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ग्लोबल मीडिया को भी लगने लगा है कि मोदी सरकार पर राफेल विमान सौदे के विवाद की आंच पड़ गई है और 4 साल में पहली बार विपक्ष ने उन्हें लिया है.
न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक कांग्रेस को भ्रष्टाचार और पसंदीदा कॉरपोरेट की मदद वालों की पार्टी के तौर पर घेरने वाली बीजेपी के साथ गेम पलट गया है. रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दे तलाश रही कांग्रेस को राफेल सौदे के तौर पर बहुत बड़ा मामला हाथ लग गया है. अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक 4 बड़े सवाल उठे हैं जिनका जवाब अभी तक नहीं मिला है.
अखबार के मुताबिक मोदी सरकार के खिलाफ पहली बार विपक्ष को इतना सॉलिड मुद्दा मिला है और वो अगले चुनाव तक पीएम मोदी और उनकी पार्टी पर दबाव बनाए रखेगा.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाषणों और सोशल मीडिया में इस मामले को गरमाए हुए हैं कि मोदी ने अपने दोस्त को फायदा पहुंचाने के लिए विमान की कीमत पुराने दाम से तीन गुना कर दी.
राफेल डील पर 2015 में दोबारा चर्चा में आई जब पीएम मोदी ने अपनी पेरिस यात्रा के दौरान ऐलान किया कि भारतीय एयरफोर्स के लिए 36 रफाल विमान खऱीदने का सौदा हो गया है. डसॉल्ट एविएशन से विमान खरीदने पर किसी को हैरानी नहीं हुई क्योंकि भारत की कई सालों से इस पर बातचीत चल रही थी.
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने हाल में ये कहकर विवाद बढ़ा दिया कि अनिल अंबानी की कंपनी को पार्टनर बनाने का प्रस्ताव मोदी सरकार ने दिया था और फ्रांस के पास उससे मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
अखबार के मुताबिक अनिल अंबानी को पीएम मोदी का करीबी माना जाता है और अनिल ने पीएम की तारीफ में उन्हें बादशाहों का बादशाह कहते हुए हिंदू मान्यता में सबसे महान हीरो करार दिया था.
अखबार के मुताबिक ज्यादातर राजनीतिक पंडित अभी भी अगले चुनाव में पीएम मोदी को आगे बता रहे हैं पर मुकाबला कड़ा होने लगा है. इकोनॉमी मुश्किल में दिख रही है और लोगों को रोजगार देने का सरकार का वादा अभी भी अधूरा है.
अखबार के मुताबिक पीएम ने खुद इस मुद्दे पर कुछ बोलने के बजाए अपने मंत्रियों और पार्टी नेताओं को लगा दिया है लेकिन जानकारों के मुताबिक ये स्ट्रैटेजी काम नहीं कर रही है.
कार्नेगी एंडोमेंट इंटरनेशनल पीस के दक्षिण एशिया मामलों के डायरेक्टर मिलन वैष्णव के मुताबिक...
वैष्णव के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे लेकिन अपनी इमेज पर दाग नहीं लगने दिए थे. इस मामले के बाद विपक्ष पीएम मोदी को भी कह सकता है आप भी बाकियों जैसे ही निकले.
भारत के रक्षा मंत्रालय ने राफेल सौदे पर किसी गड़बड़ी से इनकार किया है. डसॉल्ट एविएशन ने भी पार्टनर चुनने के लिए सरकारी दबाव को मना कर दिया है. मोदी सरकार के समर्थक भी कह रहे हैं कि रिलायंस ग्रुप को पार्टनर बनाने में कुछ गलत नहीं है.
रिलायंस के प्रवक्ता का दावा है कि कई ऐसी भारतीय कंपनियां भी रक्षा प्रोडक्शन में कूद पड़ी हैं जिनका इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है. इसलिए ये कोई मुद्दा ही नहीं है.
कांग्रेस का दावा है कि पीएम मोदी ने सौदे पर दोबारा बातचीत की और विमान का दाम 23 करोड़ डॉलर से ज्यादा हो गया. हालांकि सरकार की दलील है कि सौदे में सिर्फ विमान ही नहीं मिसाइल सिस्टम और दूसरे कलपुर्जों के दाम भी शामिल हैं.
किंग जॉर्ज कॉलेज लंदन के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर वी पंत के मुताबिक पूरा मामला 2019 में मोदी को घेरने को लेकर है और विपक्ष इसमें शांत पड़ने वाला नहीं है.
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