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टेक क्रंच के लिए लिखे आर्टिकल में राघव बहल बताते हैं कि पश्चिम (यूरोपीय देश) में मीडिया की गिरावट के उलट, भारतीय न्यूजपेपर्स पिछले 6 सालों में दो तिहाई से ज्यादा विकास कर चुके हैं. अगले कुछ सालों में इनकी विकास दर 12 से 14 फीसदी के बीच रहने की उम्मीद है.
एक विकासशील देश होने के बावजूद भारत दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी इकॉनमी और चौथा सबसे बड़ा आईटी हब है. प्रचलित पॉप कल्चर में दिखाए गए गरीब भारत की जगह यहां दो इंडिया बसते हैं, जो एक दूसरे के विरोधाभासी हैं.
फ्रेडी डॉशन की बात को रखते हुए बहल लिखते हैं कि न्यूज पेपर इंडस्ट्री के विकास के पीछे भारत की तेजी से बढ़ती मिडिल क्लास पॉपुलेशन का कमाल है. यह पॉपुलेशन सेकंड इंडिया में आती है.
हालांकि टेक्नालॉजी में आगे रहने वाली इंडियन पॉपुलेशन, फोन और कंप्यूटर पर एप्स और डिजिटल साइट के जरिए अपना न्यूज कंटेट पा रही है. लेकिन जो थोड़ी पिछड़ी हुई जनसंख्या है वो आज भी प्रिंट मीडिया के पारंपरिक माध्यमों पर निर्भर है.
न्यूज पेपर पढ़ने की आदत और मीडिया की स्वतंत्रता की संस्कृति 160 साल से ज्यादा पुरानी है. भारत में टाइम्स अॉफ इंडिया जैसा न्यूज पेपर है, जो न केवल दुनिया के सबसे पुराने न्यूज पेपर्स में से एक हैं, बल्कि सबसे ज्यादा बिकने वाला अखबार भी है.
लेकिन भारत के प्रिंट मीडिया की ग्रोथ इन अंग्रेजी न्यूजपेपर्स से नहीं हो रही है, इसके लिए गैर अंग्रेजी देशी भाषाओं वाले पेपर जिम्मेदार हैं.
राघव बहल के मुताबिक, भारत में इस समय तीन तरह के न्यूज पब्लिकेशन्स हैं.
बहल के मुताबिक पारंपरिक मीडिया का विकास आने वाले एक दशक तक जारी रहेगी. यह विकास तब तक जारी रहेगा, जब तक तक भारत में सभी मिडिल क्लास के लोग डिजिटल तकनीक और स्मार्टफोन्स के अच्छी तरह से आदी न हो जाएं.
इस बढ़ते बाजार को खतरा मानने की बजाए बहल लिखते हैं कि ‘भारतीय मीडिया कंपनियों के पास ये एक अच्छा मौका है जिसमें वे धीरे-धीरे अपने आपको डिजिटल की ओर मोड़ सकते हैं. इसके लिए उनके पास बहुत समय भी मौजूद है.’
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