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विषय: लंदन की प्रॉपर्टी की खरीद के बारे में स्वैच्छिक खुलासा कि ये अपनी और परिवार की टैक्स पेड आय से खरीदी गई है, ताकि जांच एजेंसियों के पास अब मनी लॉन्ड्रिंग और/या काला धन (जो कि है ही नहीं) पर जांच कर अपना समय और साधन बर्बाद करने की वजह न बचे, ताकि अब एजेंसियां के पास, कानून और प्रक्रिया का उल्लंघन करने के अलावा, जांच का दूर-दूर तक का कोई बहाना न बचे.
मैं ये लिख रहा हूं क्योंकि दशकों तक अलग-अलग दलों की सरकारों को कवर करते हुए मैंने अनुभव किया है कि अफसरशाही का रवैया हमेशा यही रहा है कि वो अपने गलती न मानते हैं, न सुधारते हैं, तब भी नहीं जब सबको पता होता है कि उनसे गलती हुई है.
चूंकि सरकारी कर्मचारी के तौर पर किए गए फैसलों के लिए निजी तौर पर अफसरों को 'अभयदान' प्राप्त रहता है, इसलिए अफसरों का रवैया ये होता है कि अगर पीड़ित अदालत जाता है और वहां से राहत मिले तो मिले, वरना वो वहां भी इसका विरोध करते हैं, चाहे मामले में दम हो या नहीं हो. नतीजे में होता ये है कि पीड़ित व्यक्ति का उत्पीड़न तो होता ही है, सरकार का बहुत सारा समय और ऊर्जा भी बर्बाद होती है साथ ही न्याय व्यवस्था में भी मामलों का अंबार लग जाता है.
जो सूचनाएं मैं नीचे दे रहा हूं, वो 1 मई, 2019 को आयकर विभाग द्वारा मुझे गए भेजे कारण बताओ नोटिसों में पूछे गए सवालों के दायरे से भी आगे हैं, और खुद से दी गई जानकारी की श्रेणी में आती हैं, ताकि लंदन की प्रॉपर्टी में मेरे निवेश के बारे में थोड़ी सी भी जिज्ञासा या शक की वजह न बचे. इस प्रॉपर्टी से संबंधित हर पेमेंट बैंक के जरिए गई है, टैक्स चुकाकर कमाई गई है और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा तय लिमिट में है, और इस जानकारी से साबित होना चाहिए कि अधिकारियों द्वारा लगाए गए आरोप और कुछ नहीं, बल्कि उस चीज की व्यर्थ तलाश है, जो कभी मिलनी ही नहीं है.
यही नहीं, मैं मौजूदा आयकर रिटर्न को वक्त से पहले फाइल कर रहा हूं ताकि लंदन की पूरी तरह से घोषित प्रॉपर्टी से संबंधित हर लेनदेन के बारे में ऑन रिकॉर्ड पहले से पता हो, इसमें उस पेमेंट की जानकारी भी शामिल हैं जिसके बारे में 1 मई, 2019 को भेजे गए कारण बताओ नोटिसों में भी नहीं पूछा गया है.
मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि मैंने कानून का पालन किया है और कोई अपराध नहीं किया है, और मैं चाहता हूं कि सरकार इसकी कद्र करे. और मुझे मेरे पत्रकारिता के पेशे की जिम्मेदारियों को निभाने और व्यक्तिगत जीवन बेरोकटोक जीने की इजाजत दे, जैसा कि संविधान में गारंटी दी गई है.
जैसा कि पहले बताया गया है, इससे सरकार और विभागों को असली मामलों में अपना ध्यान लगाने का वक्त देने में मदद मिलनी चाहिए जो लोक हित के लिए जरूरी हैं, और सरकारी रेवेन्यू के साथ-साथ ईमानदारी और शुचिता को बढ़ाने में भी इससे मदद मिलेगी.
इसके अलावा यहां मैं उस प्रॉपर्टी को खरीदने में आज तक जितने पैसे लगे हैं उसका पूरा ब्योरा दे रहा हूं. सारा पैसा टैक्स पे करने के बाद बची रकम और एक लोन से आया है. साथ ही उस प्रॉपर्टी को खरीदने में कौन सा स्ट्रक्चर अपनाया गया और किस तरह से ट्रस्ट बना, ताकि प्रॉपर्टी की विरासत की भी प्लानिंग ठीक से हो सके, इसका भी ब्योरा दे रहा हूं. प्रापर्टी खरीदने के लिए जो कंपनी और ट्रस्ट बनी है उसके सेटलर, प्रोटेक्टर और बेनीफिशियरीज, सारे परिवार के सदस्य हैं और पूरी प्रक्रिया दुनिया की एक सम्मानित मैनेजमेंट कंपनी की देखरेख में हुई है. इस पूरी प्रक्रिया में सरकारी रेवेन्यू को किसी तरह का नुकसान ना हो, इसका खास ख्याल रखा गया है.
डिस्क्लोजर्स-
प्रोटेक्टरः श्री राघव बहल
पोटेन्शियल बेनेफिशियरीज- श्री राघव बहल, सुश्री तारा बहल, और श्री विदुर बहल
ट्रस्टीः ट्रस्ट कंपनी (आइल ऑफ मैन) लिमिटेड
इसलिए ये एकदम साफ है कि लंदन की प्रॉपर्टी खरीदने और संबंधित खर्चों के लिए (कानूनी, मरम्मत, फर्नीचर और फिटिंग वगैरह) पूरा फंड :
और सफाई के लिए हर लेनदेन को समझाने वाला फ्लोचार्ट संलग्न है
जिस तरह की लीडरशिप के लिए आप जानी जाती हैं, मुझे उम्मीद और भरोसा है कि ऊपर दी गई जानकारी के आलोक में आप अफसरों को निर्देश देंगी कि काम करने का ऐसा कल्चर बनाएं, जिसमें कानून संगत फैसले हों और गलतियों को सुधारने की गुंजाइश हो. मुझे उम्मीद है कि आप अफसरों से दी गई जानकारी की जांच करने के लिए कहेंगी और मेरे खिलाफ कार्रवाई, जिसका कोई आधार ही नहीं है, को रद्द किया जाएगा.
मुझे भरोसा है कि ऐसा करने से मेरे जैसे कानून मानने वाले नागरिकों को न्याय पाने के लिए न्यायपालिका का बोझ बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
साथ ही मैं यह भी भरोसा दिलाता हूं कि इसके अलावा विभाग को जब भी किसी और सूचना या दस्तावेज की जरूरत पड़ेगी, मैं बिना देरी किए उपलब्ध कराउंगा.
सादर
राघव बहल
(इस लेटर की एक कॉपी सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) प्रमोद चंद्र मोदी, और डायरेक्टर, इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट संजय कुमार मिश्रा को भी भेजी गई है.)
( श्री राघव बहल, द क्विंट के सह-संस्थापक और एडिटर-इन-चीफ हैं. ये लेटर उन्होंने अपनी निजी हैसियत से लिखा है. यह द क्विंट या क्विंटिलियन मीडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा या इसकी ओर से दिया गया बयान नहीं है. द क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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