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मौर्यों से पहले कौन आया था? पुराने किले में खुदाई से मिल सकते हैं सुराग | Photos

शेर शाह सूरी और हुमायूं द्वारा निर्मित पुराना किला दिल्ली के इतिहास के एक टाइम कैप्सूल के रूप में कार्य करता है

ऋभु चटर्जी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>Purana Qila</p></div>
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Purana Qila

(फोटो: रिभू चटर्जी)

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दिल्ली में 16वीं शताब्दी का पुराना किला, खुदाई के तीसरे सेशन से गुजर रहा है. इसे इस साल जनवरी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा शुरू किया गया था. एएसआई के निदेशक डॉ वसंत स्वर्णकार ने एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि खुदाई के मौजूदा दौर में मौर्य काल के साथ-साथ पूर्व-मौर्य काल यानी 300 ईसा पूर्व से पहले की प्राचीन वस्तुओं, मिट्टी के बर्तनों और संरचनाओं का पता चला है.

(फोटो: एएसआई)

ASI के डॉ स्वर्णकर ने कहा कि विभिन्न युगों की ईंट की दीवारें - कुषाणों से लेकर राजपूतों तक या 400 सीई से 1200 सीई तक - एक दूसरे के ऊपर ढकी हुई थीं क्योंकि बसने वाले इस क्षेत्र में आबाद हो गए. इसके अलावा, शुंग-कुषाण काल से संबंधित मिट्टी-ईंटों के आवास सतह के 10-12 मीटर नीचे मिले हैं.

(फोटो: रिभू चटर्जी)

पुराना किला को शेर शाह सूरी और मुगल सम्राट हुमायूं ने बनाया था. यह दिल्ली की तारीख के टाइम कैप्सूल के तौर पर काम करता है. इसकी सतह के नीचे, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को पूर्व-मौर्य काल से लेकर ब्रिटिश काल तक के सांस्कृतिक भंडार मिले हैं.

(फोटो: रिभू चटर्जी)

यह पूछे जाने पर कि पुराना किला ऐतिहासिक साक्ष्यों के लिए एक खजाने के रूप में क्यों काम करता है, डॉ स्वर्णकर ने कहा कि इसका जवाब  किले की लोकेशन  में है. स्वर्णकार ने कहा, "किले के एक तरफ यमुना नदी बहती है, और दूसरी तरफ एक राजमार्ग है, जो प्राचीन काल में एक व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता था. यही वजह है कि कई निवासी इंद्रप्रस्थ में रहते थे, जैसा कि शहर को पहले कहा जाता था." 

(फोटो: विकिमीडिया कामन)

इसके अलावा, पेंटेड ग्रे वेयर (PGW) के अवशेष, जो पूर्व-मौर्य काल के हैं, भी खुदाई के मौजदा दौर में पता चले हैं. PGW ग्रे रंग का महीन टेराकोटा बर्तन है, जिसे अक्सर काले बिंदुओं और रेखाओं से चित्रित किया जाता है. एएसआई के अधिकारियों ने दावा किया कि "PGW की उपस्थिति महाभारत की अवधि का संकेत है." गौरतलब है कि महाभारत एक पौराणिक ग्रन्थ है.

(फोटो: रिभू चटर्जी)

यह पूछे जाने पर कि ASI कैसे मानता है कि महाभारत से जुड़े सबूत मिलना संभव है, ASI में सहायक पुरातत्वविद् डॉ. सतरूपा बाल ने द क्विंट को बताया. "इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के रूप में, हम साहित्यिक संसाधनों को पौराणिक कथाओं के रूप में नहीं मानते हैं. अगर वे मौजूद हैं, अगर यह लिखा गया था, तो हम मानते हैं कि ऐसा हुआ. और हम उस साहित्य के आधार पर साइट की खोज और खुदाई शुरू कर सकते हैं."

(फोटो: रिभू चटर्जी)

इसे आगे समझाने के लिए, सतरूपा बाल ने पूर्व एएसआई निदेशक और पद्म विभूषण ब्रज बस्सी लाल या बी बी लाल का हवाला दिया. लाल ने वर्ष 1954 और 1969-73 में पुराना किला के अंदर उत्खनन कार्य किया था. वे महाभारत और रामायण जैसे हिंदू ग्रंथ की पौराणिक कथाओं पर आधारित स्थलों पर उत्खनन के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने मौर्य-पूर्व PGW को "महाभारत काल" से जोड़ा था.

