संज्ञेय बना सकते हैं. उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश में नाबालिग से बलात्कार पर मौत की सजा देने का कानून बना जो कि IPC के तहत रेप के अन्य मामलों में संभव नहीं है.
अगर, सरकार के अपने तर्क के मुताबिक, विषय समवर्ती सूची के तहत आता है तो क्या पंजाब सरकार हर प्रमुख मुद्दे, यानी APMC के बाहर बिना प्रतिबंध के व्यापार, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और आवश्यक वस्तु दर्जा को हटाने पर अपने कानून नहीं बना सकती.
इस प्रतिकूलता के सिद्धांत में एक अपवाद भी है, हालांकि इसे आर्टिकल 254(2) में दिया गया है. इसमें कहा गया है कि अगर राज्य विधानसभा की ओर से समवर्ती सूची के किसी विषय के संबंध में बनाए गए कानून में कोई ऐसा प्रावधान है जो संसद की ओर से पहले बनाए गए कानून या उस विषय के संबंध में किसी मौजूदा कानून के प्रावधानों के खिलाफ है तो ऐसी स्थिति में राज्य का बनाया गया कानून राष्ट्रपति की अनुमति के साथ उस राज्य में लागू किया जा सकेगा.'
हालांकि पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पहले इसकी संभावना से इनकार कर दिया था, हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें नहीं लगता राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस तरीके से पारित किसी कानून को मंजूरी देंगे. वास्तव में उन्हें इस बात पर भी संदेह है कि पंजाब के राज्यपाल (याद रखें, केंद्र की ओर से नियुक्त) इस उद्देश्य के लिए विधानसभा से पारित किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करेंगे जिसके बिना राष्ट्रपति की मंजूरी का सवाल ही नहीं उठता.
यही कारण है कि उन्होंने विधायी विकल्प के बदले पहले कानूनी विकल्प पर ज्यादा जोर दिया और संविधान के संघीय ढांचे के उल्लंघन को आधार बनाकर कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
चूंकि पंजाब सरकार खुद कृषि कानूनों को न तो निरस्त कर सकती है और न ही बदल सकती है या इसके विरोधाभासी अपना कोई कानून बना सकती है तो ऐसे में पंजाब सरकार को थोड़ा और रचनात्मक होना होगा और कृषि कानूनों के असर को कम करने के लिए उसके प्रावधानों के इस्तेमाल का तरीका खोजना होगा.
कृषि कानून के तहत जो बदलाव किए गए हैं उनमें पंजाब के किसानों को जो सबसे ज्यादा परेशान कर रहा है वो ये है कि ये एक राज्य की कृषि उपज विपणन समिति की मंडियों के बाहर बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है. इन मंडियों या मार्केट यार्ड में बिक्री को नियंत्रित किया जाता है चाहे न्यूनतम मूल्य या लाइसेंस सिस्टम हो और रखरखाव के लिए खरीदने वालों से टैक्स का सिस्टम होता है.
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में ये सिस्टम किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुआ है जहां वो बड़ी मात्रा में गेहूं और चावल उगाते हैं-हालांकि मांग की तुलना में आपूर्ति ज्यादा है फिर भी एपीएमसी के नियमों के कारण किसानों को अच्छी कीमत मिल जाती है (जो बदले में एमएसपी सिस्टम से बंधे रहते हैं).
अगर एक एपीएमसी के बाहर किसानों की उपज के व्यापार पर कोई प्रतिबंध नहीं है तो खरीदारों को एपीएमसी टैक्स देने की जरूरत नहीं होगी और किसान को बाजार की ताकतों के कारण अपनी उपज कम कीमत पर बेचनी पड़ सकती है.
बादल का सुझाव इस विषय से जुड़े केंद्र के कृषि कानून: किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) एक्ट 2020 की एक खामी का फायदा उठाना है. इस ऐक्ट के तहत किसान, व्यापारी और इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग/ट्रांजैक्शन प्लेटफॉर्म्स को बिना किसी “ट्रेड एरिया” के व्यापार की छूट दी गई है.
इसलिए बादल ने सुझाव दिया है कि सरकार पूरे राज्य को प्रिंसिपल मार्केट यार्ड के तौर पर नामित कर सकती है. इसका मतलब ये होगा कि एपीएमसी की मंडियों में जो नियम होते हैं वो पूरे पंजाब में लागू होंगे, यहां तक कि व्यापार की निजी जगह जैसे किसान का घर या खरीदार का गोदाम भी इसमें जा जाएंगे. ऐसा करने के लिए एपीएमसी एक्ट में संशोधन की भी जरूरत नहीं है, सिर्फ एक नोटिफिकेशन जारी कर भी ऐसा किया जा सकता है हालांकि ऐक्ट में संशोधन कर विशेष रूप से अनुमति देना सुरक्षित तरीका होगा.
चूंकि ऐसा कदम तकनीकी रूप से केंद्र के कानूनों के तहत काम करेगा, जो ये मानते हैं कि वे एपीएमसी मंडियों के अंदर लागू होते हैं, इसलिए केंद्र के लिए ये तर्क देना मुश्किल होगा कि इस तरह के कदम को प्रतिकूलता के सिद्धांत से खत्म किया गया.
ये इकलौता ऐसा कानून नहीं है जो बनाया जा सकता है, दूसरे कृषि कानून में विशेष विषयों से निपटने के लिए भी मौजूदा कानूनों में संशोधन लाया जा सकता है. ये तरीका- यानी प्रभावी रूप से उन्हें नकारने के लिए कृषि कानूनों के अंदर एक परिभाषा या अवधारणा का इस्तेमाल करना- पंजाब सरकार के लिए अपने उद्देश्यों को पूरा करने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है.
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