(फोटो: एएसआई)

"जब हम खुदाई शुरू करते हैं, तो सांस्कृतिक जखीरे परतों के रूप में दिखाई देते हैं. अब, मौर्य परत के नीचे, हमें गाद के जमाव के रूप में बाढ़ के प्रमाण मिले हैं. जमा गाद के नीचे, हमने PGW की खोज की.  जब प्रो बी बी लाल हस्तिनापुर (उत्तर प्रदेश) में खुदाई कर रहे थे, तो उन्होंने एक समान पैटर्न पाया था और साहित्यिक स्रोतों के आधार पर PGW को महाभारत काल से जोड़ा था," सतरूपा बाल ने कहा

(फोटो: रिभू चटर्जी)

यह पूछे जाने पर कि पुरातत्वविद् विभिन्न युगों का सीमांकन करने के लिए कितनी गहरी खुदाई कर सकते हैं, बाल ने समझाया, "एएसआई के निदेशक डॉ. वसंत स्वर्णकर उस परत की पहचान करने के लिए कई बाहरी एजेंसियों के साथ मिलकर इसकी निशानदेही कर रहे हैं. जहां हम सांस्कृतिक संयोजन ढूंढना बंद कर देते हैं उस परत को 'प्राकृतिक मिट्टी' या मिट्टी कहा जाता है. जिसके पास मानव गतिविधि का कोई सबूत नहीं है, और जल्द से जल्द बसने वालों ने वहां रहना शुरू कर दिया होगा."

(फोटो: रिभू चटर्जी)

खुदाई के दौरान मौर्य काल का एक रिंग वाला कुआं भी मिला था. इसमें टेराकोटा से बनी 18 रिंग हैं. कहा जाता है कि इन कुओं से लोगों को घरेलू उपयोग के लिए पानी मिलता था, जिससे लोगों के लिए नदी के किनारे बसना जरुरी नहीं रह गया था.

(फोटो: रिभू चटर्जी)

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एक प्राचीन वस्तु, जो वैकुंठ विष्णु को दर्शाती है, खुदाई में मिली है. इसमें विष्णु को तीन सिरों वाला दिखाया गया है - बाईं ओर एक बाघ और दाईं ओर एक वराह. हिंदू देवता को एक हाथ में शंख और दूसरे हाथ में कमल लिए देखा जा सकता है. "हालांकि, नीचे दाईं ओर गणेश की उपस्थिति बहुत ही असामान्य है," स्वर्णकर ने टिप्पणी की.

(फोटो: एएसआई)

"यह एक टेराकोटा पट्टिका है, जिसका व्यास लगभग चार सेमी है. इसके ऊपर गजलक्ष्मी को दिखाया गया है, जो केंद्र में बैठी हैं. उनके बगल में दो हाथी हैं, जो उनका 'जलाभिषेक' कर रहे हैं."

(फोटो: एएसआई)

यह नीले सोप स्टोन में उकेरी गई भगवान गणेश की मूर्ति है. यह मुगल काल का है और एक उंगली के आकार की है.

(फोटो: एएसआई)

यह अस्थि सुई मौर्य काल की है. यह नुकीली  होती है और किनारे पर खांचे होते हैं, जैसे कि वर्तमान में क्रोशिया करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सुइयां.

(फोटो: एएसआई)

ये कुछ अनुष्ठानिक वस्तुएं हैं, जिन पर शिलालेख हैं. ध्यान दें कि ऑब्जेक्ट सी में स्वास्तिक खुदा हुआ है. स्वर्णकार ने कहा, "स्वस्तिक इन शिलालेखों में सबसे आम प्रतीक है."

(फोटो: एएसआई)

यह गुप्त काल का एक पासा है. ध्यान दें कि वर्तमान समय के पासे के समान अंकों को बिंदुओं के माध्यम से कैसे दर्शाया गया है.

(फोटो: एएसआई)

खुदाई के वर्तमान दौर में कुषाण काल का एक तांबे का पहिया भी निकला है.

(फोटो: एएसआई)

यह पूछे जाने पर कि पुरातत्वविद् एक युग को दूसरे युग से कैसे अलग करते हैं, बाल ने कहा कि पुरावशेषों, मिट्टी के बर्तनों और संरचना इन तीन मापदंडों के आधार पर सापेक्ष डेटिंग का उपयोग करके किया जाता है. कुषाण काल गुप्त काल से भिन्न है, और मौर्य काल में, पत्थर की दीवारें भी मिल सकती हैं."

(फोटो: रिभू चटर्जी)

इसी तरह, मिट्टी के बर्तन भी उपयोग की जाने वाली मिट्टी के प्रकार भीएक युग की पहचान करने में मदद करते हैं.

(फोटो: रिभू चटर्जी)

केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि पुराना किला फिर से खोला जाएगा, और खुदाई के अवशेषों को संरक्षित किया जाएगा. उन्होंने कहा, "साइट को ओपन-एयर साइट संग्रहालय के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा, जिससे विजिटर्स दिल्ली की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत का अनुभव कर सकेंगे." इसके अलावा, पुराने किले में खुदाई के अवशेष G20 शिखर सम्मेलन के प्रतिनिधियों के लिए आकर्षण के बिंदु के रूप में काम करेंगे, जिसमें देशों के प्रमुख शामिल होंगे. यह सितंबर 2023 में दिल्ली में आयोजित होने वाले हैं.

(फोटो: रिभू चटर्जी)

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